भ्रष्टाचार के प्रकरण बने अखिलेश के लिए संकट, गायत्री, यादव सिंह जैसे लोग थे इसके ब्रांड अम्बेसडर
लखनऊ। आगामी विधानसभा चुनाओं को लेकर बढ़ती सियासी तपिश के भ्रष्टाचार के प्रकरण अहम चुनावी मुददा बनने लगा है। यह हुआ है समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव के नजदीकी इत्र कारोबारी पीयूष गोयल के ठिकानों से इनकम टैक्स की रेड में मिली ढ़ाई सौ करोड़ रुपए की नगदी के चलते। उत्तर प्रदेश में किसी कारोबारी के यहां से 250 करोड़ से अधिक की नगद रकम इसके पहले कभी बरामद नहीं हुई थी। अखिलेश यादव के नजदीकी कारोबारी के घर में मिली करोड़ों रुपए की करेंसी को लेकर लोग आश्चर्य में हैं। ऐसे अब अखिलेश यादव की सरकार में हुए घोटालों पर लोग चर्चा करने लगे हैं। इस चर्चा में बीते दिनों विधानसभा में नोएडा में होने भूमि घोटाले को लेकर कैग रिपोर्ट पर ही लोगों के बीच बहस हो रही है। जनता के बीच अखिलेश सरकार में हुए भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर हो रही चर्चा अखिलेश के लिए संकट बन रही है।
वर्षों बाद यूपी के किसी चुनावों में भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर जनता में ठीक उसी तरह से बहस हो रही जैसे बोफोर्स घोटाले के समय हो रही थी। इस बार अखिलेश यादव के कार्यकाल में हुए नोएडा भूमि घोटाला, गोमती रिवर फ्रंट घोटाला, एंबुलेंस घोटाला, खनन घोटाला, पेंशन घोटाला, जेपीएनआईसी घोटाला और घोटालेबाज इंजीनियर यादव सिंह तथा खनन मंत्री गायत्री प्रजापति द्वारा भ्रष्टाचार के जरिए की गई कमाई की चर्चा हो रही है। मुलायम सिंह तथा मायावती के कार्यकाल में हुए घोटालों पर भी जनता के बीच चर्चा हो रही है, परन्तु अखिलेश सरकार के शासन काल में हुए भ्रष्टाचार के प्रकरणों पर लोग ज्यादा बहस कर रहे हैं। ऐसी चर्चाओं में कैग की रिपोर्ट में नोएडा में लैंड अलॉटमेंट से जुड़े कार्यों, फैसलों, नतीजों पर खूब बहस हो रही है। कैग की रिपोर्ट के आधार पर कहा जा रहा है कि नोएडा में हुए भूमि आवंटन घोटाले में कदम कदम पर अनियमितताएं की गई। इस वजह से न केवल सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ बल्कि कुल प्रस्तावित 1.3 लाख ग्रुप हाउसिंग फ्लैट्स के 44 फीसदी यानी 57000 फ्लैट्स ऑक्युपेंसी सर्टिफिकेट नहीं पा सके हैं। इन फ्लैटों के बायर्स आज भी अपने फैसले पर पछताने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे। सीएजी रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा अथॉरिटी ने इस दौरान नियम-कानून में मनमाने ढंग से फेरबदल किए।
लोग यह भी कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी का ब्रांड ही भ्रष्टाचार था। सपा के हर कार्यकाल में भ्रष्टाचार का एक नया रिकॉर्ड बना। गायत्री प्रजापति, यादव सिंह जैसे लोग इसके ब्रांड अम्बेसडर थे। भ्रष्टाचार के मामले इनका चरित्र और चिंतन बिल्कुल समाजवादी था। इस मामले में सपा ने बुजुर्ग, युवा बेरोजगार और मरीज किसी को भी लूटने से नहीं बख्शा। राज्य के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह भी इससे सहमत हैं। वह भी कहते हैं कि सपा के मुखिया अखिलेश यादव और उनके लोगों को भले न याद हो, पर लोगों के दिलो-दिमाग पर भ्रष्टाचार ये काले कारनामे अमिट रूप से चस्पा हैं। लोगों को बखूबी याद है कि अखिलेश के पांच साल के कार्यकाल किस तरह बीपीएल कार्ड धारी गायत्री प्रजापति मंत्री बनने के साथ उनकी सरपरस्ती में अरबपति बन गया। भ्रष्टाचार के अम्बेसडर चीफ इंजीनियर यादव सिंह को बचाने के लिए किस तरह सपा सरकार ने हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। बेरोजगारों के भत्ते का करीब 20 करोड़ रुपये हजम कर गए और डकार तक नहीं ली। युवाओं को लैपटॉप देने का लॉलीपॉप दिया था उसमें भी करीब 12 करोड़ रुपए का घोटाला कर डाला। ऐसे लोग न जाने किस मुंह से बेशर्मों की तरह बेरोजगरों और युवाओं की बात करते हैं? इन्होंने तो मरीजों की जान की कीमत पर भी घोटाले किए। 2000 करोड़ रुपए का एम्बुलेंस घोटाला इसका सबूत है। गोमती नदी के सुंदरीकरण के नाम पर और जेपीआईएनसी के नाम पर क्रमशः 1500 और 550 करोड़ रुपए से अधिक के घोटाले आज भी हर किसीके जुबान पर हैं। रही बात तो भजपा की तो पारदर्शिता और बिना भेदभाव के वह सबके विकास के प्रति प्रतिबद्ध है। सिद्धार्थनाथ सिंह की तरह ही कांग्रेस के नेता भी अखिलेश सरकार में हुए भ्रष्टाचार को जनता के बीच रख रहे हैं और अखिलेश के नजदीकी इत्र कारोबारी के यहां से मिली करोड़ों रुपए की नगद करेंसी को फोटोग्राफ लोगों को व्हाट्सअप कर रहें है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और जनता के बीच हो रही ऐसी चर्चाओं से अखिलेश यादव का संकट बढ़ रहा है और इसका संज्ञान लेते हुए अब अखिलेश यादव ट्वीट कर अपना पक्ष रख रहें हैं।