मैंने ‘सुपरवुमेन’ बनने की कोशिश छोड़ दी है : विद्या बालन
बॉलीवुड की बहुमुखी प्रतिभा की धनी मानी जाने वाली अभिनेत्रियों में शुमार विद्या बालन अपने पति सिद्धार्थ रॉय कपूर के साथ बुधवार को शादी के पूरे चार साल पूरे कर लेंगी। उनका कहना है कि वह जीवन में घर और काम के बीच के संतुलन की बात को जरूरत से अधिक तूल दी गई बात समझतीं हैं और अब उन्होंने ‘सुपरवुमेन’ बनने की कोशिश छोड़ दी है। विद्या से जब पूछा गया कि वह घर और काम के बीच तालमेल की बाजीगरी कैसे करती हैं, तो उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मैं कोई बाजीगरी नहीं करती हूं। मैं कोई सुपरवुमेन की तरह नहीं बनना चाहती हूं। मैं एक महिला हूं जो काम करती है। जब मैं घर पर होती हूं तो मैं केवल घर पर ध्यान देती हूं। जब मैं मस्ती करती हूं तो केवल मस्ती करती हूं। कभी-कभी मेरा कुछ भी करने का मन नहीं करता है तो मैं कुछ भी नहीं करती हूं।” उन्होंने कहा, “इसलिए मुझे लगता है कि संतुलन की यह बात बढ़ा चढ़ाकर की जाने वाली बात है क्योंकि महिलाओं से हमेशा ही घर और काम के बीच संतुलन के लिए कहा जाता है, जो नाइंसाफी है।”
विद्या हाल ही में ‘कहानी 2’ के साथ पर्दे पर दिखाईं दी हैं।
उनसे जब पूछा गया कि जब वह घर से दूर होती हैं, और किसी विशेष दिन पर पति और परिवार के साथ नहीं होती हैं, तो क्या उन्हें पछतावा होता है? इस पर विद्या ने कहा, “हो सकता है कि मैं अपराधबोध महसूस करती हूं क्योंकि मैं एक लड़की हूं। शायद पुरुष काम करने के दौरान विशेष अवसरों पर शामिल न होने पर इस तरीके से महसूस नहीं करते हैं। उनके बारे में मान लिया जाता है कि वे काम कर रहे होंगे, इसलिए खास मौके पर नहीं पहुंचे या भूल गए।”
उन्होंने कहा, “हम महिलाएं महसूस करती हैं कि हमें काम के साथ ही विशेष अवसरों पर भी मौजूद रहना है। लेकिन, मुझे लगता है कि यह अवास्तविक उम्मीदें अब धीरे-धीरे दूर हो रही हैं।” विद्या का अगले माह जन्मदिन है।
क्या जन्मदिन पर वह काम करेंगी या जन्मदिन मनाएंगी, इस पर विद्या कहती हैं, “नहीं, यह चीजें मेरे लिए बहुत पवित्र हैं। मैं अपने जन्मदिन, शादी की सालगिरह और नए साल पर अपने घर पर ही रहूंगी। ये पवित्र हैं।” विद्या से जब पूछा गया कि क्या वह महिला केंद्रित विषयों से खुद को जोड़े जाते रहने से थक गई हैं तो उन्होंने कहा, “ऐसा नहीं है क्योंकि मैं जो काम कर रही हूं उसका आनंद उठा रही हूं। लोग मुझसे कहते हैं कि इन्हें महिला प्रधान फिल्में क्यूं कहना, आप इन्हें केवल फिल्म क्यूं नहीं कह सकते हैं, तो मैं कहती हूं कि क्योंकि अभी तक के सालों और दशकों में केवल पुरुषों को ही केंद्र में रखा गया है। यह परिवर्तन है।”