-200 डिग्री तापमान, करोड़ों सालों से नहीं पहुंची सूरज की रौशनी, जानिए चांद के साउथ पोल के बारे में सबकुछ
फेसबुक से साभार
नई दिल्ली। चंद्रयान 3 की चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अब उल्टी गिनती शुरू हो गई है। आज शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान-3 का विक्रम रोवर का प्रज्ञान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। इसके चंद्रमा पर लैंड करते ही भारत का डंका पूरी दुनिया में बजेगा। चंद्रयान की सफल लैंडिंग कई मायनों में खास है क्योंकि दक्षिणी ध्रुव में ऐसे कई खास रहस्य छुपे हुए हैं जिसकी जिज्ञासा हर किसी के मन में है।
यहाँ कुछ सवाल हैं लोगों के मन में… उन्हें सुलझाने का प्रयास करते हैं.
1. ये Moon Mission कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर – Moon Mission कई तरह के होते हैं.
i) Orbitor – इसमें Probe या satellite चाँद के चारों ओर चक्कर लगाता है
ii) Impacter – यह चाँद की सतह पर जा कर टकराता है
iii) Flyby – यहाँ चाँद के आस पास से हो कर गुजरना होता है, और space में आगे जाने के लिए चाँद के पास से जाना होता है.
iv) Lander – इसमें चाँद की सतह पर उतरना होता है
v) Rover – यह एक Device होती है, जो चाँद की सतह पर घूमती है… Pics लेती है और अन्य चीजों के sample लेती है.
vi) Crewed Mission – इसमें इंसान एक space shuttle में बैठ कर जाता है, चाँद पर उतरते हैं, फिर वहाँ से चीजों के sample लेते हैं और वापस धरती पर लौट जाते हैं.
2. 70 के दशक के बाद रूस और अमेरिका ने Moon Missions बंद कर दिए थे… फिर अचानक से Moon mission क्यों शुरू हो गए??
उत्तर – अमेरिका और रूस, दोनों ने ही 50 के दशक से ही चाँद पर मिशन भेजने शुरू कर दिए थे. इन्होंने Crewed Mission भी भेजे… उसके बाद इन्होने mission भेजने बंद कर दिए या बहुत कम कर दिए. इन दोनों देशों के अलावा भारत, चीन, जापान और European Space Agency, इटली, इजराइल, और यहाँ तक की UAE भी चाँद पर अलग अलग तरह के mission भेज चुके हैं…. हालांकि सफलता बहुत कम को मिली है.
जब 50 के दशक में space race शुरू हुई थी.. तब चाँद ही सबसे नजदीकी target था…..लेकिन समय के साथ साथ सभी की Priorities बदली…. Deep space, outer space exploration, Satellites Constellation creation और दूसरे planets को explore करने में लग गए सभी… और इसी कारण चाँद कहीं पीछे छूट गया. हालांकि अमेरिका इस बीच लगातार Moon Mission भेजता रहा……लेकिन Crewed mission 70 के दशक के बाद बंद हो गए.
चाँद पर फिर से जो interest जागा है… उसका कारण है चंद्रयान -1 द्वारा की गई खोज… जो अगले उत्तर में पढ़ेंगे.
3. भारत क्यों moon mission भेज रहा है… इसका फायदा क्या है??
उत्तर – भारत ने सबसे पहले 2008 में चंद्रयान -1 भेजा था…इसमें NASA का एक instrument लगा हुआ था, जिसका नाम था “Moon Mineralogy Mapper”.
इस mission के 2 मुख्य objective थे.
i) ISRO की technical abilities को परखना
ii) चाँद पर पानी की खोज करना.
इस mission के दोनों objectives पूरे भी हुए. जहाँ भारत दुनिया में तीसरा देश बना, जिसने चाँद की Surface पर Crash Landing की.. माने उसकी surface को छुआ.
और शायद भारत दुनिया का पहला देश बना जिसने चाँद के South Pole पर crash landing की.
दूसरी बात…चन्द्रयान पर लगे NASA के equipment ने चाँद पर पानी को खोज लिया था……ऐसे कई इलाके दिखे, जहाँ बर्फ या पानी के भण्डार होने की सम्भावना दिखी.
इसी वजह से भारत ने चंद्रयान-2 भी भेजा.. उसमे Lander भी था.. लेकिन technical issues के कारण वो crash land हुआ… वह भी South Pole पर ही गया.
चंद्रयान -3 भी South Pole पर ही जा रहा है…. और इस बार Lander के soft landing करने के chances काफी अच्छे हैं… और ऐसा होते ही भारत दुनिया का पहला देश होगा, जो South Pole पर land करेगा.
चंद्रयान -2 और 3 ISRO के लिए Technical Demonstrators हैं…. इसमें कई तरह की Technologies को जाँचा परखा जायेगा. Soft Landing करना आसान नहीं है.. वो भी चाँद की सतह पर, जहाँ Gravity अलग तरह से behave करती है… वहीं South Pole एक बेहद ठंडा और अंधेरा इलाका है… जहाँ बड़े बड़े गड्ढे हैं… वहाँ Probe Land करने का अर्थ है, कि भारत के पास भविष्य के Crewed Missions को करने लायक़ क्षमता है.
वहीं अगर भारत को वहाँ पानी और अन्य elements या minerals मिलते हैं, तो बहुत बड़ी खोज हो जायेगी.. भविष्य में इनका Extraction भी किया जा सकेगा… जिसमें भारत की बड़ी भूमिका होगी.
4. चाँद के South Pole में क्या ख़ास बात है??
उत्तर – अभी तक जितने भी Moon Mission हुए हैं, उनमे से आशिकांश चाँद के Equater के आस पास land हुए या crash हुए. यह इलाका सामने से दिखता है, यहाँ की सतह सपाट है, सामने से दिखती है, तापमान, मौसम आदि की जानकारी accurate होती है… इसलिए यहाँ land करना आसान है.
वहीं South Pole एकदम अलग इलाका है. चाँद के South Pole पर सूरज की रौशनी नहीं पहुँचती..कहते हैं कई अरबों सालों से यह इलाका अँधेरे में डूबा है, इसलिए इन्हे स्थाई छाया वाला क्षेत्र कहते हैं.
चाँद के ध्रुवीय क्षेत्र में बने गड्ढे अरबों वर्षों से सूर्य की रोशनी के बिना बहुत ठंडी अवस्था में बने हुए हैं.
इसका एक मतलब तो यही है कि यहाँ की मिट्टी में जमा चीजें अरबों सालों से वैसी ही हैं…. यहाँ पानी और अन्य कई तरह के Elements मिलने के अच्छे chances हैं.
ISRO इन चीज़ों की पड़ताल के लिए ही South Pole के पास उतरने की कोशिश कर रहा है. इसरो यहां लैंडर और रोवर्स उतारकर वहां की मिट्टी की जांच करने की कोशिश कर रहा है.
दक्षिणी ध्रुव के पास की मिट्टी में जमे हुए बर्फ़ के अणुओं की पड़ताल से कई रहस्यों का पता चल सकता है, Solar सिस्टम कैसे बना होगा, चंद्रमा और पृथ्वी के जन्म का रहस्य, चंद्रमा का निर्माण कैसे हुआ और इसके निर्माण के दौरान क्या स्थितियां थीं, यह जाना जा सकता है.
और अगर यह जानकारियां भारत के पास होंगी, तो वह Space Race में काफी आगे हो जायेगा.
इसके अलावा एक और बेहद महत्वपूर्ण factor है…. चंद्रयान -3 की cost मात्र 77 मिलियन डॉलर है… जो होती है करीब 620 करोड़ रूपए… जबकि अमेरिका द्वारा भेजे गए सबसे सस्ते Moon mission की कीमत थी 2.9 बिलियन डॉलर… जो होती है लगभग 25,000 करोड़ रूपए.
यानी भारत के mission अमेरिका से लगभग 40-45 गुणा सस्ते होते हैं.
NASA के पास बेहिसाब फंडिंग होती है, लेकिन फिर भी उसने अपने Space Mission कम कर दिए हैं, और अधिकतर काम Private players जैसे SpaceX को दे दिए हैं.. उसका एक बड़ा कारण Cost ही है.
भविष्य में यह Cost ही बहुत बड़ा Game Changer होने वाली है…. Technical Superiority तो ISRO के पास है ही.
चंद्रयान -3 की सफलता भारत को Best Among the Equals का दर्जा देगा… वहीं भविष्य की Space Race में एक बहुत बड़े प्लेयर के तौर पर establish कर देगा…. जो ना सिर्फ Technically सबसे आगे है, वहीं सबसे Cost Effective solutions भी देता है.