नर्मदा के थमते प्रवाह ने किया विचलित : राजेंद्र सिंह
भोपाल | स्टॉक होम वॉटर प्राइज से सम्मानित राजेंद्र सिंह का कहना है कि अगर नर्मदा नदी को बचाने की ईमानदारी से कोशिश नहीं हुई तो देश की सबसे कम प्रदूषित नदी भी प्रदूषित नदियों की गिनती में शामिल हो जाएगी। सिंह ने नर्मदा के थमते प्रवाह पर चिंता जताते हुए कहा है कि नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक में ही धारा का धीमा होना आगामी संकट की ओर इशारा कर रहा है।
अमरकंटक में नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए राज्य सरकार द्वारा रविवार को शुरू की गई ‘नमामि देवी नर्मदे सेवा यात्रा’ में हिस्सा लेने आए जलपुरुष के नाम से विख्यात राजेंद्र िंसह ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने अच्छी पहल की है, मगर यह भी समझना होगा कि यह अभियान आसान नहीं है।
उन्होंने कहा कि इसमें कई चुनौतियां हैं, जिनसे निपटना सरकार के लिए भी आसान नहीं है। मसलन अमरकंटक में ही नर्मदा के आसपास प्रभावशाली लोगों ने अतिक्रमण कर रखा है। सरकार और प्रशासन उन्हें हटा पाएगा या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। सिंह ने बताया कि वे बारह वर्ष बाद अमरकंटक आए, मगर यहां की तस्वीर उन्हें काफी बदली हुई लगी। अतिक्रमण बढ़ा है, नर्मदा की धारा कम हुई है और जो धारा दिख रही है, वह ऊपर की ओर बनाए गए तालाबों के कारण है। नर्मदा के बदले हाल ने उन्हें विचलित कर दिया है। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि इन अतिक्रमणों को रोकने की पहल क्यों नहीं की गई।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा यात्रा के उद्घाटन के मौके पर मकानों और दुकानों के अतिक्रमण को हटाकर उन्हें नए मकान व व्यवस्थित तौर पर दुकानें दिए जाने के ऐलान पर सिंह ने कहा, “मुख्यमंत्री की मंशा अच्छी है। मकान व दुकानें हटाकर उन्हें नए मकान दे दिए जाएंगे, मगर जिन प्रभावशाली लोगों ने नदी के किनारे बड़े हिस्से में कब्जा (आश्रम आदि बनाए) कर रखा है, उनको कैसे हटाया जाएगा, इस ओर उन्होंने ध्यान नहीं दिया।”
सरकारी स्तर पर होने वाले आयोजनों पर उन्होंने कहा, “यह छोटी यात्रा नहीं है। यह 144 दिन चलने वाली है। किसी अभियान को शुरू करो और भूल जाओ, यह सरकारों की आदत में शुमार हो गया है। मेरा अनुभव तो यही कहता है और मैं यही चाहते हूं कि इस अभियान के साथ ऐसा न हो।” सिंह ने शिवराज द्वारा नदी संरक्षण के लिए उठाए गए कदमों को सराहा, लेकिन साथ ही याद दिलाया कि 2005 में चौहान ने नदी संरक्षण के प्रयास किए, मगर बाद में वह उसे भूल गए।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, “नर्मदा किसी ग्लेशियर से नहीं निकलती, वह तो घने वन की वजह से होने वाली वर्षा के पानी से प्रवाहित होती है। वर्तमान में ये जंगल खत्म हो गए हैं, इसीलिए नर्मदा के किनारों पर पंचवटी के वृक्ष लगाए जाने चाहिए। राज्य सरकार ने सेवा यात्रा के दौरान वृक्षारोपण की योजना बनाई है। अगर यह कारगर होती है तो नर्मदा को प्रवाहमान बनाया जा सकता है। सरकार समाज को जागरूक तो कर सकती है, मगर आगे का काम समाज का है कि वह गंदे पानी को नदी में न मिलने दें।” सिंह ने नर्मदा नदी के अलावा सोन व चेला नदी के भी उद्गम स्थल को देखकर महसूस किया कि राज, समाज और संतों को मिलकर नदियों को बचाने की पहल करनी चाहिए। वर्तमान में ऐसा लगता है कि राज और समाज को अब संतों के साथ की ज्यादा जरूरत है।