भारत का आईडीआरएसएस अंतरिक्ष में उपग्रह संचार केंद्र के रूप में काम करेगा
चेन्नई, 16 दिसम्बर (आईएएनएस)| भारत अपने प्रस्तावित मानव अंतरिक्ष मिशन के हिस्से के रूप में इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम (आईडीआरएसएस) को लॉन्च करेगा, ताकि वह अपने सुदूर संवेदन/पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों के साथ डेटा रिले और संचार लिंक में सुधार कर सके।
इसरो के एक शीर्ष अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी। दो उपग्रहों वाला आईडीआरएसएस भारत के सुदूर संवेदन/पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों और भूस्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3 (जीएसएलवी-एमके 3) के साथ डेटा रिले व संचार लिंक को जारी रखेगा। जीएसएलवी-एमके3 2022 में तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में लेकर जाएगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने आईएएनएस को बताया, “हम आईडीआरएसएस के अंतर्गत दो उपग्रह छोड़ने की योजना बना रहे हैं। पहले उपग्रह को 2019 में छोड़ा जा सकता है।”
अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि मानव अंतरिक्ष मिशन के मामले में संचार लिंक जारी रहना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने वाला रॉकेट बिना लिंक के साथ नहीं जा सकता।
मानव अंतरिक्ष मिशन के अलावा आईडीआरएसएस भारतीय दूर संवेदी/भू-अवलोकन और पृथ्वी की निचली कक्षा में अन्य उपग्रहों के साथ संचार लिंक को भी जारी रखेगा।
दो आईडीआरएसएस उपग्रह भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किए जाएंगे, जो उपग्रह से उपग्रह संचार और डेटा हस्तांतरण को सुलभ बनाएंगे। आईडीआरएसएस उपग्रह भारतीय दूर संवेदी उपग्रहों की परिक्रमा के करीब 80 फीसदी इलाके को देख सकते हैं।
इसरो के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया कि प्रस्तावित प्रणाली उपग्रहों की निगरानी में जमीनी केंद्रों पर निर्भरता को भी कम करेगी।
भारत के पास अंतरिक्ष में सबसे बड़ी दूर संवेदी उपग्रह प्रणाली है।
उद्योग जगत के एक विशेषज्ञ ने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, “भारत नैनो, सूक्ष्म और कई छोटे उपग्रह छोड़ रहा है। भारत और बाहर जमीनी केंद्रों द्वारा अब इनकी निगरानी की जा रही है। लेकिन जमीनी केंद्रों द्वारा उपग्रहों की निगरानी में अंतर है। जमीनी केंद्रों से भारतीय दूर संवेदी उपग्रहों की ²श्यता 10-15 मिनट से अधिक नहीं है और कुछ मामलों में यह पांच मिनट या उससे भी कम है।”
उन्होंने कहा, “अन्य देशों में जमीनी केंद्रों पर भी भारी निर्भरता है।”
उन्होंने कहा कि आईडीआरएसएस के स्थापित होने से भू-अवलोकन उपग्रहों के साथ निगरानी और संचार के लिए दृश्यता बढ़ेगी।