दुनिया में 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर
नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (आईएएनएस)| दुनियाभर में 18 साल से कम उम्र के 93 फीसदी बच्चे प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर जारी एक नई रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य, स्वच्छ वायु निर्धारित करना’ नाम से जारी इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2016 में, वायु प्रदूषण से होने वाले श्वसन संबंधी बीमारियों की वजह से दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के 5.4 लाख बच्चों की मौत हुई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, पांच साल से कम उम्र के 10 बच्चों की मौत में से एक बच्चे की मौत प्रदूषित हवा की वजह से हो रही है।
डब्लूएचओ की इस रिपोर्ट पर ग्रीनपीस इंडिया ने कहा कि डब्लूएचओ के डाटा ने एकबार फिर से साबित किया है कि गरीब और मध्यम आय वर्ग के लोग देश में बाहरी और घरेलू दोनों तरह के वायु प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित है। यह चिंताजनक है कि भारत जैसे देश में लगभग पूरी जनसंख्या डब्लूएचओ और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है।
ग्रीनपीस इंडिया के वायु प्रदूषण कैंपेनर सुनील दहिया ने कहा, “ग्रीनपीस ने वैश्विक स्तर पर सैटेलाइट डाटा के विश्लेषण को प्रकाशित किया है। इस विश्लेषण में बताया गया है कि कोयला और परिवहन उत्सर्जन के दो प्रमुख स्रोत हैं। नाइट्रोजन डॉयक्साइड भी पीएम 2.5 और ओजोन के बनने में अपना योगदान देता है। ये दोनों वायु प्रदूषण के सबसे खतरनाक रूपों में बड़े क्षेत्रों को प्रभावित करते हैं।”
उन्होंने कहा, “इस साल एक जून से 31 अगस्त तक सबसे ज्यादा नाइट्रोजन डायऑक्साइड वाला क्षेत्र दक्षिण अफ्रिका, जर्मनी, भारत और चीन के वे क्षेत्र हैं जो कोयला आधारित पावर प्लांट के लिए जाने जाते हैं। परिवहन संबंधी उत्सर्जन की वजह से सैंटियागो डि चिली, लंदन, दुबई और तेहरान जैसे शहर भी एनओ2 हॉटस्पोट वाले 50 शहरों की सूची में शामिल हैं।”
भारत में दिल्ली-एनसीआर, सोनभद्र-सिंगरौली, कोरबा और ओडिशा का तेलचर क्षेत्र इन 50 शहरों की सूची में शामिल है। यह तथ्य साफ-साफ बता रहे हैं कि ऊर्जा और परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन जलने का वायु प्रदूषण से सीधा-सीधा संबंध है।
ग्रीनपीस कैंपेनर लॉरी मिल्लिवर्ता के अनुसार, “जैसा कि हम अपनी रोज की जिंदगी में वायु प्रदूषण से नहीं बच सकते, उसी तरह वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेवार प्रदूषक भी छिपे नहीं हैं। यह नया उपग्रह आकाश में हमारी आंख की तरह है, जिससे कोयला जलाने वाले उद्योग और परिवहन क्षेत्र में तेल उद्योग जैसे प्रदूषक बच नहीं सकते। अब यह सरकार पर निर्भर करता है कि वह इन पर कार्रवाई करे और कठोर नीतियों व तकनीक को अपनाकर हवा को साफ करे और लोगों की जिंदगी बचाए।”