उप्र में पर्यटकों पर बंदरों के हमले से दहशत
आगरा, 29 सितंबर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध ताजमहल का दीदार करने के लिए आने वाले पर्यटकों पर अचानक बंदरों के लगातार हमलों के बाद इस शहर में दहशत का मौहाल बन गया है। ताजमहल का दीदार करने के लिए सालाना 80 लाख लोग आते हैं।
ऑस्ट्रेलिया से आए पर्यटकों के एक समूह ने शनिवार को कहा कि उन्हें ताजमहल परिसर में और उसके इर्द-गिर्द बंदरों, जंगली कुत्तों और सांड़ों के हमले से सतर्क रहने को कहा गया है।
पर्यटकों को गाइड द्वारा पेड़ों के बीच बने संकीर्ण रास्तों पर अकेले न चलने की सलाह दी गई है और बंदरों के हमले से बचने के लिए समूह में रहने को कहा गया है।
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के जवानों और भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण के कर्मियों के पास इस खतरे से निपटने का कोई उपाय नहीं है।
पर्यटन गाइड वेद गौतम का कहना है, ताज परिसर में बिल्ली, कुत्ते, बंदर, मधुमक्खियां बड़े खतरनाक साबित हो रही हैं।
अगस्त में इंदौर के एक पर्यटक समूह पर ताज परिसर के भीतर संग्रहालय के समीप बंदरों द्वारा हमला किया गया था।
अप्रैल में चेन्नई के एक पर्यटक को कुत्ते ने बेरहमी से काट लिया था, वहीं इजरायल के एक पर्यटक को ताज के पूर्वी द्वार के बाहर उन्मादी सांड द्वारा टक्कर मार दी गई थी।
पूर्व प्रभागीय आयुक्त प्रदीप भटनागर ने एक एनजीओ वाइल्डलाइफ एसओएस के साथ मिलकर 10,000 बंदरों को घेरने की योजना बनाई थी, लेकिन उचित अधिकारियों से अनुमति न मिलने के कारण यह पूरी नहीं हो पाई।
होटल चलाने वाले सुरेंद्र शर्मा ने कहा, लेकिन अब स्थिति वास्तव में खतरनाक हो चुकी है। बंदरों को एक क्षेत्र से दूसरे इलाके में चलने वाली सेनाओं के रूप में देखा जाता है। शहर में 50,000 से अधिक बंदर हैं।
उन्होंने कहा, वन्यजीव अधिनियम के प्रावधानों के कारण बंदरों पर बिना पर्याप्त सुरक्षा और सावधानी के न तो हमला किया जा सकता है और न ही उन्हें घेरा जा सकता है। बंदरों को दूसरी जगह स्थानांतरित करने की योजना भी विफल हो गई, क्योंकि कोई जिला उन्हें आश्रय नहीं देना चाहता।
वृंदावन में तीर्थयात्रियों पर बंदरों द्वारा रोजाना हमला किया जाता है। आम तौर पर बंदर चश्मे या पर्स को निशाना बनाते हैं, जो केवल तभी लौटाए जाते हैं जब बंदरों को कुछ खाने या पीने के लिए दिया जाता है।
एएसआई के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, खतरे से निपटने में नागरिक अधिकारी असहाय महसूस करते हैं। हमने कई बार नगरपालिका को इस बाबत खत लिखा है, लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
एक पशु अधिकार कार्यकर्ता ने कहा, बंदरों को वन्यजीव अधिनियम में सुरक्षित प्रजाति की सूची से बाहर कर देना चाहिए।
उन्होंने कहा, नर वानरों को मारा नहीं जा सकता, इसलिए उन्हें पकड़कर जंगल में छोड़ देना चाहिए। जन्मदर नियंत्रण एक विकल्प हो सकता है। बंदरों को रोगाणुहीन किया जा सकता है। लेकिन विधेयक को कौन आगे बढ़ाएगा?