कौन हैं ये नागा साधु, कुंभ खत्म होते ही सालों के लिए गायब हो जाते हैं? जानिए रहस्य
अर्धकुंभ यानि की महाकुंभ में निर्वस्त्र अवस्था में आपने नागा साधुओं को देखा होगा, लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्हें इनसे जुड़ी एक बात पता होगी। क्या की किसी ने सोचा है कि कुंभ खत्म होते ही ये साधू कहां चले जाते हैं। कहां से आते हैं और अचानक कहां चले जाते हैं। नागा साधू अपनी गुफा बदलते रहते हैं, एक गुफा में एक साल ही रहते हैं। ये साधू गुफा में गुप्त रूप से रहकर तपस्या करते हैं।
भोले बाबा की भक्ति में डूबे ये नागा जड़ी-बूटी और कंदमूल के सहारे पूरा जीवन बिता देते हैं। कई नागा जंगलों में घूमते-घूमते सालों काट लेते हैं और अगले कुंभ या अर्ध कुंभ में नजर आते हैं। नागा साधु जंगल के रास्तों से ही यात्रा करते हैं। रात में यात्रा और दिन में जंगल में विश्राम करने के कारण सिंहस्थ में आते या जाते हुए ये किसी को नजर नहीं आते।
कुछ नागा साधु झुंड में निकलते है तो कुछ अकेले ही यात्रा करते हैं। नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकते। यहां तक कि नागा साधुओं को कृत्रिम पलंग या बिस्तर पर सोने की भी मनाही होती है। नागा साधु केवल जमीन पर ही सोते हैं। यह बहुत ही कठोर नियम है जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है। आमतौर पर यह नागा सन्यासी अपनी पहचान छुपा कर रखते हैं।
नागा साधुओं को रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है। वो भोजन भी भिक्षा मांग कर लिया गया होता है। एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात घरों से भिक्षा लेने का अधिकार है। अगर सातों घरों से कोई भिक्षा ना मिले तो उसे भूखा रहना पड़ता है। जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजर अंदाज करके प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है।
हर अखाड़े का एक कोतवाल होता है। दीक्षा पूरी होने के बाद जब नागा साधु अखाड़ा छोड़ साधना करने जंगल या पहाड़ों में चले जाते हैं। तो ये कोतवाल नागा साधुओं और अखाड़ों के बीच की कड़ी का काम करता है। ये सभी गांव या शहर से दूर पहाड़ों, गुफाओं और कन्दराओं में साधना करते हैं। नागा संन्यासी एक गुफा में कुछ साल रहने के बाद अपनी जगह बदल देते हैं। जब कभी कुंभ और अर्धकुंभ जैसे महापर्व होते हैं तो ये नागा साधु कोतवाल की सूचना पर वहां रहस्यमय तरीके से पहुंच जाते हैं।