VIDEO : उत्तराखंड के इस मंदिर में एक दानव के साथ होती है भगवान शिव की पूजा
देवभूमि उत्तराखंड जहां देवी देवताओं का वास हैं यहां कण-कण में देव विराजते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं उत्तराखंड की देवभूमि में एक प्राचीन मंदिर में देवताओं के साथ साथ असुर की भी पूजा होती है जी हां पौड़ी गढ़वाल के पैठाणी राठ क्षेत्र में एकमात्र शंकराचार्य के द्वारा स्थापित राहु मंदिर स्थित है।
यह एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां राहु और शिव एक साथ वास करते हैं स्कंद पुराण के केदारखंड में इस मंदिर का वर्णन भी है कहा जाता है महाभारत के बाद जब पांडव स्वर्गारोहिणी की ओर जा रहे थे तो उन पर राहु दोष लग गया था जिसके बाद पांडवों के द्वारा राहु दोष से मुक्ति पाने के लिए राहु की पूजा की गई थी यह उत्तर भारत का एकमात्र राहु मंदिर है जिसका निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य के द्वारा किया गया था। जिस शैली मैं केदारनाथ मंदिर बनाया गया है उसी शैली में यह राहु मंदिर भी बनाया गया है।
ऐसी मान्यता है कि यहां शिव के दर्शन करने से राहु दोष से मुक्ति मिल जाती है सावन के महीनों में बैल दान करने से यहां सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है इस मंदिर के बारे में एक और कहावत भी है कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन के दौरान राहू ने देवताओं का रूप धरकर छल से अमृतपान किया था तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शनचक्र से राहू का सिर धड़ से अलग कर दिया, ताकि वह अमर न हो जाए। कहते हैं, राहू का कटा सिर इसी स्थान पर गिरा था।
जिस स्थान पर राहु का सिर गिरा है वहां पर पांडवों के द्वारा एक विशाल सिला रख दी गई है कहते हैं दोनों नदियों के बीच इस पत्थर के नीचे राहु का कटा सर दबा है इस प्रकार देवताओं के साथ यहां दानव की भी पूजा होने लगी। वर्तमान में यह राहू मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। धड़ विहीन की राहू की मूर्ति वाला यह मंदिर देखने से ही काफी प्राचीन प्रतीत होता है। इसकी प्राचीन शिल्पकला अनोखी और आकर्षक है। मंदिर के बाहर व भीतर देवी-देवताओं की प्राचीन पाषाण प्रतिमाएं स्थापित हैं।
“स्कंद पुराण” के केदारखंड में वर्णन है कि राष्ट्रकूट पर्वत पर पूर्वी व पश्चिमी नयार के संगम पर राहु ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी। इसी कारण यहां राहु के मंदिर की स्थापना हुई और राष्ट्रकूट पर्वत के नाम पर ही यह “राठ” क्षेत्र कहलाया। साथ ही राहु के गोत्र “पैठाणी ” के कारण इस गांव का नाम “पैठाणी” पड़ा। पैठाणी मंदिर के बारे में सारी जानकारी हमें स्कंद पुराण में मिलती है। राष्ट्रकूट पहाड़ पर राहु ने भगवान सदा शिव के लिए कड़ी तपस्या की। इसी वजह से यह क्षेत्र राठ कहलाया गया और इस जगह पर राहु का मंदिर बना। राहु का गोत्र पैठाणी था जिस वजह से इस जगह का नाम पैठाणी रखा गया। एैसा बताया गया है कि यह मंदिर कई लाख सालों पहले यहां पर बना। और यही वजह है कि इतने पुराने मंदिर को देखने के लिए विदेशी पर्यटक भी पैठाणी आते हैं।