लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री जी को एक नौसीखिए पत्रकार का पत्र
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव के पहले चरण यानि कि 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। इस चुनाव से पहले उत्तराखंड के लघु कामगारों की इस बड़ी परेशानी पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को गौर करना चाहिए।
उत्तराखंड को करीब से जानने के बाद मुझे संघर्ष का असल मतलब समझ में आया। यहाँ लोग कम में भी सम्पन्न हैं और हर रोज़ सम्पन्न बने रहने के लिए संघर्षरत भी।
पहाड़ों पर आज लोगों की समस्या ये नहीं है कि उन्हें रोज़गार नहीं मिल पा रहा है, बल्कि दिक्कत इस बात से है कि सरकार की लाख कोशिश के बावजूद भी लोगों को उनके रोज़गार चलाने के लिए साधन जुटाने को हर रोज़ काफ़ी मशक़्क़त करनी पड़ती है।
पहाड़ पर हस्तशिल्प ( टोकरियाँ, शोपीस और बाँस की चटाई) जैसे सामान बनाने में महिलाएँ पारंगत हैं, लेकिन इन चीज़ों को बनाने के लिए उपयोगी सामान जैसे कि गोंद, रंगीन धागे, चमचमाते आर्टिफ़िशियल फूल और सितारे। ये सब सामान महिलाओं को लाने के लिए हर रोज़ सात से आठ किमी दूर पैदल चलकर बाज़ार पहुँचना पड़ता है।
इस सफ़र के दौरान कई किलोमीटर की यात्रा तय करने के लिए कई साधन बदलने पड़ते हैं और लम्बी पैदल यात्राएँ भी करनी पड़ती हैं।
उत्तराखंड सरकार ने महिलाओं को सबल बनाने के लिए उन्हें हस्तशिल्प कारोबार से जोड़ने की कोशिश की है, इसमें 13 जनपद -13 उत्पाद योजना में महिलाओं को हस्तशिल्प बनाने और बेचने का ठेका मिलता है, जिससे उन्हें रोज़ी-रोटी मिलती है।लेकिन अब पहाड़ पर महिलाओं को गोंद व हस्तशिल्प बनाने के लिए उपयोगी सामान आसानी से नहीं मिल पाता है। इससे महिलाएँ चाह के भी इस काम को आगे नहीं बढ़ा पा रही हैं। यह समस्या रुद्रप्रयाग के जोशीमठ, अगस्तयमुनि जैसे क्षेत्रों के अलावा अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ जिलों के अधिकांश गाँवों की है।
ज़रूरत है सरकार को इस ओर नज़र डालने की, ताकि ये महिलाएँ हम तक अपने हुनर को तेज़ी से पहुँचा पाएँ।
निवेदक-
देवांशु मणि तिवारी