लेख : क्या मोदी 21वीं सदी के नेहरू हैं ?
आज जब मै यह लेख लिख रहा हूं तो वह ऐसा काल है जबकि विशेषकर राजनीति से जुड़े लोग सत्य को लेकर असहिष्णु हो चुके हैं। सत्य की अपने ढंग से व्याख्या करने का चलन है। फिर भी प्रसंग ऐसा है कि यह लेख लिखने की ओर प्रेरित कर रहा। जीवन तुलना से चलता है। यह तुलना आगे बढ़ने की दिशा भी देती है और कष्ट भी। ऐसे में तुलना से इंकार नहीं करना चाहिए।
नेहरू और मोदी में समानता या असमानता ढूंढने को लेकर आज एक घटना घटित हुई। दरअसल पूरा का पूरा एक वर्ग नेहरू को चीन सम्बन्धी नीतियों के लिए विलेन घोषित करता रहा। नेहरू समर्थक धड़ा गाहे बगाहे इसको लेकर ऐतराज भी जताता रहा, लेकिन आज गांधी नेहरू खानदान के चस्मों चिराग और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब नरेंद्र मोदी को सरेंडर मोदी कहा तो अचानक ही मुझे फिर दोनों नेताओं में समानता की बात सही लगी। यही आरोप तो नेहरू पर भी था।
बात नेहरू की करते हैं। वाट्स एप विश्व विद्यालय के कट पेस्ट नेहरू को एक एय्याश और रंगमिजाज आदमी घोषित करतें हैं। जिनका काम सिर्फ उपभोग करना था। लेकिन नेहरू बैरिस्टर थे। खूब अमीर परिवार था उनका। ऐसा परिवार, जिन्हें खानदानी रईस कहा जाता है। गांधी के असर में नेहरू फ्रीडम स्ट्रगल में शामिल हुए।1922 में पहली बार जेल जाने और 1945 में आखिरी बार रिहा होने के बीच वो कुल नौ बार जेल गए। सबसे कम 12 दिनों के लिए। सबसे ज्यादा 1,041 दिनों तक। ऐसा नहीं कि राजनीतिक बंदी होने के नाते जेल में बड़ी अच्छी सुविधाएं मिलती हों। वो अंग्रेजों की जेल थी और उनकी सजा में सश्रम कारावास भी था। उधर मोदी एक गरीब घर में पैदा हुए। चाय बेंची। ग़रीबी झेली। उनके इंटरव्यू की माने तो भिक्षाटन भी किया। आपातकाल में जेल भी गए। यानी दोनों की जवानी त्रासदी में बीती। हालांकि नेहरू का बचपन जरूर मोदी से अच्छा रहा।
नेहरू कांग्रेस का पहला बड़ा चुनावी चेहरा थे। पार्टी ने उनके नाम और काम, दोनों का इस्तेमाल वोट बटोरने के लिए किया। नेहरू का जलवा हुआ करता था। उत्तर से दक्षिण तक। पूरब से पश्चिम तक। जम्मू-कश्मीर हो या फिर तमिलनाडु, नेहरू के समर्थक हर जगह मौजूद थे। इसका फायदा पार्टी को आजादी के बाद के दिनों में होता रहा। कुछ ऐसी ही स्थिति मोदी को लेकर भी है। ब्रांड मोदी आज भाजपा से बड़ा है। नरेंद्र मोदी के नाम का इस्तेमाल विधानसभा चुनावों में हो रहा है। ग्राम पंचायत उम्मीदवार मोदी की फोटो लगाकर होर्डिंग लगाते हैं।
नेहरू का सिक्का कांग्रेस पार्टी में चलता था।उनके आगे बाकी सभी नेता फीके नजर आते। जब तक जीवित रहे तब तक उनके नेतृत्व पर ना कभी सवाल उठा और ना ही किसी ने उन्हें चुनौती देने की हिम्मत जुटाई। सरकार के साथ वह संगठन में भी मजबूत पकड़ रखते। मोदी ने भी यह मुकाम हासिल कर लिया है। सरकार और संगठन दोनों के फैसले उनकी इच्छा के बिना नहीं होते। सरकार में कुछ मंत्रियों को छोड़कर बाकी के चेहरे नहीं दिखते हैं। पार्टी के सभी नेता अभी दूसरी कतार में हैं और अभी दूर-दूर तक उन्हें कोई चुनौती देता हुआ भी नहीं दिख रहा। दोनों ही विरोधी नहीं रखना चाहते।
आधुनिक भारत का निर्माण नेहरू की सोच थी यह जगजाहिर है। देश को औद्योगिक विकास के रास्ते ले जाना हो या फिर गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना। मोदी का मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट भी नेहरू के विजन से प्रेरित नजर आता है। मोदी देश को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाना चाहते हैं, ऐसा नेहरू ने भी सोचा था। नेहरू आर्थिक स्वावलंबन के पक्षधर थे और मोदी आत्मनिर्भर भारत की बात कहते हैं। नेहरू योजना आयोग चाहते थे मोदी नीति आयोग चाहते हैं।
नेहरू की जैकेट प्रचलन में थी। मोदी ने उसकी ब्रांडिग की। आज मोदी की तरह सदरी होना भाजपाई होने की निशानी है। नेहरू गाय पालते थे, मोदी भी गो सेवा करते हैं। नेहरू कुंभ स्नान को आए थे मोदी ने भी यह कार्य किया। नेहरू अपनी छवि को पूर्ण सेकुलर बनकर विश्व नेता का खिताब चाहते थे, मोदी ने भी सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास नारा देकर इस दिशा में कदम बढ़ाया।
मुझे नाम व पुस्तक नहीं याद आ रहा। लेकिन प्रसंग है अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति के सुरक्षा सलाहकार ने एक पुस्तक लिखी, जिसमें उसने नेहरू को सबसे उभरता हुआ ग्लोबल लीडर बताया। यहां से चीन के दिमाग की बत्ती जल गई। चीन ने भारत पर छद्म युद्ध थोप कर नेहरू की उस छवि को धूमिल करने और नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। यहां मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगा कि नेहरू चीन को लेकर सदैव सशंकित रहे। यही वजह रही कि चीन को सीमाओं और दायरों में बांधने के लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के स्थाई सदस्य बनने का मार्ग प्रशस्त किया। अपनी इस कार्यवाही का सटीक जवाब वह आजीवन नहीं दे सके। कमोबेश यही स्थिति आज नरेंद्र मोदी को लेकर है। विश्व की तमाम संस्थाएं उन्हें ग्लोबल लीडर के तौर पर देख रही हैं। ऐसे में चीन ने अचानक से फिर इतिहास को कुरेदा है। हालांकि 2020 का भारत काफी अलग है।
मुझे लगता है लेख लंबा हो रहा। मै विराम भी दूंगा। मै पूर्वजों को अपशब्द कहने या सुनने का पक्षधर नहीं रहता। हालांकि सियासत में हर बात जायज होती है। नेहरू ने गांधी की हत्या और राष्ट्र विभाजन की त्रासदी, चीन से युद्धों की क्षति के बावजूद अजेय योद्धा का खिताब हासिल किया सियासी रूप से। उन्होंने 17 साल राज किया और मृत्यु के बाद ही उनका सिंहासन खाली हुआ। मीडिया और सोशल मीडिया के अभाव के बीच उस समय रूस जैसे देशों ने उनका रोड शो कराया। आज मोदी के कई मिलियन फॉलोअर हैं।मोदी जब से सियासत कर रहे अजेय हैं। उनके साथ भी गोधरा की त्रासदी थी। मोदी को भी 19 साल अजेय रहने का सुख मिल चुका है।
बातें बहुत हैं, लेकिन बातों का क्या।
नोट – लेख में लेखक ( अमित सिंह ) ने खुद के विचार व्यक्त किए हैं। लेख कैसा लगा ज़रूर बताएं ।