खोखले ‘सिस्टम’ पर मौत बनकर दौड़ी रेल
अमृतसर का जौड़ा चौक। घटनास्थल पर बिखरे शरीर के कटे छोटे-छोटे अवशेषों, टूटी चप्पलें, तितर-बितर सामान, चारों ओर चीख-पुकार की दहाड़ती आवाजें।
ये सब यह बताने के लिए काफी हैं कि कैसा रहा होगा वहां का मंजर।
बड़ा हादसा हो जाने के बाद हर तरफ पड़ी लाशों को देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो रहे थे। मृतकों के परिजन रेल से कटे अपने लोगों के शरीर के अंगों को उठाकर इधर-उधर, रो-बिलख रहे थे। कुछ घंटों तक अफरा-तफरी का माहौल बना रहा। प्रशासनिक अमला भी घटनास्थल पर पहुंच चुका था, लेकिन उनके भी समझ में नहीं आ रहा था कि ढेर पड़े लाशों को कहां से उठाना शुरू करें।
रूह कंपा देने वाली अमृतसर की घटना ने क्षणभर में ही पर्व के दिन पूरे हिंदुस्तान की खुशियां मातम में तब्दील कर दी। घटना में किसी ने अपने पति को खोया, किसी ने अपने बेटे को, तो किसी ने अपनी मां, बहन व भाई को। घटना में बुजुर्ग से लेकर हर वर्ग के लोग काल के कपाट में समा गए। महज दस सेकेंड के भीतर ही काल बनकर पटरी पर दौड़ी मौत की रेल ने सत्तर से ज्यादा लोगों की जिंदगी लील ली। और कइयों को जिंदगीभर का जख्म दे गई।
दुख इस बात का है कि घटना की जिम्मेदारी न प्रशासन ले रहा और न ही कार्यक्रम के आयोजक। सभी पीछा छुड़ाने में लगे हैं। लेकिन जो कसूरवार दिखाई भी पड़ रहे हैं, वे या तो नदारद हैं, नहीं तो बचने का जुगाड़ लगा रहे हैं।
घटना के गुनहगार कार्यक्रम के वे आयोजक ही हैं, जिन्होंने प्रशासन की इजाजत के बिना मौत का तांडव खेला। उनको पता था कि जहां कार्यक्रम आयोजित होगा, वह बहुत ही संवेदनशील इलाका है। बावजूद इसके उन्होंने हिमाकत की। घटना के वक्त कई नेता कार्यक्रम के मंच पर मौजूद थे, लेकिन हादसे का पता लगते ही सभी रफूचक्कर हो गए। अपने-अपने घरों में जाकर दुबक गए और जनता को भेड़-बकरियों की तरह मरने को छोड़ गए।
कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर भी उस समय वहीं मौजूद थीं, लेकिन वह भी पतली गली से खिसक गईं। इंसान की वेदना इतनी खत्म हो गई है कि मरते इंसान की भी कोई सहायता नहीं करता। नवजोत कौर को घटना में हताहत हुए लोगों की देखरेख करनी चाहिए थी, बजाय वहां से भागने की।
अमृतसर प्रशासन की अनुमति के बिना आयोजित हुए दशहरा कार्यक्रम में जो हादसा हुआ, उसके जिम्मेदार आयोजक हैं? संभावित घटना के चलते स्थानीय प्रशासन ने वहां पिछले साल भी आयोजन की इजाजत नहीं दी थी। लेकिन इस बार कांग्रेस नेता के बेटे ने अपनी दबंगई से गैरकानूनी तरीके से रावण दहन का आयोजन किया। उनकी इस हठधर्मिता के चलते इतना बड़ा हादसा हुआ।
महज दस मिनट के अंतराल में ही रेल सैकड़ों लोगों को काटते हुए निकल गई। पर्व का माहौल क्षणभर में मातम में तब्दील हो गया। घटना के तीन दिन बीत जाने के बाद भी वहां चीख-पुकार का माहौल है। लोग अपनों की यादों को वहां महसूस कर रहे हैं। कई लोग अब भी लापता हैं। कुछ शवों की अभी तक शिनाख्त नहीं हो सकी है।
घटना के वक्त प्रशासन को जो मदद करनी चाहिए थी, वह नहीं की गई। प्रदेश सरकार की उदासीनता भी सामने आई है। पंजाब के मुख्यमंत्री उस वक्त दिल्ली हवाईअड्डे पर थे, वह विदेश जा रहे थे। घटना की खबर सुनकर नहीं गए और लौट आए, लेकिन सीधे घटनास्थल पर जाना मुनासिब नहीं समझा। दूसरे दिन दोपहर को वहां पहुंचे। उनके तुरंत घटनास्थल पर न पहुंचने को लेकर तमाम तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं। सवाल उठने भी चाहिए।
घटना होने के बाद रेलवे के आला अधिकारियों के अलावा सियासी दलों के नेताओं के वहां पहुंचने का सिलसिला अब शुरू हो गया है। राजनेताओं के आरोप-प्रत्यारोपों का दौर भी शुरू हो गया। भाजपा नेता घटना के कसूरवार वहां के विधायक और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को ठहरा रहे हैं, क्योंकि घटना के दौरान सिद्धू की पत्नी आयोजन स्थल की मुख्य अतिथि थीं। जब हादसा हुआ तो वह वहां से तुरंत निकल गईं।
यह आयोजन कांग्रेस पार्षद के पुत्र सौरभ मिठू मदान ने करवाया था। आयोजन स्थल रेलवे ट्रैक से एकदम सटा हुआ था। लोग ट्रैक पर खड़े होकर रावण दहन का नजारा देख रहे थे। उसी दौरान अमृतसर-हावड़ा मेल आ गई। अपने बचाव के लिए लोग दूसरे ट्रैक पर चले गए, लेकिन तभी दूसरी ओर से भी ट्रेन आ गई। लोग जब तक खुद को संभालते, रेल उनको काटती हुई निकल गई।
सैकड़ों लोगों का काल बनी जालंधर-अमृतसर डीएमयू की गति बहुत तेज थी। घटना में घायल हुए प्रत्यक्षदर्शी अमन, बलजोत और खेड़ा के मुताबिक आतिशबाजी के शोर में किसी को ट्रेन की आवाज सुनाई नहीं दी। मरने वाले लोगों के शरीर कई हिस्सों में बंट गए। मौत का सरकारी आंकड़ा साठ-सत्तर का बताया जा रहा है, लेकिन मौतें ज्यादा होने का अनुमान है।
घटना का आरोप अपने सिर न लेने को लेकर रेलवे अपना पीछा छुड़ाने की फिराक में है। रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा कह चुके हैं कि इसमें रेलवे का कोई दोष नहीं है। रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्विनी लोहानी कहते हैं कि बेशक ड्राइवर की गलती है, लेकिन अगर वह इमरजेंसी ब्रेक लेता तो हादसा और भी बड़ा हो जाता। उससे ट्रेन पलट भी सकती थी। हादसे की जगह अंधेरा था और ट्रैक घुमावदार भी था।
लोहानी ने कहा कि गेटमैन की जिम्मेदारी सिर्फ गेट की होती है, हादसा इंटरमीडिएट सेक्शन पर हुआ, जो एक गेट से 400 मीटर दूर है। वहीं दूसरे गेट से आधा किलोमीटर दूर है। लोहानी ने यह भी कहा कि जिस जमीन पर दशहरा का आयोजन था, वह रेलवे की जमीन नहीं है। आयोजन के संबंध में रेलवे को सूचित नहीं किया गया था। मतलब, किसी भी तरह से मामले को रफा-दफा करने के जुगत में है पूरा रेलवे तंत्र।
हादसे का शिकार हुए ज्यादातर लोग मजदूर वर्ग के हैं। दैनिक मजदूरी पर गुजारा करने वाले लोग शाम को अपने बच्चों के साथ रावण दहन देखने गए थे। कुछ लोग अपने बच्चों को कंधों पर बैठाकर रेल ट्रैक पर खड़े होकर रावण दहन का नजारा दिखा रहे थे। लेकिन उनको क्या पता था कि पीछे से उनकी मौत आ रही है। रेल आई तो सबको रौंदती हुई निकल गई। मृतकों में ज्यादातर यूपी-बिहार के लोग बताए जा रहे हैं।
अमृतसर हादसे में रामलीला में रावण का किरदार निभाने वाले कलाकार दलवीर सिंह की भी मौत हो गई। कार्यक्रम में दलवीर सिंह का छह माह का बेटा, पत्नी और बूढ़ी मां भी मौजूद थीं। बेटे की दर्दनाक मौत की खबर सुनकर उनका रो-रोकर बुरा हाल है। दलबीर ने कइयों की जान बचाई, लेकिन खुद मौत के मुंह में चला गया। दलबीर ने शहीद होने जैसा कार्य किया है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। (आईएएनएस/आईपीएन)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)