खुशियों की छाँव में एक गाँव
सीमांत उत्तरकाशी जिले के भटवाड़ी ब्लॉक में एक ऐसा गांव भी है,जो जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर है फिर भी यहां के लोगों ने खुद के प्रयासों से इसे मॉडल गांव के रूप में ढाल दिया है.१६० परिवारों वाले इस गांव का नाम बार्सू है. इस गांव की खासियत यह कि यहां से आज तक एक भी परिवार ने पलायन नहीं किया. यहां ग्रामीण कृषि, बागवानी, मधुमक्खी पालन, मछली पालन व भेड़ पालन ही नहीं, पर्यटन व ट्रेकिंग से भी जीवन को खुशहाल बना रहे हैं.
बता दें कि बार्सू उत्तरकाशी के प्रसिद्ध दयारा बुग्याल का बेस कैंप भी है.यहीं से होते हुए पर्यटक छह किलोमीटर दूर दयारा बुग्याल की ट्रेकिंग करने के लिए जाते हैं.गांव के सात परिवार पूरी तरह पर्यटन व ट्रेकिंग के व्यवसाय से जुड़े हैं.इसमें से तीन परिवार गांव में गेस्ट हाउस चलाते हैं.जबकि, गांव के 90 फीसदी परिवार सब्जियों का उत्पादन करते हैं.
60 परिवारों ने तो सब्जी उत्पादन के लिए गांव में पॉलीहाउस भी बनाए हुए हैं.गांव में आलू, राजमा और चौलाई की अच्छी पैदावार होती है.एक सीजन में इस गांव के लोग 90 ट्रक आलू और 500 क्विंटल राजमा बेचते हैं.
बार्सू गांव में दस परिवार भेड़ पालन से जुड़े हुए हैं. इन परिवारों के पास तीन हजार भेड़ें हैं.
जबकि, तीन परिवार मछली पालन और दो परिवार मधुमक्खी पालन कर रहे हैं.
बार्सू के 32 ग्रामीण सरकारी सेवाओं में हैं, जिनमें से एक युवक सेना में अधिकारी के पद पर है.
बार्सू निवासी एवं भटवाड़ी ब्लॉक की पूर्व प्रमुख विनीता रावत बताती हैं कि बार्सू के कुछ लोग पहले उद्यान विभाग और कृषि विभाग में थे.इन्हीं की बदौलत गांव के लोग कृषि व बागवानी के प्रति आकर्षित हुए.वर्तमान में गांव का हर परिवार कृषि व पशुपालन से अपनी आर्थिकी संवार रहा है.
गांव के 78 वर्षीय सूरत सिंह रावत बताते हैं कि बार्सू कृषि, बागवानी व ईको टूरिज्म के लिहाज से महत्वपूर्ण गांव है.गांव के विकास में ग्रामीणों की बड़ी भूमिका है यही वजह है कि गांव से आज भी एक भी परिवार ने पलायन नहीं किया है.
भटवाड़ी की पूर्व प्रमुख विनीता रावत के अनुसार गांव के सड़क से जुड़े होने के बावजूद यहां इंटर कॉलेज न होना काफी अखरता है.गांव के बच्चों को आठवीं से आगे की शिक्षा के लिए सात किलोमीटर दूर भटवाड़ी जाना पड़ता है.
साभार: दैनिक उत्तराखंड