एक नया विमर्श पैदा करता है उपन्यास ‘रेत-समाधि’ : रविंद्र
नई दिल्ली, 19 दिसम्बर (आईएएनएस)| इस वर्ष के चर्चित उपन्यासों में शुमार ‘रेत समाधि’ पर राजकमल प्रकाशन द्वारा आयोजित परिचर्चा में लेखक व आलोचक रविंद्र त्रिपाठी ने कहा कि यह उपन्यास भी एक नया विमर्श पैदा करता है।
हिन्दी में इस तरह के उपन्यास बहुत ही कम लिखे गए हैं। परिचर्चा में पत्रकार व लेखिका मृणाल पाण्डे, प्रसिद्ध कवि प्रयाग शुक्ल, प्रोफेसर हरीश त्रिवेदी, लेखक और उपन्यास की लेखिका गीतांजलि श्री शामिल हुए। कार्यक्रम का संचालन आशुतोष कुमार ने किया।
गीतांजलि श्री का यह उपन्यास हर साधारण औरत में छिपी एक असाधारण स्त्री की महागाथा है। साथ ही, इसमें संयुक्त परिवार की तत्कालीन स्थिति, देश के हालात और सामान्य मानव की नियति का विलक्षण चित्रण भी है।
आशुतोष कुमार ने कहा कि गीतांजलि श्री के कहानी लेखन का एक अलग ही अंदाज है। उनकी कहानियों में एक पूरा जीवित संसार है।
लेखक व आलोचक रविंद्र त्रिपाठी ने कहा कि यह हिन्दी साहित्य में सृजनात्मकता का समय है। यह उपन्यास भी एक नया विमर्श पैदा करता है। हिन्दी में इस तरह के उपन्यास बहुत ही कम लिखे गए हैं।
मृणाल पाण्डे ने कहा कि यह उपन्यास सारी सरहदों को निर्थक बना देने वाला और निर्थक चीजों को एक साथ जोड़ कर सार्थक बना देने वाला है। उन्होंने कहा कि इस उपन्यास में मां की उपस्थिति काफी मार्मिक है।
हरीश त्रिवेदी ने कहा “गीतांजलि श्री की भाषा का प्रयोग अद्भुत है, कई नए मुहावरे इस उपन्यास में गढ़े गए हैं। हिंदी में जितने रंग और रूप होते हैं वे इस पुस्तक में दिखते हैं।”
प्रयाग शुक्लने कहा कि यह उपन्यास भरोसा दिलाता है कि सांसों पर कब्जा करने वालों और उनको कुचलने वालों के खिलाफ भी लिखा जा रहा है। उन्होंने कहा कि मैंने इस उपन्यास पर लिखा है तथा कई बार और लिखना चाहता हूं।
लेखिका गीतांजलि श्री ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा, “मैंने इस कृति के साथ लंबा अरसा बिताया है। कभी-कभी मुझे लगा कि इस उपन्यास को लिखते-लिखते मैं भी रेगिस्तान में रेत की समाधि बन गई हूं।”