दो मानवाधिकार कार्यकर्ता 6 नवंबर तक पुलिस हिरासत में (
पुणे (महाराष्ट्र), 27 अक्टूबर (आईएएनएस)| पुणे की एक विशेष अदालत ने शनिवार को मानवाधिकार कार्यकर्ता वरनॉन एस. गोंजाल्विस और अरुण टी. फरेरा को छह नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया। एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव जातीय दंगों के लिए कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम अदालत के विशेष न्यायाधीश के.डी. वडाने ने शुक्रावर शाम सुधा भारद्वाज, गोंजाल्विस और फरेरा की जमानत याचिका खारिज करते हुए एक समान आदेश जारी किया था, जिसके बाद हिरासत बढ़ाई गई। तीनों कार्यकर्ताओं के खिलाफ यहां विश्रामबाग पुलिस थाने में मामला दर्ज है।
जमानत याचिकाएं खारिज होने के तुरंत बाद गोंजाल्विस को उनके पुणे स्थित आवास और फरेरा को ठाणे से गिरफ्तार कर लिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद करीब दो महीने से ये नजरबंद थे।
भारद्वाज को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस की एक टीम हरियाणा के फरीदाबाद की ओर रवाना हो चुकी है और जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें जल्द ही पुणे लाया जा सकता है।
भारद्वाज, गोंजाल्विस, फरेरा और अन्य 31 दिसंबर, 2017 को यलगार परिषद मामले में आरोपी हैं, जिसके कारण इस साल एक जनवरी को कोरेगांव-भीमा में जातीय दंगे हुए थे।
रिमांड याचिका में पुणे पुलिस ने कहा कि गोंजाल्विस और फरेरा छात्रों को प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) की ओर से रेडिकल छात्र संघ (आरएसयू) के माध्यम से भर्ती करते थे और उन्हें गुरिल्ला युद्ध क्षेत्रों में भेजते थे। पुलिस ने कहा कि वह जांच करना चाहते हैं कि कितने और किन लोगों को इसके लिए भर्ती किया गया था।
पुलिस ने फंडों के स्त्रोत और दोनों आरोपियों द्वारा पैसों का प्रयोग कौन सी गतिविधियों में किया गया, इसकी जांच की भी जरूरत बताई।
रिमांड याचिका में दावा किया गया कि पुलिस ने लोकतांत्रित रूप से निर्वाचित भारतीय सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए एक बड़ी साजिश का पता लगाया है और वह इस मामले में जांच करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि गोंजाल्विस मामले के अन्य सह आरोपी सुधीर धावले के साथ लगातार संपर्क में थे और पुलिस इसके कारणों की जांच करना चाहती है।
पुणे पुलिस ने अगस्त में छापेमारी कर भारद्वाज, गोंजाल्विस, फरेरा, गौतम नवलखा और पी. वरवर राव को गिरफ्तार किया था। नवलखा फिलहाल रिहा हैं और राव हैदराबाद में नजरबंद हैं।