एक चंद्रशेखर जिसे मातृभूमि के लिए ‘आज़ाद’ बनना पड़ा, जानिए पूरी कहानी
आजाद का शुरूआत जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गांव में बीता। चंद्रशेखर आजादी की लड़ाई में काफी कम उम्र में ही चले गए थे। चंद्रशेखर आजाद की निशानेबाजी बहुत अच्छी थी। इसकी ट्रेनिंग उन्होंने काफी कम उम्र में ही ले ली थी।
चंद्रशेखर जब पहली बार गिरफ़्तार हुए थे, तब उन्हें 15 कोड़ों की सजा दी गई थी। वर्ष 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के कई नवयुवकों की तरह आज़ाद ने भी अलग राह चुन ली
मातृभूमि के लिए ‘आज़ाद’ बनना पड़ा
इसके बाद वो पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी के साथ 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ में शामिल हो गए।
आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया। फिर साण्डर्स की हत्या के बाद लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है।
चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने दूसरे दोस्तों के साथ योजना बना रहे थे। तभी अचानक अंग्रेज पुलिस ने उनपर हमला कर दिया। आजाद ने पुलिस पर गोलियां चलाईं, जिससे कि सुखदेव वहां से बचकर निकल सके।
पुलिस की गोलियों से आजाद बुरी तरह घायल हो गए थे। इसके बाद उन्होंने अपनी पिस्तौल की आखिरी गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दे दी।