सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाने पर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बंटे
नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (आईएएनएस)| ऊंची अदालतों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाकर 70 साल करने के मसले पर सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों के सुझावों में एका नहीं है।
इस प्रस्ताव का विरोध करने वाले न्यायाधीशों का कहना है कि 65 साल इष्टतम उम्र सीमा है, क्योंकि इस उम्र में भी न्यायालय के कार्यभार का भारी बोझ वहन करना मुश्किल हो जाता है।
न्यायमूर्ति के. टी. थॉमस और न्यायमूर्ति के. एस. पनिकर राधाकृष्णन ने सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने के सुझाव को खारिज कर दिया, जबकि न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी ने इसकी अनुशंसा की है।
हाल के दिनों में महान्यायवादी के. के. वेणुगोपाल ने ऊंची अदालतों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का मसला कई बार उठाया है। उन्होंने न्यायाधीशों का वेतन भी तीन गुना बढ़ाने की बात कही है। हालांकि यह नरेंद्र मोदी सरकार का रुख नहीं है।
सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने की तरफदारी करने वालों ने जीवन-प्रत्याशा को इसका आधार बताया है। इसकी तुलना अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की परंपरा से की है। अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जीवनर्पयत सेवा में होते हैं, जबकि ब्रिटेन में सेवानिवृत्ति की उम्र 70 साल है। कुछ अन्य देशों में न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 70 या 75 साल है।
सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने के सुझाव को उचित बताते हुए वरिष्ठ वकील सी.एस. वैद्यनाथन ने कहा कि 65 साल के बाद भी काम करने की शारीरिक और मानसिक शक्ति काफी होती है। पूर्व महान्यायवादी मुकुल रोहतगी और वरिष्ठ वकील के. वी. विश्वनाथन ने भी इस विचार का समर्थन किया है।
विश्वनाथन ने कहा कि न्यायाधीशों के 65 साल की उम्र में सेवानिवृत्त होने का कोई तर्कसंगत औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा, “न्यायाधीश उम्र के पांचवें दशक के अंत में या छठे दशक के आरंभ में परिपक्व बनते हैं।”
अपनी बात की पुष्टि के लिए विश्वनाथन ने न्यायमूर्ति एंथनी मैकलियोड केनेडी का दृष्टांत दिया, जिन्होंने 82 साल की उम्र में 2018 में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में अपनी लेखनी को विराम दी थी।
न्यायमूर्ति केनेडी के उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति ब्रेट कैवनॉग बने हैं। उनकी नियुक्ति को सीनेट से पुष्टि को लेकर हुई सुनवाई के दौरान ‘मी टू’ ज्वालामुखी की लपटें उठीं।
रोहतगी, वैद्यनाथन और के. वी. विश्वनाथन ने न सिर्फ सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने की तरफदारी की, बल्कि उन्होंने उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र एक समान करने की बात कही, जिसपर न्यायमूर्ति रेड्डी ने असहमति जाहिर की।
न्यायमूर्ति थॉमस ने सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा में समानता का समर्थन किया, जबकि न्यायमूर्ति रेड्डी का मानना है कि अंतर रहना चाहिए।
न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति उम्र बढ़ाई जा सकती है, लेकिन सेवानिवृत्ति की उम्र से पूर्व पद छोड़ने का विकल्प होना चाहिए, जो परंपरा जिंबाब्वे में प्रचलित है।
वहां शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की नियुक्ति के समय सेवानिवृत्ति की उम्र 65 साल होती है, लेकिन वे 70 साल तक अपनी सेवा में रहने का विकल्प चुन सकते हैं।
उन्होंने भारत में न्यायाधीशों पर कार्य के बोझ का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका में सर्वोच्च न्यायालय के पास हर साल 100 से 130 मामले होते हैं। इतने ही मामले इंग्लैंड और अंतर्राष्ट्रीय अदालत में भी होते हैं।
लेकिन भारत के सर्वोच्च न्यायालय को हर साल 65,000 मामलों का सामना करना पड़ता है।