दिल्ली में भाजपा की मुश्किलें और भी बढ़ती नज़र आ रही हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चुनाव प्रबंधन को संभालने और शाहीन बाग को चुनावी मुद्दा बनाने से भाजपा के वोटों में तो बढ़ोतरी हुई लेकिन सीटों में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हुई। भाजपा मात्र आठ सीटों पर सिमट गई।
पार्टी की इस दुर्गति की सबसे बड़ी वजह दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुकाबले मजबूत स्थानीय चेहरे का न होना माना जा रहा है। दिल्ली भाजपा स्थानीय नेतृत्व को मजबूत करने की जगह पूरी तरह से केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर रही, जिसका खामियाजा उसे भुगतना पड़ा।
सीएम कैंडिडेट घोषित न करना
दिल्ली में भाजपा पहली बार मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए बिना चुनाव मैदान में उतरी थी और यह प्रयोग सफल नहीं रहा। चेहरा घोषित नहीं करने के पीछे दिल्ली में भाजपा नेताओं की गुटबाजी बताई जा रही है। पार्टी के पास कोई ऐसा सर्वमान्य नेता नहीं था, जो सभी को साथ लेकर चल सके।
गुटबाजी भी एक बड़ी वजह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे पार्टी लोकसभा चुनाव में सातों सीटें दोबारा जीतने में सफल रही थी। इसके बाद केंद्रीय नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव में भी मोदी की लोकप्रियता के सहारे उतरने का फैसला किया और किसी को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया।
टिकट का जुगाड़
वह केजरीवाल सरकार के काम को प्रचारित करने के साथ ही लोगों को यह बताने में सफल रहे कि भाजपा के पास केजरीवाल के मुकाबले कोई नेता नहीं है। इसके साथ ही दिल्ली भाजपा के अधिकांश पदाधिकारी संगठन की जिम्मेदारी संभालने के बजाय अपने टिकट की जुगाड़ में लगे रहे।
अनधिकृत कॉलोनियों का लाभ
अपने नेताओं को एकजुट करके चुनाव की तैयारी में लगाने के लिए भाजपा नेतृत्व ने सितंबर माह में ही केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को दिल्ली का चुनाव प्रभारी और केंद्रीय राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी व नित्यानंद राय को सह प्रभारी बनाकर काम पर लगा दिया था। बावजूद इसके गुटबाजी नहीं थमी। यही कारण है कि केंद्र सरकार द्वारा अनधिकृत कॉलोनियों में लोगों को मालिकाना हक देने के फैसले को भी पार्टी जनता तक पहुंचाकर उन्हें अपने साथ नहीं जोड़ सकी।
मुफ्त योजना
भाजपा नेतृत्व को उम्मीद थी कि AAP की मुफ्त बिजली-पानी व महिलाओं की मुफ्त बस यात्रा योजना के जवाब में उनका यह दांव कारगर साबित होगा, लेकिन दिल्ली के नेता इसे भुनाने में असफल रहे। इस स्थिति को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने पूरे चुनाव अभियान को अपने हाथ में ले लिया। अमित शाह ने खुद धुआंधार चुनाव प्रचार किया।