चमगादड़ नहीं इस जानवर से इंसानों में फैला कोरोना वायरस
कोरोना वायरस पूरे विश्व में तेजी से लोगों को अपना शिकार बना रहा है। इस खतरनाक वायरस से अब तक लाखों लोगों की मौत हो चुकी है।
चमगादड़ों में पाया जाता है कोरोना वायरस
वैज्ञानिक लगातार इस नए वायरस पर शोध कर रहे हैं। अब ताजा शोध में एक नई बात निकलकर सामने आई है। अब तक की गई रिसर्च में यह तो साफ हो चुका है कि कोरोना वायरस चमगादड़ों में पाया जाता है।
यह वायरस इंसानों तक पहुंचा कैसा
लेकिन अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि यह इंसानों तक पहुंचा कैसा। नई स्टडी के मुताबिक कोरोना वायरस पहले चमगादड़ो से कुते में आया फिर इंसानों में।
कोरोना वायरस कोविड-19 यानी SARS-CoV-2
कोरोना वायरस कोविड-19 यानी SARS-CoV-2 से पहले भी दो और कोरोना वायरस ने इंसानों को अपना शिकार बनाया था। ये थे SARS-CoV और MERS-CoV. ये वायरस भी चमगादड़ों से निकलकर किसी अन्य जानवरों से होते हुए इंसानों में पहुंचे थे।
चमगादड़ से पहले कुत्ते में आया फिर इंसानों को
कनाडा के ओटावा यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी प्रोफेसर जुहुआ जिया की रिसर्च के मुताबिक कोरोना वायरस चमगादड़ से पहले कुत्ते में आया फिर इंसानों को अपना शिकार बनाना शुरू किया।
जिंक फिंगर एंटीवायरल प्रोटीन जैप (ZAP)
14 अप्रैल को उनकी एनालिसिस मॉलीक्यूलर बायोलॉजी एंड एवोल्यूशन में प्रकाशित हुई। जिया ने अपने विश्लेषण में बताया है कि इंसानों के शरीर में एक प्रोटीन होता है जिसे जिंक फिंगर एंटीवायरल प्रोटीन जैप (ZAP) कहते हैं।
जेनेटिक कोड साइट CpG
जैप जैसे ही कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड साइट CpG को देखता है। उसपर हमला करता है। यहीं पर वायरस अपना काम शुरू करता है और वह इंसान के शरीर में मौजूद कमजोर कोशिकाओं को खोजता है।
कुत्तों में जैप कमजोर होता है
जिया ने जेनेटिक कोड साइट CpG, ZAP समेत कई जेनेटिकल मॉलीक्यूल्स का अध्ययन किया है। उसी के आधार पर उन्होंने बताया है कि कुत्तों में जैप कमजोर होता है। वह कोरोना वायरस के सीपीजी साइट से लड़ नहीं सकता। कुत्ते की आंतों में यह वायरस अपना घर बना लेता है।
चीन में कुत्ते जैसे कई तरह के जानवर खाए जाते
कुत्ते के जरिए फिर यह इंसानों में पहुंच जाता है। जैसा कि आपको पता है कि चीन में कुत्ते जैसे कई तरह के जानवर खाए जाते हैं। लेकिन, जिया की इस थ्योरी से कई वैज्ञानिक सहमत नहीं है।
थ्योरी और जेनेटिक डेटा एकदूसरे को सपोर्ट नहीं करते
सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर लिउनी पेनिंग्स कहते हैं यह थ्योरी और जेनेटिक डेटा एकदूसरे को सपोर्ट नहीं करते। मैं इसे नहीं मानता।
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