हरिद्वार में पितरों को यमलोक के लिए किया विदा
हरिद्वार यानि हरि का द्वार, लोग यहाँ गंगा स्नान कर पुण्य कमाने के साथ-साथ यहाँ लोग अपने पितरों की मु्क्ति के लिए भी आते हैं. हरिद्वार यदि पुण्य कमाने और मोक्ष पाने का तीर्थ है तो यह पितरों की प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने का तीर्थ भी है. पिछले 16 दिनों से पितृ यमलोक से धरती पर आये हुए थे और आज पितृ यमलोक के लिए विदा हो रहे हैं.
लोग पूरी श्रद्धा के साथ पितरों को यमलोक के लिए कर रहे हैं विदा माना जाता है कि यदि किसी के अपने पितरों की मृत्यु कि तिथि ना पता हो तो वह पितृ पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या को पितरों को पिंड दान तर्पण किया जाये तो पितरों को मुक्ति और मोक्ष जरूर मिलता है. इस दिन किया गया दान पुण्य कभी बेकार नहीं जाता है.
हरिद्वार यानि मुक्ति का तीर्थ, यही पर मिलता है पितरों को मोक्ष, यहीं पर मिलती है. भटकती आत्माओं को प्रेत योनि से मुक्ति. कहा जाता है कि भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से आश्विन मास की अमावस्या तक का पखवाड़ा पितरों का पखवाङा होता है. इन दिनों में अपने पितरों को पिंड दान और श्राद्ध तर्पण करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. पितृ प्रसन्न रहते है. जिससे घर में सुख शांति व समृद्धि आती है.
पुराणों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध पक्ष में किसी भी वजह से श्राद्ध नहीं कर पाता है. तो वह इस पक्ष के आखिरी दिन पितृ विसृजनी अमावस्या के दिन यदि पिंड दान श्राद्ध आदि कर ले तो पितरों को सदगति मिलती है. यह भी मान्यता है कि हरिद्वार में नारायणी शिला पर अपने सभी भूले बिसरों और अज्ञात पितरों का पिंड दान व तर्पण करने से उन्हें प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
पितृ विसर्जन अमावस्या आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या होती है, श्राद्ध यानि श्रद्धा के साथ किया गया दान, इसी को श्राद्ध कहते है. हरिद्वार का नारायणी शिला मंदिर, देशभर में पितृ कर्म के लिए तीन प्रमुख स्थानों से एक है. यहाँ पितरों के लिए श्राद्ध व पिंड दान आदि कराने का खास महत्व माना जाता है.
पितृ कर्म करने के लिए हरिद्वार आकर लोग पहले गंगा में स्नान कर खुद को पवित्र करते है और फिर करते है नारायणी शिला मंदिर मे अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं यहाँ की व्यवस्था से श्रद्धालु काफी खुश नज़र आये.