अन्तर्राष्ट्रीयराजनीति

पकिस्तान में पलटने को है सत्ता

2016_7image_13_28_538060047nawaz-sharif-in-tension-llबिगड़ रहे पाकिस्तान के अंदरूनी हालात, सत्ता परिवर्तन की बढ़ रही संभावना
इस वक्त पाकिस्तान के अंदरूनी हालात बहुत खराब हो चुके हैं और सरकार बिल्कुल ही अप्रभावी नजर आ रही है. एक तो पाक सेना वहां की नागरिक सरकार की सुन नहीं रही है और दूसरे विपक्षी पार्टियां भी उसे एक कमजोर सरकार मान रही हैं. पाकिस्तान तहरीके- इंसाफ पार्टी के सदर इमरान खान ने तो यहां तक कह दिया है कि पाकिस्तानी अवाम नवाज शरीफ जैसा बुजदिल नहीं है और हम सब अपनी सेना के साथ खड़े हैं. जब भी पाकिस्तान के अंदरूनी हालात खराब होते हैं और वहां की सेना और सरकार के बीच सामंजस्य बिगड़ता है, तब-तब सत्ता-पलट की आशंका बढ़ जाती है. दूसरी ओर, उड़ी आतंकी हमले के बाद से भारत और कुछ पड़ोसी देशों में पाकिस्तान-विरोध में जो भी गतिविधियां हुई हैं, उससे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय स्तर पर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पाकिस्तान कुछ अलग-थलग तो पड़ ही गया है.

पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के मद्देनजर इस बात की संभावना बढ़ रही है कि वहां सत्ता-पलट हो सकता है. लेकिन, यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अब तक पाकिस्तान में जब-जब सत्ता-पलट हुआ, तब-तब पाकिस्तान को अमेरिका का समथर्न मिल जाता था और सत्ता-पलट के बाद अमेरिका उसे मान्यता दे देता था. अब देखना यह होगा कि क्या इस बार भी अमेरिका उसका साथ देगा, क्योंकि फिलहाल पाक-अमेरिका के बीच संबंध पूर्व की तरह बहुत अच्छे नहीं हैं. अमेरिका ने अपने आधिकारिक बयान में पाकिस्तान को फटकारा है कि वह परमाणु हमले की धमकी न दे. ऐसे में अगर पाकिस्तान में सत्ता-पलट होता है, तो उसे सिर्फ चीन पर ही निभर्र रहना पड़ेगा.

नवाज देश में भी अलग-थलग
पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के खराब होने और उस पर उसका नियंत्रण न होने के कई पहलू हैं. बलूचिस्तान में काफी दिनों से पाक-विरोधी आग लगी हुई है. गिलगित, बाल्टिस्तान और सिंध में प्रदर्शन हो रहे हैं. पाक सेना चारों तरफ फैली हुई है. वहीं, एक तरफ तो कट्टरपंथियों का पाक सरकार पर दबाव है कि वह भारत के खिलाफ गतिविधियों को अंजाम दे, दूसरी तरफ पाक सेना वहां की सरकार पर हावी है. ऐसे हालात में कोई भी सरकार अपना काम ठीक ढंग से कर ही नहीं सकती और पूरी शासन-व्यवस्था अनियंत्रित हो जाती है. यही वजह है कि पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ बिल्कुल ही अलग-थलग पड़ गये हैं.

पाक सेना हमेशा से किसी चीज को सैन्य-नजरिये से ही देखती है, पाक सरकार की विदेश नीतियों और मजबूरियों की ओर ध्यान भी नहीं देती. हर मसले को पाक सेना जोर-जबरदस्ती और हथियार से ही हल करना जानती है, जो कि एक लोकतंत्र में बहुत दिनों तक नहीं चल सकती. ऐसे में अगर फिर सत्ता-पलट हुआ, तो पाकिस्तान के लिए बहुत महंगा पड़ेगा. सेना कुछ समय तक तो देश को संभालने की कोशिश करेगी, लेकिन लोकतांत्रिक स्तर पर जब पाकिस्तान के हालात बिगड़ेगे, तो उसके लिए संभालना बहुत मुश्किल हो जायेगा.

इमरान की पीठ पर सेना का हाथ
पीटीआइ नेता इमरान खान राहील शरीफ के नजदीकी हैं. पाक सेना की मदद की वजह से ही इमरान अब तक अपनी पोजीशन बनाने में कामयाब रहे हैं और वे सेना के ‘पोस्टर ब्वॉय’ कहलाते हैं. पाक सेना जो चाहती है, इमरान वही करते हैं. इधर बीच इमरान की जो भी रैलियां हुई हैं या हो रही हैं, वे इस बात का संकेत कर रही हैं कि इमरान सेना के साथ मिल कर नवाज को अपदस्थ करना चाहते हैं. इन हालात के बीच कभी-कभी ऐसा भी लगता है कि नवाज शरीफ को हटा कर पाक सेना कोई ऐसी शासनिक व्यवस्था बना दे, जिसमें इमरान को बिठा कर चुनाव की ओर बढे़. इस तरह से सेना पूरी तरह से नागरिक सरकार पर नियंत्रण कर सकती है. जाहिर है, पाक सेना वहां कुछ भी कर सकती है. वह पहले हालात बिगाड़ती है और फिर जनमत की ओर बढ़ती है.

मसलन, इमरान खान की रैलियां इसलिए हो रही हैं कि नवाज शरीफ को हटाने को लेकर पाक अवाम के बीच एक जनमत बन सके. नागरिक सरकार की इतनी हालत खराब हो जाती है कि पाकिस्तानी जनता कहने लगती है कि इससे अच्छा तो सेना ही है. यही वह महत्वपूर्ण पहलू है, जो पाकिस्तान में सत्ता-पलट के लिए खाद-पानी बन जाती है. सेना यह समझती है कि अगर वह सीधे तौर पर सत्ता-पलट करेगी, तो पाकिस्तानी जनता का भरोसा नहीं जीत पायेगी. इसलिए वह मौजूदा सरकार को बेबस करने की रणनीति पर काम करती है. हालांकि नवाज शरीफ भी सेना की एक कठपुतली ही हैं, लेकिन मुश्किल यह है कि पाक सेना नवाज पर भरोसा नहीं करती. इमरान खान सेना के ही आदमी हैं, इसिलए सेना को उन पर ज्यादा भरोसा है.

नये सेनाध्यक्ष के चयन में मुश्किलें
पाक सेनाध्यक्ष राहील शरीफ रिटायर होनेवाले हैं. पाकिस्तान के अंदरूनी हालात के मद्देनजर नवाज शरीफ की यह पूरी कोशिश होगी कि उनका कोई विश्वस्त ही सेना की कमान संभाले. लेकिन, यह मुश्किल है, क्योंकि राहील ने भी यह तय कर रखा है कि वे अभी यह पद नहीं छोड़ेगे और एक्सटेशन लेंगे, या अगर रिटायर होंगे, तो किसी अपने को सेनाध्यक्ष बनायेंगे. पाकिस्तान के अंदरूनी हालात कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे हैं. फिलहाल यह अभी देखनेवाली बात होगी.

अछूता नहीं रहेगा भारत
पड़ोसी पाकिस्तान में जो कुछ भी होगा, उसका थोड़ा-बहुत तो भारत पर असर पड़ेगा ही. भारत यह बात जानता है, इसलिए वह हमेशा अपनी सुरक्षा-व्यवस्था को बनाये रखता है. और इसके लिए भारतीय सेना बहुत ही सक्षम है. भारत कभी नहीं चाहता कि पाकिस्तान के साथ जंग हो. भारत का केवल इतना ही कहना है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर रोक लगाये. अभी तक तो यह था कि भारत सीमा-पार के आतंकवाद को रोकने की रणनीति में वह अपनी सीमा में रह कर ही लड़ाई लड़ता था, लेकिन अब भारत ने एक रणनीतिक फैसला लिया है कि वह आतंकियों को खत्म करने के लिए सीमा पार भी जा सकता है.

बीते दिनों हुआ सर्जिकल स्ट्राइक इसकी मिसाल है. इस बात से पाकिस्तान काफी परेशान है. दूसरी बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अमेरिका का भी यह मानना है कि भारत को यह हक है कि वह सीमा पार या पाक अधिकृत क्षेत्र में पल रहे उन कट्टरपंथी समूहों पर हमले करने का, जिनको संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी समूह घोषित कर रखा है. यह बात भी पाकिस्तान को परेशान कर रही है और इसिलए वहां के आतंकी समूह सरकार पर दबाव बनाते हैं कि वह भारत के खिलाफ कुछ करे. तीसरी बात यह कि पूरे दक्षिण एशिया में पाकिस्तान बिल्कुल अकेला हो गया है. सार्क में भारत के हिस्सा न लेने को जिस तरह से बाकी सार्क देशों से समथर्न में मिला है, उससे भी पाकिस्तान पर एक अंतरराष्ट्रीय दबाव बना है, जिसके चलते सार्क सम्मेलन स्थगित करना पड़ा. भारत अपनी कूटनीतिक रणनीति में अब तक कामयाब होता दिख रहा है. ये सारे हालात पाकिस्तान को परेशान करने के लिए काफी हैं.

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