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मुलायम को चिट्ठी लिखने वाले एमएलसी उदयवीर सपा से बाहर

udaiउत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करीबी नेता और एमएलसी उदयवीर सिंह को समाजवादी पार्टी (सपा) से छह साल के निष्कासित कर दिया गया है। उदयवीर सिंह ने शुक्रवार को सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को अखिलेश के समर्थन में काफी तल्ख चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में विवाद के लिए परिवार के साथ ही कुछ बाहरी लोगों पर भी उंगली उठायी गयी थी।

तीन पन्नों की चिट्ठी में उदयवीर सिंह विवाद के लिए मुलायम की पत्नी पर सवाल उठाए थे। चिट्ठी मिलने के बाद मुलायम काफी नाराज थे। उन्होंने पार्टी महासचिव रामगोपाल यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी नाराजगी जताई थी।

चौधरी ने कहा कि अमर्यादित तरीके से अनुशासनहीन आचरण करने वालों को किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पार्टी पिछले 25 सालों में अनुशासन और संकल्प के बलबूते ही यहां पहुंची है। उदयवीर ने जो अमर्यादित, अशोभनीय और अनुशासनहीन आचरण किया है, उसके लिये उन्हें पार्टी से छह वर्षों के लिये निष्कासित कर दिया गया है।
इस बीच, उदयवीर सिंह ने अपने निष्कासन के बारे में कहा मुझे कोई अफसोस नहीं है। मैंने जो भी राजनीतिक मुद्दे उठाये, वे लोकतांत्रिक अधिकार के तहत उठाये थे। नेताजी पार्टी के संरक्षक है। मुझे पूरा भरोसा है कि वह सबके साथ न्याय करेंगे, मुख्यमंत्री (अखिलेश यादव) जी के साथ भी न्याय करेंगे। उन्होंने कहा कि अफसोस इस बात का है कि नेताजी को मंचों से गाली देने वाले लोग इस वक्त पार्टी में मौजूद हैं और पत्र लिखने वाले शुभचिंतकों को पार्टी से निकाला जा रहा है। नेताजी जब भी कभी गंभीरता से विचार करेंगे तो जरूर सोचेंगे।
प्रदेश के समाजवादी परिवार में रार बढ़ने के बीच पार्टी के उदयवीर सिंह ने गत 19 अक्तूबर को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को पत्र लिखकर सनसनी फैला दी थी। उन्होंने पत्र में पार्टी के यूपी अध्यक्ष शिवपाल यादव के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए आरोप लगाया था कि शिवपाल मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से जलन रखते हैं। उन्होंने किसी का नाम लिए बगैर यहां तक कह दिया था कि अखिलेश के खिलाफ साजिश में मुलायम की पत्नी, बेटा और बहू भी शामिल है और शिवपाल सपा मुखिया की पत्नी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा का चेहरा हैं।

सिंह ने पत्र में आरोप लगाया था कि अखिलेश के खिलाफ षडयंत्र वर्ष 2012 में उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के फैसले के बाद से ही शुरू हो गया था। उस वक्त शिवपाल ने इस निर्णय को रुकवाने की भरसक कोशिश की थी। उसके बाद से ही शिवपाल की निजी महत्वाकांक्षा अखिलेश के पीछे पड़ी है। उन्होंने सपा मुखिया पर एकतरफा बातें सुनकर कार्रवाई करने का आरोप लगाते हुए अनुरोध किया था कि वह सपा के संरक्षक बन जाएं और अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दें।

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