लेटर टू बापू, सेल्फी विद झाड़ू (व्यंग्य)
बापू, लोग तो तेरी नकल उतारने की होड़ में लग गए हैं। कोई फूल देता है तो तो कोई हाथ जोड़ता है, पर अपुन को मंदसौर के प्रोफेसर गुप्ता बहुत पसंद आए। पता है बापू, उन्होंने वही किया..नहीं समझे.. वो क्लास के पास नारेबाजी से परेशान थे। नारेबाजों को क्या रोका, नारेबाज उन्हें ही देशद्रोही कहने लगे। फिर क्या था..गुप्ताजी उनके पैर पकड़ने लगे।
खैर, बापू तू बता, ऊपर के क्या हालचाल हैं? मेरे पास टाइम ही टाइम है। छुट्टी का असल मजा तो आज ही होगा। सुबह दो-चार जगह झाड़ूफेर प्रोग्राम में हो आया। फोटू खिंचवा ली। इधर का कचरा उधर, उधर का इधर। बस छुट्टी पक गई। दिनभर घूमूंगा, फिरूंगा, फोटू भिजवाऊंगा और क्या! अरे, अभी याद आया है। आज तो चैनल वाले भी फोटू दिखाएंगे। वो क्या कहते हैं..सेल्फी भेजो। एक आइडिया आया बापू। झाड़ू के संग सेल्फी खींचूंगा। तुम कहोगे कैसा मूर्ख है। भला झाड़ू संग सेल्फी? तुमको पता नहीं बापू, तुम्हारे भारत यानी ‘दैट इज इंडिया’ में कुछ भी इंपॉसिबल नहीं।
सुन बापू! मेरे गांव की जो नदी है, वो सूख गई। सच! सारे शहर की गंदगी से इतना शरमाई, थक, हार गई, कोई देखने सुनने वाला नहीं था। 5-10 बरस पहले ही पता नहीं क्या हुआ, पहले धार कम हुई और अब पूरा खल्लास हो गई।
बापू, मेरा गांव भी सीमेंट जंगल बन गया है। तुम सिखाते थे मिट्टी में चला करो, बरसात की सोंधी खुशबू लिया करो, हरे घास में नंगे पैर टहला करो और सुबह-शाम ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीर पराई जाणे रे’ गाया करो। पर क्या करूं बापू, मिट्टी तो छोड़ रेत तक सोने के भाव बिक रही है। कहां चलूं सीमेंटेड रोड में? घास गाय-भैंस को खिलाने को नहीं बची तो घूमने कहां जाऊं? बेशरम की झुरमुट में या हर जगह इकट्ठा कचरे के पहाड़ में।
बापू, तुम मानते क्यों नहीं..पीने के पानी के लिए इतनी मार-काट होती है कि घूमने की फिकर कैसी? पता है, दूसरे मोहल्ले से पानी लाते खासी मेहनत हो जाती है। यही तो घूमना हुआ। तेरा भजन मोबाइल वाले बोलते हैं, आउटडेटेड है। तू ही बता, नया वर्जन कहां मिलेगा?
बापू! शहर तो छोड़, मेरा छोटा सा गांव भी गंदा हो गया। सुन! जो पैसा सरकार ने नाली के लिए भेजा था वो सरपंच की गैराज में लग गया। अरे एक बात तो बताना ही भूल गया। तेरी बहू को शौच के लिए बाहर न जाना पड़े सो सरकार ने घर पर ही पक्का संडास बनवा दिया। पर क्या बताऊं, उसमें लगा टीन का दरवाजा महीनेभर में ही चोरी हो गया।
‘सत्यमेव जयते’ वाली पुलिस में रपट लिखाने गया तो उल्टा मुझसे पूछने लगे कि शक किस पर है। बता, बापू मैं कैसे बता दूं? मरना है क्या बताकर कि वो चौधरी का बेटा..खैर छोड़ बापू। बताके मार थोड़े ही खानी है! तुझे पता है, मेरा गाल तेरे गाल जैसे मजबूत नहीं, क्योंकि तुझे पता है मिलावटी दाना, पानी खाता हूं। इसलिए तेरे जैसे गाल थोड़ी आगे करूंगा।
चल छोड़ बापू, तू बता कैसा है। जल्दी-जल्दी बता दे। शाम हो रही है। रात की चिंता सता रही है। खैर, छोड़ एक दिन नींद नहीं भी आई तो क्या। अरे बापू सुन तो, सुबह मुझे सरकारी अस्पताल भी जाना है। पता है क्यों? तेरे जनमदिन पर, सरकारी स्कूल में मध्यान्ह भोजन का खास खाना बना था। नेताइन समूह को ठेका मिला था। पता नहीं कैसे नकली दूध की असली खीर में जिंदा छिपकली गिर गई, जिससे बच्चे बीमार हो गए। अभी भी 15-20 अस्पताल में हैं। डॉक्टर तो तेरी फोटू के लिए फूल-माला का इंतजाम करने सीएमओ के पास शहर चला गया था। गनीमत थी कि अपना मंतू सफाईवाला था न, उसका बेटा अस्पताल में बाप की जगह भर्ती हो गया था। भला इंसान है। खुद ही बच्चों को बॉटल चढ़ा दिया अब सब ठीक हैं।
अच्छा बापू! अपुन का टेम हो गया, तुझे पता है न तलब लग रही है। पर बापू, एक बात तेरे लिए बहुत अच्छी है। सच्ची बताना, तू वहां खुश है कि नहीं? सुन, अगर कोई तकलीफ हो तो संकोच नहीं करना। मुझे पता है, वहां भी तेरे बहुत से पॉलिटिकल कांपीटीटर पहुंच गए होंगे। तुझे वहां भी चैन नहीं होगी। खैर, चिंता मत करियो। उससे भी आगे का जुगाड़ हो गया है। वहां तकलीफ हो तो मुझे चुपचाप एसएमएस कर दियो। अगले 2 अक्टूबर तक तेरे लिए मंगल पर जगह रिजर्व करा दूंगा। वहां अभी भीड़-भाड़ कम है और किसी के दिमाग में नहीं है ये आइडिया। बात अपने तक रखियो। अच्छा, तो चलूं बापू..राम-राम।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)