वर्तमान में जनसंख्या नियंत्रण देश के लिए एक बड़ी चुनौती
लखनऊ| कुछ दिनों पूर्व आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण के सन्दर्भ में एक विचार व्यक्त किया,जिसके बाद उस पर तीखी प्रतिक्रिया आरभ हो गयी। हालांकि उन्होंने उस बात को फिर दूसरे ढंग से स्पष्ट भी किया। पिछलें वर्ष पन्द्रह अगस्त को राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने भी जनसंख्या नियत्रंण के सन्दर्भ में विचार व्यक्त किये थे। किन्तु हमारे देश में जनसंख्या नियंत्रण की बात का जिक्र होने के साथ ही, जैसी कि आशंका होती है, उस पर राजनीति भी आरम्भ हो जाती है इस समस्या की वास्तविकता को देखने के बजाय अभी भी इसे राजनीतिक नफा नुकसान के नजर से ही अधिकतर राजनीतिक दल देखते आ रहे हैं। किन्तु इस विषय पर लम्बी समय तक चुप्पी बनाये रखना अब देश के हित में नही है।
वर्ष 1911 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या एक अरब इक्कीस करोड़ से भी अधिक थी। आजादी के बाद 1951 के जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 36 करोड़ के आसपास थी । तब से यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है वर्तमान में भारत की जनसंख्या एक अरब 38 करोड़ 80 लाख से भी ऊपर हो गयी है। यह संख्या पूरी दुनिया की कुल जनसंख्या का साढ़े सत्रह प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसी आशंका है कि 2027 वर्ष तक हमारा देश पूरी दुनिया में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश हो जायेगा। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जिसके लिए न तो हम तैयार हैं और न ही यह किसी प्रकार से देश के हित में कहा जा सकता है। इस उपलब्धि पर गर्व करने की तो कोई बात ही नही है।
देश के स्वतंत्र होने के समय साक्षरता 18 प्रतिशत से कुछ अधिक थी। अर्थात देश के आजाद होने के समय भारत में कुल 29 करोड़ से अधिक निरक्षर थें। आज साक्षरता 74 प्रतिशत है और फिर भी वर्तमान मे 36 करोड़ से भी अधिक निरक्षर है। यह संख्या अपने आप में काफी कुछ बातें बता दे रहा है। यदि हम विश्व के अन्य देशों की जनसंख्या पर नजर डाले, तो हम पायेंगें कि इटली, यूके, फ्रांस, तुर्की, जर्मनी जैसे देशों की जनसंख्या छः से आठ करोड़ के बीच ही है। विश्व की महाशक्ति रूस की भी जनसंख्या 15 करोड़के नीचे ही है। इसी प्रकार से यदि अमेरिका देश से जनसंख्या की तुलना करें तो भारत देश की जनसंख्या उससे एक अरब से भी अधिक है। ये सभी देश पूरी दुनिया मे आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक शक्ति के तौर पर छाये हुए हैं। वर्तमान में चीन को छोड़ करके अन्य सभी देशों की जनसंख्या भारत से हम दस बीस करोड़ नही, वरन् पूरे एक अरब सें भी अधिक कम हैं। अब स्थिति यह है कि शीघ्र ही हम सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश केरूप में देखे जायेंगें।
जनसंख्या देश की एक शक्ति है, इसमें कोई दोराय नही है। किन्तु अभी तक जो जनसंख्या की शक्ति प्राप्त हो गयी है, उसकी ही देख रेख एवं प्रबन्धन सही प्रकार से नही हो पा रहा है। उसे सही शिक्षा, स्वास्थ्य, भोजन आदि नही मिलने से वह अब कई अन्य प्रकार की समस्याओं का मूल कारण बन रहा है। किन्तु, हम युवा हैं, हमारे देश में युवा शक्ति अधिक है, ऐसी बातें कह करके कब तक खुद को भुलावे में रखेगें। जो वास्तविक समस्याहै, हम उसे भले ही न देखे, किन्तु उसके दुष्परिणाम को तो लगातार भुगतना ही पड़ रहा है।
जनसंख्या वृद्धि का दुष्परिणाम हर तरफ दिख रहा है। इसके कारण विविध प्रकार के सामाजिक अंतर क्रियाओं की संख्या इतनी अधिक बढ़ गयी है कि उनमें क्या अच्छा है और क्या बुरा है, इस बात का निर्धारण कर पाना भी बहुत ही कठिन हो गया है। देश के विविध जनमाध्यमों में इसके दुष्परिणाम की एक झलक नित्य दिखता है। वर्तमान में बस, ट्रेन, सड़क से ले करके घर विविध प्रकार के पूजा, पर्यटक आदि स्थलों पर लोगों भीड़ के रूप में जनसंख्या के दबाव को देखा जा सकता है। प्रकृति के प्रत्येक अंग पर हर प्रकार से अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। शहर एवं गांव सभी जगहों पर पर्यावरण आदि की नये नये ढंग की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। विविध प्रकार की सामाजिक, आर्थिक आदि समस्याएं इस प्रकार से होने लगी हैं कि पूरा सामााजिक ताना बाना टूटता दिख रहा है। व्यक्ति के लिए सही ढंग से जीवन जीना संभव ही नही हो पा रहा है। मानव जीवन बहुत ही संघर्षमय होता जा रहाहै। मानवीय मूल्यों की कीमत पर जनसंख्या वृद्धि जारी है।
बढ़ती जनसंख्या के कारण इसके विविध प्रकार के अन्य दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं । किसी भी प्रकार के विकास कार्यक्रम को सफल बनाना लगभग असंभव हो गया है। अब कोई भी व्यवस्था लोगों की लगातार बढ़ती आवश्यकता को पूरी ही नही कर पा रही है। वर्तमान में बढ़ती दुर्घटनाओं एवं अपराधों के पीछे एक बड़ा कारण बेतहाशा जनसंख्या वृद्धि भी है। विविध प्रकार की सामाजिक, पारिवारिक एवं मानवीय मूल्यों के क्षरण काएक मुख्य कारण बढती जनसंख्या भी है। सामाजिक असहिष्णुता, नकारात्मक सामाजिक अंतरक्रिया होने केविभिन्न कारणों में बढ़ती जनसंख्या एक मुख्य कारण है।
वर्तमान जनसंख्या के लिए एक तरफ खाद्यान, पानी,स्वास्थ्य, शिक्षा आदि आधारभूत आवश्यकताओं की समुचित व्यवस्था संभव ही नही हो पा रही है, और उसमेंएक बहुत बडी संख्या में नियमित तौर नयी जनसंख्या शामिल होती जा रही है। वर्तमान में राजनीतिज्ञों को बढ़ती जनसंख्या केदैनिक दुष्प्रभाव का बहुत प्रत्यक्ष तौर पर एहसास नही होपाता है, क्योकि स्वयं उनको सभी जगहों पर विशेषाधिकार प्राप्त है। इसलिए सड़क पर चलने से लेकर के अन्य जगहों पर उन्हे किसी प्रकार की परेशानी नही होती है। उन्हे अपने तात्कालिक लाभ के आगे कोई और दूरदर्शिता भी नही दिखानी है। वे उसके दुष्परिणामों के प्रतिभले ही अनजान न हो , किन्तु उसके प्रति आंखें भी मूंदे हुए है।
वर्तमान में जनसंख्या नियंत्रण करने का कार्य देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन गयी है। किन्तु इसके प्रति जिस प्रकार की उदासीनता दिख रही है, वह भी अपने आपमें बहुत ही चिन्तनीय है। जनसंख्या नियंत्रण की बात आते ही इसे एक राजनीतिक मामला बना दिया जाता है या मान लिया जाता है। इसे धर्म आदि के नजरिये से भी देखा जाताहै। इस कारण अधिकतर नेता इस समस्या पर बोलनानही चाहते हैं। वही पर, कुछ लोग इसे राजनीतिक हथियारके तौर पर इस्तेमाल करते हैं। यह देश की एक गंभीर संमस्या है और इसे हल किये जाने की जरूरत है, इसकेप्रति अधिकतर राजनीतिक दल चुप्पी साधे हुए है।
जनसंख्या नियंत्रण हेतु पिछली सदी के सत्तर के दशक में चलाये गये अभियान से राजनीतिक स्तर पर एकऐसा सबक मिला कि राजनीतिज्ञ अब इसके बारे में विचार एवं बातें करना ही छोड़ दिये है। किन्तु यह किसी भीप्रकार से समझदारी वाला व्यवहार नही है। देश कीजनसंख्या नियंत्रण का विचार उस समय भी गलत नही था और उसके लिए किये जाने वाले उपाय भी सही थे । किन्तु उसका क्रियान्वयन गलत रहा और उसी की चर्चा अधिक हुई। किसी भी प्रकार के अच्छी योजना के क्रियान्वयन में कई बार त्रुटियां भी होती हैं, किन्तु इसका अर्थ यह यह नही है कि सही लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अन्य प्रकार के वैकल्पिक एवं बेहतर प्रयास के दरवाजे भी बन्द कर दिये जाये। आखिर इस समस्या का समाधान तो करना ही है।
ऐसा प्रतीत होता है कि परिवार नियोजन के सन्दर्भ में पूर्व में मिले सबक को सभी राजनीतिक दलों ने एकसीख के तौर पर अपना लेने के साथ ही इसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करना आरम्भ कर दिया। यही कारण है कि परिवार नियोजन के संदर्भ में देर सवेर बोलने वाले राजनीतिज्ञों के प्रति दूसरे राजनीतिज्ञ एक नकारात्मक एवं शंकालु धारणा ही विकसित करते हैं। अब इस बात परविचार करने के लिए कोई राजनीतिज्ञ आगे नही आ रहा है जो कि इस समस्या को राष्ट्र की एक समस्या के तौर पर देखें और इसका समाधान ढुढ़ने के लिए ईमानदारी सेप्रयास करे। यदि देश में भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, सामाजिक संघर्ष आदि की गंभीर समस्याएं हैं, तो जनसंख्या वृद्धिसभी समस्याओं को और बढ़ाने वाली और इन समस्याओंके मूल कारण के रूप में दिख रही है। कोई भी विकासकार्यक्रम बढ़ती जनसंख्या के सामने बेकार हो जा रही है।
दुनिया के विकसित देशों में जनसंख्या वृद्धि तोकोई समस्या ही नही है । किन्तु बहुत से विकासशील देशों में इस समस्या से निपटने के लिए उपाय काफी पहले से किये जाने लगे हैं। ईरान, इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम देशों में भी इस समस्या से निपटने के लिए वर्षों पहले से कार्यक्रम चला रहे हैं। वे इसमें बहुत सफल भी हैं। ईरान में तो वर्ष 1990 से ही परिवार नियोजन कार्यक्रम सफलतापूर्वक चलाया जा रहा है। वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या को सबसे पहले एकसमस्या के तौर पर देखने की आवश्यकता है। इसके बारे मेंराजनीतिक तौर पर बयान देने के बजाय सभी लोगों को इसके प्रति सचेत होने की जरूरत है। वे लोग जोजनसंख्या वृद्धि के प्रति शांत हैं अथवा जाने अनजाने मेंइसके पक्ष में बयान दे रहे हैं, वे स्वयं छोटे परिवार केसिद्धान्त का ही पालन करते हैं, क्योकि वे जानते हैं कि यहउनके एवं आने वाली पीढ़ी के हित में हैं। किन्तु यह बात पूरे समाज एवं देश को ध्यान में रख करके सोचना चाहिए।
जनसंख्या नियंत्रण के सन्दर्भ में विविध प्रकार की गलत अवधारणाएं समाज में अभी भी प्रचलित हैं। कुछ लोग सन्तान को इसे ईश्वर की मर्जी मानते हैं। यद्यपि विविध प्रकार की बीमारियों को वे ईश्वर की मर्जी नही मानते हैं और उसका इलाज कराते हैं। किन्तु इसके नियंत्रणकी बात आते ही वे समाज को विविध प्रकार से गुमराह करना शुरू कर देते हैं। इसी प्रकार बहुत से लोग इसे धर्म से या फिर जनसंख्या अनुपात से जोड़ करके देखने की कोशिश करते हैं। यदि किसी का धर्म से वास्तविक लगाव है, तो अपने धर्म से जुड़े लोगों के लिए सुखमय परिवार एवं जीवन कीकामना करे, न कि परिवार बढ़ा करके उन्हे कस्टमय जीवन के लिए मजबूर करे। यह भी सत्य है कि परिवार नियोजन की सीख किसी शिक्षित एवं समझदार व्यक्ति को देने की आवश्यकता नही होती है। किन्तु कुछ लोग अशिक्षित परिवार को ही सभी प्रकार से गुमराह करते हैं। इसी प्रकार से कुछ लोगों का भ्रामक तर्क यह भी होता है कि जब सरकार सन्तान के भरण पोषण की जिम्मेदारी नही लेती है तो फिर रोक लगाने की बात क्यों कहती है। वे भूल जाते है कि प्रकृति के स्रोत सीमित हैं।
जनसंख्या नियंत्रण कार्य की दिशा में उचित पहल किया जाना आवश्यक हो गया है। इसके बारे में बहुत ही व्यवस्थित ढंग से रणनीति बना करके कार्य करने की आवश्यकता है । इसे जाति, धर्म से जोड़ने के किसी भीगलत प्रयास को सार्थक बहस से खत्म किया जाना चाहिए। किन्तु इसमें जिस कार्य को सबसे पहले करने की आवश्यकता है, वह यह है कि लोगों के बीच इसके बारे में विविध प्रकार के भ्रान्तियों को समाप्त किया जाये। उन्हें इसबात को बताया जाये कि यह उस व्यक्ति , परिवार के हीहित में है कि उसका आकार छोटा हो। जनसंख्या कीबेतहाशा वृद्धि से हो रही परेशानियों के बारे में जनसामान्य को लगातार बताया जाना चाहिए। इसी केसाथ सभी प्रकार के माध्यमों पर इसके बारे में नियमित तौर पर जानकारी दी जानी चाहिए। इसके पक्ष में चर्चा करके जनमत तैयार हो जाने पर ही इसका सही प्रकार सेक्रियान्वयन संभव है।
डा0 अरविन्द कुमार सिंह, असिस्टैंट प्रोफेसर, बीबीए विश्वविद्यालय, लखनऊ