उत्तराखंड की विरासत और मासूमियत से लबरेज़ है – फूलदेई, छम्मा देई
देहरादून : 14 मार्च यानी आज के दिन चैत्र मास की संक्रान्ति का पर्व मनाया जाता है, आज से भारतीय कलैंडर का पहला दिन माना जाता है। आज के दिन फूलदेई त्योहार मनाया जाता है। आज का दिन बच्चों के लिए विशेष रूप से खास होता है। बच्चे फूलदेई त्योहार का बेहद बेसब्री से इंतजार करते है।
‘रिंगाल’ से बनी टोकरी
जैसे ही सुबह होती है बच्चे बुराँस, फ्योंली, सरसों, कठफ्योंली, आड़ू, खुबानी, भिटौर, गुलाब आदि के फूलों को तोड़ने के लिए अपने अपने घरों से निकल जाते है। बच्चे इन फूलों को घर लाकर ‘रिंगाल’ से बनी टोकरी में सजाते हैं।
इसके बाद बच्चे घर-घर जाते हैं और कहते है –
“फूलदेई, छम्मा देई,
दैंणी द्वार, भर भकार,
य देई में हो, खुशी अपार,
जुतक देला, उतुक पाला,
य देई कैं, बारम्बार नमस्कार.
फूलदेई, छम्मा देई.
इन पंक्तियों का अर्थ
इन पंक्तियों का अर्थ है, “देहरी के फूल भरपूर और मंगलमयी हो, घर की देहरी क्षमाशील हों और सबकी रक्षा करें, सबके घरों में अन्न का पूर्ण भंडार हो।”
आध्यात्मिक त्यौहार
लोग बच्चों को आशीर्वाद देकर गुड़, चावल, मिठाई और पैसे दक्षिणा के रूप में भेंट करते हैं। शाम के वक्त पारम्परिक गढ़वाली-कुमाउँनी पकवान बनाकर आस-पड़ोस में बाँटे जाते हैं। फूल संक्रान्ति बच्चों को प्रकृति प्रेम और सामाजिक चिंतन की शिक्षा बचपन से ही देने का एक आध्यात्मिक त्यौहार है।