मैथली नाटक ‘झिझिर कोना’ में उभरी युवा दंपति की वेदना
पटना, 25 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार की राजधानी स्थित कालिदास रंगालय में चेतना रंग महोत्सव के तहत मंगलवार को अरविंद अक्कू के लिखे मैथली नाटक ‘झिझिर कोना’ का मंचन किया गया।
नितेश कुमार के निर्देशन में युवा रंग कर्मियों ने ग्रामीण परिवेश को जीवंत किया। इस नाटक में कथक नृत्यांगना सलोनी मल्लिक मुख्य भूमिका में थीं। इस नाटक में कलाकारों ने ग्रामीण परिवेश में हो रहे आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक समस्या से परेशान एक युवा दंपति की वेदना और संघर्ष का बेजोड़ चित्रण किया।
‘झिझिर कोना’ में दिखाया गया कि पंचायत स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमता, छुटभैया नेता की धूर्तता ने अधखिच्चू पढ़े-लिखे ग्रामीणों को किस तरह अपने चंगुल में ले लिया है। इसमें सुनारी और गोपिया की व्यथा की कहानी है।
भ्रष्टाचार में लीन मुखिया से लेकर ऊपर के अधिकारी तक गरीब के लिए बना हुआ कोई सरकारी योजना क्रियान्वयन में इस तरह से सेंधमारी कर रहा है जो गरीब जनता तक पहुंच ही नहीं पाता है और अगर पहुंचता भी है तो उस राशि का आधा से अधिक हिस्सा अधिकारी लोग आपस में ही बांट लेते हैं।
सुनारी और गोपियाक का एक सपना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उसका भी एक पक्का घर हो, मगर एंड़ी से चोटी तक भ्रष्ट मुखिया उसे प्रधानमंत्री आवास आवंटित नहीं करता है और दोनों लोग जब मुखिया के विरुद्ध कलक्टर के पास शिकायत कर देता है, तब शुरू होता है घात-प्रतिघात। मुखिया गोपिया को झूठे मुकदमे में फंसाकर जेल भेजवा देता है और अकेले गर्भवती सुनारी के घर में घुसकर मुखिया बलात्कार करता है।
मगर सुनारी इस सबसे होने के बावजूद भी आत्महत्या नहीं करती है, क्योंकि वह सीता जैसी कमजोर नहीं है। उसे अपने संघर्ष पर विश्वास है। इसलिए वह संकल्प लेती है कि अपने लिए नहीं, बल्कि अपने कोख में पल रहे संतान के लिए जीएगी। उसे विश्वास है कि उसकी आने वाली संतान उसके संघर्ष का पताका लेकर विजय पथ पर अवश्य आगे बढ़ेगा।