Main Slideजीवनशैलीबोलती खबरें

VIDEO : इन नियमों से श्राद्ध कर्म को पूरा करने से तृप्त होते हैं पितर

श्राद्ध का प्रारंभ हो चुका है। प्रतिपदा की तिथि 14 सितंबर है, इन दिनों में पितृों को पिण्ड दान और तिल अर्पण कर उन्हें संतुष्ट करते हैं। श्राद्ध के इन 16 दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं और उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म को पूरा करते हैं।

इन दिनों में पितरों को पिंडदान करने से वे तृप्त होते हैं। जिससे परिवार में सुख, समृद्धि और शांति आती है। पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म के भी नियम होते हैं, जिसका पालन करना जरूरी माना जाता है।

इस प्रक्रिया को कहा जाता है तर्पण

अपने पितरों को तृप्त करने की क्रिया तथा देवताओं, ऋषियों या पितरों को काले तिल मिश्रित जल अर्पित करने की प्रक्रिया को तर्पण कहा जाता है। पितरों को तृप्त करने के लिए श्रद्धा से पहले जो भोजन उनको दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है।पितरों के श्राद्ध कर्म को पूरा करने के लिए कुछ नियम हैं, जिनका अनुसरण करना जरूरी है।

आइए जानते हैं कि किस तरह पूरा किया जाए श्राद्ध कर्म को –

  • श्राद्ध कर्म के पूर्व स्नान आदि से निवृत्त होकर व्यक्ति को सफेद कपडे पहनने चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करें, मांस-मदिरा का सेवन न करें। अपने मन को शांत रखें।
  • पितरों को जो भी भोजन दें, उसके लिए केले के पत्ते या मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करें।
  • जो लोग इन नियमों का पालन करते हुए श्राद्ध कर्म को पूरा करते हैं, वे स्वर्ग के भागीदार बनते हैं।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितर लोक दक्षिण दिशा में होता है। इस वजह से पूरा श्राद्ध कर्म करते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए।
  • पितर की तिथि के दिन सुबह या शाम में श्राद्ध न करें, यह शास्त्रों में निषेध है। श्राद्ध कर्म सदैव दोपहर में करना चाहिए ।
  • पितरों को तर्पण करने के समय जल में काले तिल को जरूर मिला लें। शास्त्रों में इसका विशेष महत्व बताया गया है।

रिपोर्ट – श्वेता वर्मा

ये वीडियोज़ भी देखें – 

https://www.youtube.com/watch?v=aB14T21WhTM&t=6s

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close
Close