IANS

सीबीआई निदेशक हटाए गए, विपक्ष सरकार पर हमलावर

 नई दिल्ली, 24 अक्टूबर (आईएएनएस)| केंद्र सरकार ने केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआई) के निदेशक आलोक वर्मा को इस कयास के बीच हटा दिया कि वह विवादास्पद राफेल सौदे की जांच के आदेश देने वाले थे।

  वित्तमंत्री अरुण जेटली ने हालांकि इन आरोपों का खंडन किया, और कहा कि ऐसा इसलिए किया गया, ताकि आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना द्वारा एक-दूसरे पर लगाए गए आरोपों की निष्पक्ष जांच हो सके। पिछले कुछ दिनों में सीबीआई के शीर्ष पदों पर काबिज दोनों अधिकारियों के बीच बढ़ते आरोप-प्रत्यारोप के बीच, मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने बीती रात बैठक की और सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त कर दिया।

बाद में जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया, “सरकार ने मामले की सावधानी पूर्वक जांच करने के बाद और समानता व न्याय के हित में वर्मा और अस्थाना को क्रमश: सीबीआई निदेशक और विशेष निदेशक की भूमिका से हटाने का फैसला किया है।”

राव ने पद संभालते ही वर्मा के करीबी माने जाने वाले एजेंसी के 13 अधिकारियों का स्थानांतरण कर दिया। ये लोग विशेष निदेशक के विरुद्ध रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच कर रहे थे। सीबीआई ने अस्थाना के विरुद्ध जांच के लिए एक नई टीम भी गठित कर दी।

वर्मा को पद से नहीं हटाया जा सकता, क्योंकि उनका अनिवार्य दो-वर्षीय कार्यकाल दिसंबर में समाप्त होने वाला है। इसलिए उन्होंने सीवीसी और सरकार के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी है। अदालत शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई करेगी।

आधिकारिक बयान के अनुसार, वर्मा और अस्थाना के खिलाफ कार्रवाई केंद्रीय सतर्कता आयोग की अनुशंसा पर की गई है, जिसने मंगलवार शाम बैठक की और दोनों अधिकारियों से उनकी शक्तियां ले ली।

बयान में कहा गया है, “सीबीआई में गुटबाजी के माहौल ने जोर पकड़ लिया था, जिससे शीर्ष जांच एजेंसी की विश्वसनीयता और छवि को नुकसान पहुंच रहा था। इससे संगठन में काम करने का माहौल खराब हो गया था, जिसका संपूर्ण शासन प्रणाली पर गहरा और प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ा है।”

बयान के अनुसार, “यह अंतरिम उपाय है, जो सीवीसी की जांच के नतीजे तक पहुंचने के समय तक लागू रहेगा और जांच के आलोक में उचित निर्णय लिया जाएगा।”

दोनों अधिकारियों के बीच जंग तब शुरू हुई, जब अस्थाना ने अगस्त में सीवीसी को पत्र लिखकर मांस व्यवसायी मोईन कुरैशी की जांच में भ्रष्टाचार और दुराचार के आरोप लगाए थे, जबकि सीबीआई ने अस्थाना के विरुद्ध रविवार को प्राथमिकी दर्ज की थी और उनके ऊपर कुरैशी मामले को सलटाने के लिए रिश्वत लेने के आरोप लगाए थे।

बीती रात हुए इस घटनाक्रम के बाद राजनीतिक जंग छिड़ गई है। विपक्षी पार्टियां सरकार पर आरोप लगा रही है कि सरकार ने वर्मा के विरुद्ध कार्रवाई इसलिए की, क्योंकि वह राफेल सौदे की जांच शुरू करने वाले थे, जिसके लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी तथा वकील प्रशांत भूषण ने वर्मा को ज्ञापन सौंपा था। विपक्षी पार्टियों ने कहा कि इस निर्णय ने जांच एजेंसी और संवैधानिक संस्थानों की स्वतंत्रता को प्रभावित किया है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि राफेल ‘घोटाले’ के दस्तावेज इकट्ठा करने पर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक को ‘जबरन अवकाश’ पर भेजकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि रक्षा सौदे के सच के करीब जाने वाले हर व्यक्ति को ‘मिटा’ दिया जाएगा।

राहुल ने ट्वीट किया, “सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा राफेल घोटाले के दस्तावेज इकट्ठा कर रहे थे। उन्हें जबरन अवकाश पर भेज दिया गया। प्रधानमंत्री का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है कि राफेल के आस-पास जो भी व्यक्ति आएगा, उसे हटा दिया जाएगा, मिटा दिया जाएगा।”

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सवाल किया कि क्या राफेल घोटाले में भ्रष्टाचार की जांच करने में उत्सुकता दिखाने के कारण सीबीआई निदेशक को ‘बर्खास्त’ किया गया है?

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि यह कदम लोकपाल अधिनियम और विनीत नारायण मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सरासर उल्लंघन है।

इस कदम को सही ठहराने की केंद्र की दलील की प्रतिक्रिया में सिंघवी ने यहां संवाददाताओं से कहा, “केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को न तो सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति में हस्तक्षेप का अधिकार है और न उनके स्थानांतरण में हस्तक्षेप करने का ही। यह सरकार द्वारा कुछ चीजों को छिपाने के लिए सीवीसी पर कब्जा कर उसका दुरुपयोग करने का स्पष्ट मामला है।”

आम आदमी पार्टी (आप) के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐसा कदम उठाने पर सरकार के अधिकार को लेकर सवाल उठाया।

उन्होंने ट्वीट किया, “सीबीआई निदेशक को छुट्टी पर भेजने का क्या कारण है? किस कानून के तहत मोदी सरकार को यह अधिकार मिला कि वह लोकपाल अधिनियम के मुताबिक नियुक्त एक जांच एजेंसी के प्रमुख के खिलाफ कार्रवाई शुरू करे? मोदी सरकार क्या छिपाने का प्रयास कर रही है?”

मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी(माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने भी ट्विटर पर केंद्र सरकार के फैसले की आलोचना की और इसे अवैध करार दिया।

उन्होंने कहा, “मोदी सरकार ने खुद से चुने अधिकारी (राकेश अस्थाना) की रक्षा करने के लिए सीबीआई प्रमुख को अवैध रूप से हटा दिया है, जबकि उस अधिकारी (राकेश अस्थाना) खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की जांच की जा रही है। भाजपा के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व के इस अधिकारी से सीधे संबंधों पर पर्दा डालने के लिए ऐसा किया गया है।”

उन्होंने कहा कि सीबीआई पिंजरे का तोता बनकर न रह जाए, इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय ने एजेंसी के निदेशक को सरकारों की सनक से सुरक्षा देने के लिए दो साल का कार्यकाल दिया था। मोदी सरकार घबराहट में उठाए गए कदम से क्या छिपाने की कोशिश कर रही है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्रीय जांच एजेंसी को ‘बीजेपी ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन’ बताया।

ममता ने ट्वीट किया, “सीबीआई अब बीबीआई (बीजेपी ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन) बन गई है.. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।”

मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष के इन आरोपों को खारिज कर दिया कि वर्मा को इसलिए हटाया गया, क्योंकि वह राफेल सौदे की जांच का आदेश देने वाले थे।

उन्होंने कहा कि जांच एजेंसी की संस्थानिक निष्ठा को बनाए रखने के लिए केंद्रीय सर्तकता आयोग (सीवीसी) की सिफारिश पर इस बाबत कदम उठाया गया।

जेटली ने कहा कि वर्मा और अस्थाना की तरफ से एक-दूसरे पर लगाए जा रहे रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस आदर्श का पालन किया जाएगा कि जिनके ऊपर आरोप हैं, वे जांच नहीं करेंगे या जांच की निगरानी नहीं करेंगे।

जेटली ने कहा, “मैं इसे बकवास समझता हूं। तीन विपक्षी दलों का कहना है कि हमें मालूम है कि एजेंसी आगे क्या (राफेल जांच) करने वाली है। इससे जांच की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न होता है।”

उन्होंने कहा, “मैं नहीं मानता कि यह सच है। अगर तीनों दलों द्वारा कही गई बात सच है तो इससे जांच की निष्पक्षता पर गंभीर शंका पैदा होती है। इससे व्यक्ति की निष्ठा की अवमानना होती है।”

उन्होंने कहा, “मेरा यह मानना है कि जब तक (आरोप) साबित न हो तब तक हर किसी को निर्दोष माना जाता है। हम पूर्वाग्रह नहीं पालना चाहते हैं। हम यह सुनिश्चित करने को प्रतिबद्ध हैं कि भारत की जांच प्रक्रिया का उपहास न हो, क्योंकि कुछ अधिकारियों ने पिछले कुछ दिनों से ऐसा करने की कोशिश की है।”

जेटली ने कहा, “यह जरूरी है कि एक संस्थान के रूप में सीबीआई की निष्ठा कायम रहे। इसलिए अंतरिम उपाय के तौर पर कुछ अधिकारियों को कुछ समय के लिए बाहर रहना चाहिए। अगर वे निर्दोष होंगे तो वापस आ जाएंगे।”

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