बिना मनोरंजन वाली फीचर फिल्मों का भारत में टिक पाना मुश्किल : देवाशीष मख्रीजा
धर्मशाला, 4 नवंबर (आईएएनएस)| निर्देशक देवाशीष मखीजा का कहना है कि अगर एक फिल्म में दमदार मनोरंजन नहीं है तो उसका भारतीय फिल्म जगत में टिक पाना बहुत मुश्किल है।
मखीजा ने एक रिसर्च एसोसिएट और ‘ब्लैक फ्राइडे’ के सहायक निर्देशक के रूप में अपने फिल्मी सफर की शुरुआत की थी, जिसके बाद उन्होंने ‘ऊंगा’ और ‘अज्जी’ जैसी फीचर फिल्में बनाईं।
अपनी हालिया फीचर फिल्म ‘भोंसले’ के लिए मखीजा को फिल्म निर्माताओं और वितरकों को ढूंढने के लिए चार साल तक संघर्ष करना पड़ा।
निर्देशक ने यहां आईएएनएस को बताया, ” ‘भोंसले’ में बहुत सी सामाजिक व सांस्कृतिक समस्याएं हैं, जिसके लिए कोई भी अपने पैसों का जोखिम नहीं लेना चाहता था। भारत में लोग मनोरंजन चाहते हैं। अगर एक फिल्म मनोरंजन नहीं दे पाती तो फिर निर्माता ऐसे किसी फिल्म में पैसा क्यों लगाएंगे, जिसमें उन्हें भारी मुनाफे की गारंटी नहीं हो?”
उन्होंने कहा, “मेरी तरह की फिल्में (बिना मनोरंजन वाली कंटेंट प्रधान फिल्में) को बॉलीवुड की व्यावसायिक फिल्मों जैसा समान व्यवहार पाने के लिए बहुत लंबे समय से संघर्ष करना पड़ रहा है और उनके साथ कभी वैसा व्यवहार नहीं होगा।”
दो घंटे की इस फिल्म में अभिनेता मनोज बाजपेयी, भोंसले का किरदार निभा रहे हैं।
फिल्म भारत के भीतर प्रवास व दुष्कर्म की संस्कृति के मुद्दे को उठाया गया है।
एक फिल्म में विभिन्न कहानियों को दिखाने का फैसला क्यों किया, इस सवाल पर उन्होंने कहा, “जीवन, विशेषकर भारत में, बड़ा मुश्किल है। हम कई समस्याओं से घिरे हुए हैं। प्रत्येक राज्य किसी न किसी मुद्दे से जूझ रहा है। मैं जानता हूं कि मैंने एक फिल्म में दो कहानियों को मिलाया है और विभिन्न मुद्दों पर बात की है लेकिन मैं वास्तव में इन मुद्दों को लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं।”
उन्होंने कहा, “अगर मैं सामाजिक समस्याओं पर एक फिल्म बनाता हूं, तो कोई उसे नहीं देखेगा। इसलिए मैंने कहानी में इन मुद्दों को मिलाकर नाटकीय कथानक पैदा करने का प्रयास किया है।”
बुसान अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव और मामी की यात्रा करने के बाद ‘भोंसले’ को यहां जारी धर्मशाला अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखाया गया।