बिहार में स्कूली शिक्षा का बजट बढ़ा, पर जमीनी हकीकत अलग : रपट
पटना, 7 जनवरी (आईएएनएस)| बिहार में 14वें वित्तीय आयोग की अवधि में शिक्षा पर व्यय और कुल व्यय में तो वृद्धि हुई है, लेकिन जमीन पर उसका असर कम ही दिखाई देता है। यह जानकारी एक अध्ययन रपट में सामने आई है। सेंटर फॉर बजट एंड गवर्नेंस अकाउंटबिलिटी और क्राई (चाइल्ड राईट्स एंड यू) द्वारा किए गए संयुक्त अध्ययन के अनुसार, 2014-15 और 2017-18 के बीच बिहार में स्कूली शिक्षा (कक्षा एक से 12) पर व्यय 52 फीसदी बढ़ा है। किंतु कुल बजट के मदों में असमान वितरण के कारण इसका प्रभाव उम्मीद से कम रहा है।
क्राई की तरफ से सोमवार को जारी अध्ययन रपट में कहा गया है कि स्कूली शिक्षा बजट का सबसे ज्यादा हिस्सा (68 फीसदी) शिक्षकों के वेतन पर खर्च किया जाता है। कई मदों की आज भी उपेक्षा की जा रही है, जैसे शिक्षकों की शिक्षा (1.3 फीसदी), निगरानी एवं मूल्यांकन (0.0 फीसदी) और बुनियादी सुविधाएं (चार फीसदी)।
रपट के अनुसार, शिक्षकों की शिक्षा और प्रशिक्षण पर व्यय काफी कम है, जबकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों की कमी बहुत ज्यादा है। प्राथमिक स्तर पर 39 फीसदी और माध्यमिक स्तर पर 35 फीसदी शिक्षक पेशेवर रूप से प्रशिक्षित नहीं हैं।
रपट में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की स्थिति भी कुछ खास अच्छी नहीं है। मात्र चार फीसदी आवंटन के साथ ढांचागत विकास कार्य बहुत धीमी गति से किया जा रहा है। माध्यमिक स्तर पर मात्र 58.1 फीसदी स्कूलों में बिजली का कनेक्शन है।
रपट के अनुसार, पिछले 10 सालों में राज्य के स्कूलों में बच्चों के नामांकन में काफी सुधार हुआ है। इसके बावजूद बड़ी संख्या में बच्चे आज भी स्कूल नहीं जाते हैं।
रपट में कहा गया है कि एसएसए (सर्व शिक्षा अभियान) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार यह आंकड़ा 2017-18 में 2.01 लाख था। माध्यमिक स्तर पर स्थिति और भी चिंताजनक है। 2015-16 से 2016-17 के बीच राज्य में स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में 9.5 फीसदी की वृद्धि हुई है।
रपट के अनुसार, राज्य सरकार ने 1.7 लाख दिव्यांग बच्चों के लिए 2016-17 में 54 करोड़ रुपये के बजट का अनुमोदन किया, लेकिन अनुमोदित बजट से मात्र 21 फीसदी का इस्तेमाल किया गया।
क्राई की क्षेत्रीय निदेशक (पूर्व) त्रिना चक्रवर्ती ने कहा, “बजट और इसका इस्तेमाल हमारी प्राथमिकताओं को बताता है। समग्र बजट में वृद्धि के बावजूद गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के परिणाम वांछित नहीं हैं। बुनियादी सुविधाओं पर आवंटन बढ़ाना जरूरी है। साथ ही उचित निगरानी के साथ संसाधनों के प्रभावी इस्तेमाल को सुनिश्चित करना आवश्यक है।”
अध्ययन में कहा गया है कि अध्यापकों के प्रशिक्षण और बुनियादी सुविधाओं पर राज्य में ध्यान देना जरूरी है। स्कूली शिक्षा छोड़ने वाले बच्चों और दिव्यांग बच्चों के लिए ज्यादा आवंटन किया जाना चाहिए। राज्य सरकार को शिक्षा के दूरगामी प्रभावों के मद्देनजर शिक्षा पर स्थायी निवेश बढ़ाना होगा।