अयोध्या मामले पर सुनवाई अब जनवरी में, केंद्र पर बढ़ा दबाव
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को निर्देश दिया कि राम जन्मभूमि विवाद मामले को जनवरी 2019 में सुनवाई के लिए किसी उचित पीठ के लिए सूचीबद्ध कर दिया जाए, जिसके बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ(आरएसएस), विश्व हिंदू परिषद(विहिप) और शिवसेना ने सरकार पर कानून लाने का दबाव बनाया। सरकार अभी इस मामले में काफी सतर्कता बरत रही है। इस आदेश को इस रूप में देखा जा रहा है कि अयोध्या मामले का निर्णय लोकसभा चुनाव से पहले नहीं हो पाएगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि विवाद मामले की सुनवाई के लिए किसी उचित पीठ के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया और यह उचित पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जनवरी 2019 में तारीख तय करेगी।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के.एम.जोसेफ की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 में अयोध्या की विवादित जमीन के तीन भाग करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला दिया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 2010 के अपने फैसले में विवादित स्थल को तीन भागों -रामलला, निर्मोही अखाड़ा व मुस्लिम पक्षकारों- में बांटा था।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, “हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं। मामला जनवरी, फरवरी या मार्च में कब आएगा, यह फैसला उचित पीठ को करना होगा।”
प्रधान न्यायाधीश ने यह टिप्पणी वकील द्वारा अदालत से उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की तारीख तय करने के आग्रह पर की।
मामले को जनवरी के लिए सूचीबद्ध किए जाने से इसकी सुनवाई कुछ महीने लंबा खिंच सकती है, क्योंकि देश में अप्रैल-मई 2019 में आम चुनाव होने हैं और इस वजह से देश में चुनावी माहौल रहेगा।
जैसे ही शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई टाल दी, आरएसएस, विहिप ने मामले में कानून लाने को लेकर सरकार पर दबाव बनाया। सरकार ने कहा है कि उसका न्यायालय पर पूरा भरोसा है, लेकिन इसके साथ ही यह भी कहा कि लोग चाहते हैं कि इस मामले का निपटारा जल्द से जल्द हो।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने छत्तीसगढ़ में पत्रकारों से कहा, “मैं विनम्रतापूर्वक कहना चाहता हूं कि देश में बहुत सारे लोग चाहते हैं कि मामले की सुनवाई जल्द पूरी हो। हमें न्यायालय पर पूरा भरोसा है और हम इसका पूरा आदर करते हैं।”
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा, “आरएसएस का मानना है कि भगवान राम के जन्मस्थल पर निश्चित ही राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए और उस जगह को राम जन्मभूमि न्यास को दिया जाना चाहिए। मंदिर निर्माण से सौहार्द्र का माहौल बनेगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय को जल्द से जल्द इसपर निर्णय लेना चाहिए।”
उन्होंने कहा, “सरकार को हालांकि किसी भी तरह की बाधा से निपटने के लिए अवश्य ही कानून लाना चाहिए। संत और धर्म संसद प्रारंभ से ही राम मंदिर आंदोलन की अगुवाई कर रहे हैं और आरएसएस ने उन्हें समर्थन दिया है। वे जो भी कदम उठाएंगे, हम उनका साथ देंगे।”
विहिप के कार्यवाहक अध्यक्ष आलोक कुमार ने संवाददाताओं से कहा, “सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर राम-जन्मभूमि मामले की सुनवाई 2019 तक के लिए स्थगित कर दी है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून पास करवाने की हम अपनी मांग फिर दोहराते हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “संसद का शीतकालीन सत्र आगे है, जिसमें यह कार्य किया जा सकता है।”
शिवसेना ने कहा कि अयोध्या मामले में अदालत कुछ नहीं करेगी।
शिवसेना सांसद संजय राउत ने इस मामले की सुनवाई अगले वर्ष जनवरी तक टालने पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “हमने 25 वर्ष पहले अदालत से पूछ कर मंदिर नहीं गिराई थी। हमारे हजारों कारसेवकों ने अदालत से पूछ कर अपनी जान नहीं गंवाई थी। हमने अयोध्या आंदोलन शुरू करने से पहले अदालत की इजाजत नहीं ली थी।”
उन्होंने कहा, “हम अयोध्या में राम मंदिर चाहते हैं। हम पाकिस्तान या करांची में राम मंदिर बनाने की मांग नहीं कर रहे हैं। हमारी मांग भगवान राम के अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की है।”
इस फैसले पर साधु-संतों ने भी असंतोष जाहिर किया है।
महंत परमहंस दास ने कहा कि हिंदू समुदाय और साधु-संतों में और प्रतीक्षा करने का धैर्य नहीं है। दास हाल ही में अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण शीघ्र कराने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे थे।
उन्होंने कहा, “भाजपा राम मंदिर निर्माण का वादा कर केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ता में आई। अब वादा पूरा करने का समय आ गया है।”
राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि उन्हें इस बात का दुख है कि शीर्ष अदालत द्वारा विलंब किए जाने से भगवान राम को लंबे समय तक तंबू में इंतजार करना पड़ेगा।
मामले में मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी ने भी कहा कि वह इस बात से खिन्न हैं कि भगवान राम की मूर्ति तंबू में है। हालांकि उन्होंने कहा कि हर किसी को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का इंतजार करना चाहिए और यह दोनों पक्षों को मान्य होगा।
अखिल भारतीय संत समिति के अध्यक्ष जितेंद्रानंद सरस्वती ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में आगे किसी भी प्रकार का विलंब नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे सर्वोच्च न्यायाल की सुनवाई का इंतजार नहीं करेंगे, बल्कि राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में विधेयक लाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार पर दबाव डालेंगे।
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, “मामला स्थगित होने से सही संदेश नहीं गया है।”