जानिए शरद पूर्णिमा के महत्व को, इस दिन होती है आसमान से अमृत की वर्षा
आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर को मनाई जाएगी। शरद पूर्णिमा का दिन ऋतु परिवर्तन की तरफ संकेत करता है और स्वास्थ्य तथा सुख-समृद्धि का प्रतीक है। शरद पूर्णिमा के उपलक्ष्य पर मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते है। शरद पूर्णिमा की रात को बहुत ही खूबसूरत रात कहा जाता है।
सनातन धर्म में ऐसा माना जाता है कि देवता खुद धरती पर इस रात को देखने के लिए आते है और इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा-अर्चना होती है।
जाने शरद पूर्णिमा का क्या है महत्व
अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह हर साल अक्टूबर के महीने में आती है। इस बार शरद पूर्णिमा 13 अक्टूबर 2019 के दिन है। शरद पूर्णिमा के दिन प्रातः स्नान करने के बाद ही उपवास का प्रारंभ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना के लिए इस दिन देवी-देवताओं का पूजन करती हैं और व्रत रखती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक आ जाता है। इस ऋतु में मौसम काफी साफ रहता है। ऐसा माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात में चाँद की किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन इन नियमों के अनुसार कर्म करने से शुभाशुभ फल की प्राप्ति होती है। आइये जानतें है क्या है ये नियम
- इस दिन प्रातः उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लें।
- मान्यता अनुसार इस दिन पवित्र नदी, जलाश्य या कुंड में स्नान करने से व्रत का लाभ मिलता है।
- स्नान करने के बाद ईष्ट देवता की आराधना करें। भगवान की प्रतिमाओं को सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं।
- भगवान को सजाने के बाद आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजा अर्चना करनी चाहिये।
- इस दिन आधी रात के समय गाय के दूध से बनी खीर में चीनी मिलाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए।
- शरद पूर्णिमा के दिन रात में जब चंद्रमा आसमान के बीच में होता है तब चंद्र देव की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए और खीर का नेवैद्य अर्पण करना चाहिए।
- इस दिन भगवान शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा होती है।
- भगवान को भोग लगाने के बाद रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी रात में बाहर रख दें और दूसरे दिन उसे ग्रहण कर लें।
- शरद पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा व्रत कथा सुने।
- कथा से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें और दक्षिणा चढ़ाएं।
- इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा होती है।