बिसाऊ की मूक रामलीला के मुखौटों में बोलते हैं पात्र
यूनेस्को के मुताबिक, बनारस के रामनगर की रामलीला अभी तक चलने वाला संसार का एक मात्र लोकनाट्य है। दिल्ली की प्रसिद्ध रामलीला की शुरुआत अंतिम मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर के जमाने से हुई थी।
राजस्थान में झुंझुनू जिले के बिसाऊ कस्बे की मूक रामलीला दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती है। बिना संवाद बोले संपन्न होने वाली यहां की रामलीला शायद दुनिया में अपनी तरह की एक मात्र रामलीला है।
इस रामलीला की खासियत यह है कि करीब-करीब सभी जगह रामलीलाएं नवरात्र स्थापना के साथ शुरू होकर दशहरे या उसके अगले दिन राम के राज्याभिषेक प्रसंग के मंचन के साथ पूरी हो जाती है, लेकिन बिसाऊ की रामलीला का मंचन पूरे एक पखवाड़े का होता है।
रामलीला में सातवें दिन लंका के पुतले का दहन किया जाता है। बाद में कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का दहन होता है। दशहरे की बजाय पूर्णिमा के एक दिन पहले (चतुर्दशी) को रावण के पुतले का दहन किया जाता है। भरत-मिलाप प्रसंग के साथ पूर्णिमा को रामलीला का समापन होता है। कलाकार मुखौटे लगाकर मैदान में नर्तन करते हुए शाम चार बजे से रात आठ बजे तक लीला का मंचन करते हैं।
यहां की रामलीला के लिए स्टेज नहीं लगाया जाता है, बल्कि मुख्य बाजार में सड़क पर मिट्टी बिछाकर उत्तर दिशा में लकड़ी से बनी अयोध्या व दक्षिण दिशा में लंका तथा बीच में पंचवटी आश्रम बनाया जाता है। ऊपर वंदनवार बांधी जाती है। उत्तर व दक्षिण में दो दरवाजे बनाए जाते हैं, जिन पर लगाए गए परदों पर रामायण की चौपाइयां लिखी होती हैं।
रामलीला मंचन के दौरान एक पंडित रामायण की चौपाइयों का पाठ करता रहता है। रामलीला में राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न व सीता के मुकुट चांदी के बने होते हैं। रामलीला में अन्य पात्रों के अलावा दो विदूषक भी होते हैं, जो लोगों का मनोरंजन करते हैं।
कलाकार त्रिलोकचंद शर्मा की ओर से बनाए जाने वाले रावण, कुंभकर्ण व मेघनाद के पुतले भी आकर्षण का केंद्र होते हैं। बगैर संवाद बोले स्वरूपों के मुखौटे लगाकर लंबे मैदान में लीला का मंचन किया जाता है। कागज, गत्ते व रंगों से मुखौटे व हथियार बनाए जाते हैं। ढोल-तासों की आवाज पर युवा कलाकार नाच-कूदकर अभिनय करते हैं। रामलीला की तैयारियां दो माह पूर्व से शुरू होने लगती हैं। इस अवधि में विभिन्न स्वरूपों के मुखौटे बनाने, ड्रेस की सिलाई, तीर-कमान, गदा, तलवारें वगैरह बनाने के कार्य करवाए जाते हैं।
लीला के पात्रों की पोशाक भी अलग तरह की होती है। अन्य रामलीला की तरह शाही एवं चमक-दमक वाली पोशाक न होकर साधारण पोशाक होती है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न की पीली धोती, वनवास में पीला कच्छा व अंगरखा, सिर पर लंबे बाल एवं मुकुट होता है। मुख पर सलमें-सितारे चिपकाकर बेल-बूटे बनाए जाते हंै।
हनुमान, बालि-सुग्रीव, नल-नील, जटायु व जामवंत आदि की पोशाक भी अलग-अलग रंग की होती है। सुंदर मुखौटा तथा हाथ में घोटा होता है। रावण की सेना काले रंग की पोशाक में होती है। हाथ में तलवार लिए युद्ध को तैयार रहती है। मुखौटा भी लगाया हुआ होता है। आखिरी चार दिनों में कुंभकर्ण, मेघानाद, एवं रावण के पुतलों का दहन किया जाता है। फिर भरत-मिलाप के दिन पूरे नगर में श्रीराम दरबार की शोभायात्रा निकाली जाती है।
यहां रामलीला की शुरुआत जमुना नामक एक साध्वी द्वारा 180 वर्षो पूर्व की गई बताते हैं, जो गांव के पास रामाणा जोहड़ में साधना करती थी। साध्वी वहीं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर उनसे मूकाभिनय करवाती थी, तभी से इस रामलीला की शुरुआत मानी जाती है।
श्री रामलीला प्रबंध समिति इसकी व्यवस्था करती है और प्रवासी भामाशाह व कस्बेवासी रामलीला का खर्च उठाते हैं। प्रबंध समिति का कार्यालय जे. के. ग्रुप के परिवारजनों की हवेली में है, इसलिए इस हवेली की ख्याति रामलीला वाली हवेली के नाम से भी है। हवेली में गत 50 वर्षो के सभी मुखौटे संग्रहीत हैं।
इस तरह 180 साल पहले शुरू हुई परंपरा को कस्बेवासी अब भी श्रद्धा से निभा रहे हैं। बिसाऊ की रामलीला के प्रति स्थानीय लोगों समेत आसपास के गांवों के लोगों में भी काफी उत्सुकता रहती है। बिसाऊ की रामलीला को देखने के लिए दूर-दूर से आने वाले दर्शकों की भीड़ रहती है। रामलीला का मंचन आसोज शुक्ल की एकम से पूर्णिमा तक होती है। रामजन्म से राज्याभिषेक तक के प्रसंग मंचित किए जाते हैं।
15 दिवसीय लीला के मंचन पर करीब चार लाख रुपये खर्च आता है। इसे ये लोग कस्बे के भामाशाहों समेत मुंबई, कोलकाता से आए प्रवासियों के सहयोग से जुटाते हैं। रामलीला मंडल कमेटी के अध्यक्ष महावीर सोती ने बताया कि मुंबई में रामलीला प्रबंध समिति ट्रस्ट बना हुआ है। उसके नाम से कुछ रुपयों की बैंक एफडी करवाई हुई है। इसका सालाना ब्याज मिला जाता है, बाकी खर्च कस्बे के व प्रवासियों से एकत्रित हो जाता है।
राजस्थान में झुंझुनू जिले के बिसाऊ कस्बे में गत 180 वर्षो से अनवरत जारी की मूक रामलीला को दुनिया के मानचित्र में लाने के लिए पूरे कस्बेवासी एकजुट हुए। इसे हेरीटेज एक्टिविटी में शामिल करने के उद्देश्य से बिसाऊ वेलफेयर ट्रस्ट के सौजन्य से 6 सितंबर, 2018 को शाम सात बजे से देर रात तक इसका विशेष मंचन किया गया। कलाकारों ने रामलीला के प्रसंगों को एक ही दिन में दिखाकर सांस्कृतिक समृद्धित का परिचय दिया। आमतौर पर यह रामलीला हालांकि 15 दिनों तक चलती है।
मूक रामलीला को हेरीटेज एक्टिविटी में शामिल कराने के लिए स्थानीय लोगों और प्रवासियों के प्रयासों से संबंधित कला एवं संस्कृति मंत्रालय एवं देवस्थान विभाग के अधिकारी कस्बे की इस अनमोल विरासत को परखने पहुंचे। रामलीला मंचन के दौरान बिसाऊ कस्बे की हेरिटेज सिटी के दावे को परखने और सत्यता जांचने के लिए अधिकारियों की उच्चस्तरीय टीम भी मौजूद रही। टीम ने बिसाऊ के ऐतिहासिक स्थलों का बारीकी से निरीक्षण किया। बिसाऊ वेलफेयर ट्रस्ट के सदस्यों ने टीम को विभिन्न स्थलों का दौरा करवाने के अलावा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता की जानकारी दी।
बिसाऊ कस्बे में बांके बिहारी मंदिर के पास विशेष मूक रामलीला का मंचन किया गया। 15 दिन में चलने वाले प्रसंगों को मात्र छह घंटे में बखूबी दशार्या गया। मूक रामलीला के सभी दृश्य कलाकारों ने एक के बाद एक कड़ियों में मंचित किया। मूक रामलीला के विशेष मंचन में 125 कलाकारों ने भाग लिया, जिनमें 100 से ज्यादा कलाकारों ने मुखौटे पहन रखे थे। इस दौरान रावण के पुतले का भी दहन किया गया व रामायण के सभी प्रसंगों का मंचन किया गया।
रामलीला मंडल कमेटी के अध्यक्ष महावीर सोती और बिसाऊ वेलफेयर ट्रस्ट के कमल पोद्दार ने बताया कि मूक रामलीला बिसाऊ सहित समूचे राजस्थान की धरोहर है। इसे दुनिया से रूबरू कराने के लिए एक दिन में रामलीला का विशेष आयोजन किया गया था। ट्रस्ट ने इसकी संकल्पना तैयार की थी। कलाकारों की मेहनत, स्थानीय और प्रवासी लोगों के प्रयासों से यह संभव हो पाया है।
शेखावाटी की धरोहर एवं बिसाऊ कस्बे के गौरव इस रामलीला को अगर राजस्थान सरकार व पर्यटन विभाग संरक्षण देकर विश्व के पर्यटन मानचित्र में शामिल कर ले तो बिसाऊ कस्बा प्रदेश का एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता है।
(लेखक रमेश सर्राफ धमोरा स्वतंत्र पत्रकार हैं)