सरकारी पैसे से किया प्रचार तो चलेगा चुनाव आयोग का डंडा
चुनाव आयोग ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में सरकारी पैसे से राजनीतिक पार्टियों के प्रचार पर रोक लगा दी है. पार्टियों का चेहरा चमकाने के लिए सरकारी पैसे के दुरुपयोग के मद्देनदर चुनाव आयोग ने ये आदेश दिया है. अपने फैसले में चुनाव आयोग ने साफ किया,‘कोई भी राजनैतिक दल जो सरकार में हो वो सरकारी पैसे और जगह का इस्तेमाल खुद की वाहवाही, प्रचार, पार्टी के चुनाव चिह्न का प्रचार के लिए नहीं कर सकती. चुनाव सुधार की दिशा में यह चुनाव आयोग का सख्त कदम है.
चुनाव आयोग ने फैसले को अमली-जामा पहनाने के लिए अपना रवैया सख्त करते हुए कहा कि सरकारी पैसा का दुरपयोग करने वाली पार्टियों खिलाफ आयोग नियमों के हिसाब से कार्रवाई करेगा. आदेश में पार्टियों के चुनाव चिह्न तक वापस लेने की बात कही गयी है.
चुनाव आयोग ने ये आदेश दिल्ली हाई कोर्ट के उस फैसले के बाद जारी किया है, जिसमें हाई कोर्ट ने मायावती की पार्टी बीएसपी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के बाद फैसला सुनाया था. अपने फैसले में हाइकोर्ट न चुनाव आयोग से कहा था कि,’ अगर बसपा सरकारी पैसे का इस्तेमाल कर जगह-जगह पार्टी के अपने चुनाव निशान से जुड़ी मूर्तियां हटाने का काम नहीं करती तो पार्टी का चुनाव निशान वापस लेने की कार्रवाई शुरू की जाए.’
कोर्ट मे स्पष्ट किया था कि सरकारी पैसे से किसी पार्टी के सिंबल का मूर्ति बनाना सरकारी पैसे का दुरूपयोग है और चुनाव आयोग नियमों की कमी का राजनैतिक पार्टियां फायदा उठा रही हैं.
अपने फैसले में कोर्ट ने चुनाव आयोग इस मामले को गंभीरता से देखेने और ज़रूरत पड़ने पर सख्त कदम उठाने की नसीहत दी थी. हाईकोर्ट का फैसला भले ही बसपा के खिलाफ दायर याचिका पर आया हो लेकिन इसका असर सभी राजनैतिक दलों पर पड़ेगा जो राज्य या केन्द्र की सरकार में हैं. चुनाव आयोग के इस आदेश के दायरे में हाल ही में सरकारी खजाने से करोड़ों रूपये खर्च कर पार्टी और नेताओं का प्रचार प्रसार करने के आरोपों में घिरी आम आदमी पार्टी और उनके नेता भी आएंगे.