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प्रकृति और अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं आदिवासी : मोदी

नई दिल्ली, 28 अक्टूबर (आईएएनएस)| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को जंगलों की रक्षा करने और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली की परंपरा को जारी रखने के लिए आदिवासी समुदायों की रविवार को सराहना की। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब उनके (आदिवासी समुदाय) अधिकारों व जमीन की रक्षा की बात आती है, तो वे लड़ते हैं।

अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 49वीं कड़ी में मोदी ने कहा कि आदिवासी संस्कृति ‘पर्यावरण, पेड़ों व बाघों’ की रक्षा में विश्वास रखती है।

मोदी ने कहा, “यह सच है कि आदिवासी समुदाय बहुत शांतिपूर्ण और आपस में मेलजोल के साथ रहने में विश्वास रखता है, पर जब कोई उनके प्राकृतिक संसाधनों का नुकसान कर रहा हो तो वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने से नहीं डरते हैं।”

उन्होंने कहा कि भारत सहित दूसरे देश पर्यावरण सुरक्षा के समाधान खोज रहे हैं, और यह समाधान हमारे ‘गौरवपूर्ण अतीत’ में है, जिसके लिए आदिवासी समुदाय की जीवनशैली को समझने की जरूरत है।

आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा और अंग्रेजों के खिलाफ उनके संघर्ष को याद करते हुए मोदी ने कहा कि आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे प्रमुख स्वतंत्र सेनानियों में आदिवासी समुदाय के लोग थे।

उन्होंने कहा, “जंगली भूभाग की रक्षा के लिए देश आदिवासी समुदाय का ऋणी है।”

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, महाराष्ट्र व दूसरे जगहों के समुदायों का नाम लेते हुए मोदी ने कहा कि आदिवासी जानते हैं कि सामंजस्य और समन्वय बनाकर प्रकृति के साथ कैसे जीवन जीया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि मध्य भारत की भील जनजाति में विशेषकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में लोग पीपल और अर्जुन जैसे पेड़ों की श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं। राजस्थान जैसी मरुभूमि में बिश्नोई समाज ने पर्यावरण संरक्षण का रास्ता हमें दिखाया है।

उन्होंने कहा, “अरुणाचल प्रदेश की मिशमी जनजातियां बाघों के साथ खुद का रिश्ता होने का दावा करती हैं। नागालैंड में भी बाघों को वनों के रक्षक के रूप में देखा जाता है। महाराष्ट्र के वार्ली समुदाय के लोग बाघ को अतिथि मानते हैं। उनके लिए बाघों की मौजूदगी समृद्धि लाने वाली होती है। मध्य भारत के कोल समुदाय के बीच एक मान्यता है कि उनका खुद का भाग्य बाघों से जुड़ा है। अगर बाघों को निवाला नहीं मिला तो गांव वालों को भी भूखा रहना पड़ेगा।”

 

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