IANS

कांग्रेस दुविधा में घिरी है : सुषमा स्वराज

जबलपुर, 19 नवंबर (आईएएनएस)| विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यहां सोमवार को कांग्रेस को दुविधा में घिरी पार्टी करार दिया। वह मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए प्रचार करने आई हैं। सुषमा ने संवाददाताओं से चर्चा करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां बताने के बजाय कांग्रेस और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी की ज्यादा चिंता करती नजर आईं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस आज देश की ऐसी पार्टी है, जो कई दुविधाओं से घिरी है। अन्य पाíटयों से गठबंधन कैसे किया जाए, यदि गठबंधन हो गया तो राहुल गांधी साथी दलों को नेता के रूप मे कैसे स्वीकार होंगे, जैसी दुविधाओं में घिरी हुई है। यदि इन बातों को छोड़ भी दें तो सबसे बड़ी दुविधा उनके नेता की छवि को लेकर है।

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस के नेता इस दुविधा में हैं कि राहुल गांधी को किस रूप में प्रोजेक्ट किया जाए। वर्षो तक कांग्रेस ने राहुल गांधी को एक धर्मनिरपेक्ष नेता के रूप में प्रस्तुत किया। फिर उन्हें लगा कि हिंदू देश में बहुसंख्यक हैं, तो उन्होंने उनकी छवि हिंदू नेता के रूप में बनाने पर विचार किया।

सुषमा ने कहा, “राहुल गांधी ने संसद के पटल पर भी कहा कि मैं हिदू हूं। इस पर भी बात नहीं बनी तो उन्हें लगा कि आस्थावान हिंदू की छवि बनानी चाहिए, तब उन्होंने कैलाश मानसरोवर की यात्रा की, शिवमंदिरों में पूजा की और शिवभक्त की छवि बनाई।”

उन्होंने आगे कहा कि राहुल गांधी जब मध्यप्रदेश आए तो यहां लगा कि महाकाल के साथ पीतांबरा पीठ की भी मान्यता है, तो वहां भी गए। वह शैव भी बने और शाक्य भी बन गए। फिर लगा कि हिंदू तो बन गए, पर उसमें किस जाति के बनें, दलित या सवर्ण। इन सब के बाद भी उन्हें लगा कि दूसरा वोट बैंक न खिसक जाए, तो आरएसएस की आलोचना करने लगे। इतनी सारी दुविधाएं इतने पुराने संगठन को अपने अध्यक्ष को लेकर है।

विदेशमंत्री ने कांग्रेस की ‘सर्वधर्म समभाव’ वाली नीति को हथियार बनाकर उसी पर प्रहार करते हुए कहा, “चुनावों के समय राहुल गांधी को यह रूप बदलने की क्यों पड़ी है। वे जो हैं, वही बने रहें। यह देश सर्वधर्म समभाव वाला देश है। इसने हर धर्म के लोगों को सर्वोच्च पद पर बैठाया है। संविधान के अनुसार देश का सर्वोच्च पद राष्ट्रपति का है जिस पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, सवर्ण और दलित भी आसीन हुए हैं।”

सुषमा ने कहा कि इसी तरह न्यायपालिका में भी उच्च न्यायाधीश के पद पर हिंदू, मुस्लिम, सिख और पारसी भी बैठे। देश की तीनों सेनाओं में विभिन्न धर्मो के व्यक्ति प्रमुख बने। यह देश सबको स्वीकारता है, यह जाति-मजहब को नहीं देखता।

 

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