भीख बना धंधा करोड़ों में है सालाना टर्नओवर
एक साधारण सा भिखारी भी 30 से 40 हजार रुपये प्रति माह कमा लेता है धर्मनगरी हरिद्वार में भिखारियों की खाली दिखने वाली झोलियां खंगालने पर पता चलता है कि इनका सालाना टर्नओवर लाखों में नहीं करोड़ों में है। यह आंकड़े चौंकाने वाले जरूर हो सकते हैं, मगर हैं एकदम सही।
हरकी पैड़ी सहित प्रमुख मंदिरों के बाहर करीब डेढ़ हजार भिखारियों की मौजूदगी हर समय बनी रहती है। एक भिखारी आम दिनों में औसतन एक हजार रुपये रोजाना कमाता है। लक्खी मेलों और स्नान पर्वों पर तो बात ही क्या। देश विदेश से कोई दानवीर गंगा दर्शन को चला आए तो भी रुपयों की बरसात होती है।
फटे पुराने कपड़ों और अक्षम हाथ पैरों पर नजर पड़ने पर भिखारी हर किसी की दया का पात्र बनते हैं। मगर हरिद्वार जैसे विश्व प्रसिद्ध तीर्थस्थल पर भीख मांगने के मायने सिर्फ भिक्षावृत्ति ही नहीं है। यहां होने वाली कमाई ने इसे चलते फिरते उद्योग में तब्दील कर दिया है। बैंक बैलेंस देखा जाए तो कुछ भिखारी छोटे-मोटे उद्योगपतियोें को मात देने की क्षमता रखते हैं।
हरिद्वार में भिखारियों की वास्तविक संख्या करीब डेढ़ हजार है। भिक्षावृत्ति के आर्थिक पक्ष का आंकलन करने के लिए हमने 200 भिखारियों को पैमाना बनाया। कुछ भिखारियों के अलावा श्रद्धालुओं को भिखारियों के लिए नोट के बदले खुले सिक्के देने वाले दुकानदारों, होटल ढाबों और गंगा घाटों पर पूजा अर्चना कराने वाले पुरोहितों से बातचीत की गई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।एक मोटे अनुमान के मुताबिक आम दिनों भिखारी 800 से 1200 रुपये कमाता है। विशेष पर्वों पर यह आंकड़ा 1500 को पार कर जाता है। औसतन कमाई एक हजार रुपये मान ली जाए तो धर्मनगरी के 200 भिखारियों को रोजाना दो लाख रुपये का दान मिलता है। महीने में यह राशि 60 लाख और सालाना 7.20 करोड़ पहुंच जाती है।