लिंगानुपात में यूपी पिछड़ा, आवंटित धन भी खर्च नहीं कर पाई यूपी सरकार
यूपी सरकार ने भ्रूणहत्या रोकने के लिए आवंटित धन खर्च ही नहीं हो रहे है। यूपी सरकार ने कन्या भ्रूणहत्या रोकने के लिए आवंटित धन में से आधे धन भी नहीं खर्च किया। यह खुलासा सीएजी की रिपोर्ट में किया गया है और इसमें कहा गया है कि इससे वैश्विक लिंग सूचकांक में देश की स्थिति प्रभावित हुई है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी भारत का सर्वाधिक आबादी वाला राज्य है। और इसकी प्रजनन दर बिहार के बाद देश में सबसे ज्यादा है। जहां के ग्रामीण क्षेत्र की औसत महिला कम से कम तीन बच्चे को जन्म देती है। वहीं इस राज्य में बच्चे के लिंगानुपात में तेजी से गिरावट आ रही है। यूपी में 0 से 6 साल की उम्र के प्रत्येक 1000 लड़के के अनुपात में लड़कियों की संख्या घटकर 902 रह गई है, जबकि वर्ष 2001 में यह अनुपात 916 थी, 1991 में 927 और 1981 में 935 थी।
2011 के गणना अनुसार 0 से 6 साल की उम्र के प्रत्येक 1000 लड़के के अनुपात में लड़कियों की संख्या 914 रही है। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में 2015 में लिंगानुपात गिरकर 883 रह गया है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली की डेटा के आधार पर सीएजी रिपोर्ट में कही गई है। प्रकृति भी लड़कियों की तुलना में अधिक लड़के पैदा करती है, क्योंकि लड़कों में लड़कियों की तुलना में नवजात अवस्था में अधिक बीमारियां होती हैं। इसलिए इसे देखते हुए आदर्श लिंगानुपात 1000 लड़कों 954 लड़कियों की संख्या होनी चाहिए।
वर्ष 2010 से 2015 के बीच यूपी, जो सबसे कम लिंगानुपात वाले 10 राज्यों में से एक है। दावा किया कि उसे लिंगचयनात्मक गर्भपात रोकने के लिए 20.26 करोड़ रुपये की जरूरत है। इसके बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत राज्य को 35 फीसदी की धन जारी की थी। लेकिन इस धन में से राज्य पांच सालों में केवल 54 फीसदी रकम ही खर्च कर पाई थी।
लेखा परीक्षा में पाया गया कि नैदानिक केंद्रों में गर्भवती महिलाओं के अल्ट्रासोनोग्राफी के दौरान ली गई तस्वीरों का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है जो कि पीसी-पीएनडीटी एक्ट के तहत जरूरी है. राज्य 71 जिलों में से 20 जिलों में नैदानिक केंद्रों को निरीक्षण किया गया कि क्या अनिवार्य नियमों का पालन किया जा रहा है और इसकी निगरानी की जा रही है या नहीं. इसमें पाया गया कि 68 फीसदी मामलों में महिलाओं के पास अल्ट्रासाउंड जांच के जरूरी डॉक्टर का रेफरल स्लिप तक नहीं था।
इस लापरवाही के बावजूद, ऑडिट में पाया गया कि, सर्वेक्षण वाले जिलों में 1,652 पंजीकृत नैदानिक केंद्रों में 936 दोषी केंद्रों को लापरवाही को लेकर जिलाधिकारी द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया, लेकिन इनमें से किसी पर न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही किसी प्रकार का जुर्माना लगाया गया। उत्तर प्रदेश के आकार और जनसंख्या के कारण लिंग असमानता से निपटने के लिए राज्य की अयोग्यता से वैश्विक मानव विकास सूचकांक में भारत के प्रदर्शन में सुधार की क्षमता पर काफी प्रभाव पड़ता है. हाल ही में विश्व आर्थिक मंच की जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 145 देशों में से 108 वें स्थान पर था।
जार्ज ने कहा कि, देश की हर चौथी लड़की यूपी में पैदा होती है। इसलिए राज्य के लिंगानुपात में गिरावट से देश का सभी बाल लिंग अनुपात कम हो जाता है। हम 2021 की गणना में किसी सुधार की संभावना नहीं देखते है जबिक देश के सबसे बड़े राज्य में इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया जाता है।