मप्र चुनाव : कांग्रेस में मुख्यमंत्री पर फंसा पेंच!
भोपाल, 12 दिसंबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भले ही किसी तरह बहुमत का आंकड़ा जुटा लिया है, मगर विधायक दल के नेता (मुख्यमंत्री) को लेकर बड़ा पेंच फंस गया है। कांग्रेस इस उलझन में पड़ गई है कि किस तरह एक ऐसे नाम का चयन कर लिया जाए, जिसपर न तो विधायकों में कोई नाराजगी हो और न ही जनता के बीच गलत संदेश जाए।
राज्य में कांग्रेस दो खेमों में बंटी नजर आ रही है। यहां एक खेमा कमलनाथ के साथ खड़ा है तो दूसरा ज्योतिरादित्य सिंधिया को कमान सौंपने के पक्ष में है। केंद्रीय पर्यवेक्षक ए.के. एंटनी ने विधायकों से चर्चा की है। उन्होंने बैठक में हिस्सा लेने के बाद किसी भी नेता के नाम का ऐलान नहीं किया, और विधायकों की राय लेकर वह दिल्ली चले गए।
कांग्रेस मीडिया विभाग की अध्यक्ष शोभा ओझा ने संवाददाताओं से कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी करेंगे। विधायकों ने नेता के चयन का अधिकार पार्टी हाईकमान को दिया है।
कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान भी विधायकों की भावना और राज्य के मतदाताओं की अपेक्षा को ध्यान में रखना चाहता है। पार्टी को कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में से एक को चुनना है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार, हाईकमान आमजन में यह संदेश नहीं देना चाहती कि कांग्रेस की कमान एक बार फिर बुजुर्ग नेताओं के हाथ में आ गई है। इस स्थिति में कांग्रेस को समन्वय का रास्ता चुनना है।
सूत्रों के अनुसार, भोपाल बैठक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम को लेकर किसी भी तरह की खींचतान नहीं होने वाली थी। मगर कांग्रेस के एक नेता द्वारा खुले तौर पर एक दावेदार की वकालत किए जाने को एंटनी ने अच्छा नहीं माना और सारा फैसला हाईकमान से किए जाने पर विधायकों से हामी भरा ली।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक साजी थामस कहते हैं, “मध्य प्रदेश में कांग्रेस को एक सक्षम और जल्दी फैसले लेने वाला मुख्यमंत्री देना होगा। कमलनाथ और सिंधिया में से किसी एक को चुनना आसान नहीं है। दोनों की अपनी-अपनी खूबियां और कमियां हैं। सिंधिया जहां नौजवान हैं, साफ सुथरी छवि है, युवाओं में आकर्षण है, वहीं महाराजा की छवि सवाल खड़े कर सकती है। दूसरी ओर कमलनाथ अनुभवी हैं, मगर उम्र ज्यादा है, लिहाजा उनसे ज्यादा श्रम की अपेक्षा संभव नहीं है। उनकी छवि एक उद्योगपति की है, उनका कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद भी नहीं है।”