शराब मुक्त रामलीला ने मिरतोला को दिखाई नई राह
दशहरा के माध्यम से उत्तराखंड के चंपावत ने सामाजिक बुराइयों पर विजय की राह दिखाई है। यहां के मिरतोला में विजयादशमी शराब मुक्त रामलीला की शुरुआत का सबब बनी है। वहीं यह पर्व महिला सशक्तीकरण का प्रतीक भी बन गया है। यही नहीं जिले के तामली तल्लादेश में विजयादशमी पर वर्षों से चली आ रही बलि प्रथा से भी लोगों ने नाता तोड़ लिया।
मिरतोला में शराब मुक्त रामलीला की पहल भी दशहरा पर्व से ही जुड़ी हुई है। इस दौरान कुमाऊंनी अंचल में जगह-जगह रामलीला का मंचन किया जाता है। अधिकांश स्थानों में शराब के बढ़ते प्रचलन के कारण रामलीला मंचन के दौरान खलल उत्पन्न होता है।
पिछले पांच साल से क्वैराला घाटी के मिरतोला में शराब मुक्त रामलीला हो रही है। यहां शराब अथवा किसी प्रकार के नशे का सेवन कर आने वाले व्यक्ति को रामलीला परिसर में प्रवेश ही नहीं दिया जाता।
तल्लादेश तामली में तीन साल पहले तक दशहरा पर पशुओं की बलि दिए जाने की परंपरा थी। लोग पर्व पर बड़ी तादाद में अपनी लोक आस्थाओं से जुड़े धार्मिक स्थलों में पशुओं की बलि दिया करते थे।
तीन साल पूर्व पत्थर मार युद्ध के लिए प्रसिद्ध बाराहीधाम देवीधुरा में बग्वाल मेले के दौरान खुले में पशु बलि दिए जाने पर उच्च न्यायालय नैनीताल ने रोक लगाई तो यहां के लोगों को लगा कि पशु बलि सही नहीं हैं। क्षेत्र के युवाओं ने इसमें पहल की और सीमांत इलाके के गांवों को जागरूक किया गया। अब यहां दशहरा पर्व पर पशु बलि की परंपरा पूरी तरह से बंद हो गई है।
मल्लीहाट में दशहरा पर्व से बीते पांच साल से महिला रामलीला का मंचन भी जुड़ गया है। इसकी शुरुआत पांच वर्ष पूर्व रामलीला कमेटी के मुक्तेश पचौली, सौरभ साह और रोहित पचौली ने की थी। उन्होंने महिलाओं को रामलीला में अभिनय के लिए प्रेरित किया।
पुरुषों की रामलीला का मंचन समाप्त होने के बाद महिलाएं धनुष यज्ञ, सूर्पणखा, राजतिलक आदि का मंचन करती हैं। इस महिला लीला में पांच साल से राम का किरदार निभा रहीं तनुजा तड़ागी को दोहा, चौपाई, विलाप आदि में महारथ है।