सौर और पिरुल ऊर्जा की मदद से घटेगा पहाड़ी गांवों में पलायन का ग्राफ
उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों तथा ईंधन आधारित सह उत्पादकों से विद्युत आपूर्ति के लिए शुल्क, क्षमता और निबंधन नीति लागू कर दी है।
उत्तराखंड में सौर ऊर्जा और पिरुल ऊर्जा की मदद जल्द ही पहाड़ी गांवों पर हो रहे लोगों के पलायन के आंकड़े कम किए जा सकेंगे। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग (यूईआरसी) ने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और ईंधन आधारित सह उत्पादकों से विद्युत आपूर्ति के लिए राज्य में शुल्क, क्षमता और निबंधन नीति लागू कर दी है।
इस नीति में आयोग ने पहले आओ, पहले पाओ की तर्ज पर लाभ देने का फैसला किया है। योजना में लगाए जाने वाले प्रोजेक्टों में केंद्र सरकार की ओर से 70 फीसद सब्सिडी का लाभ मिलेगा। आठ सितंबर से ही उरेडा कार्यालय में आवेदन शुरू कर दिए जाएंगे।
इसके साथ साथ पहाड़ों पर लोगों को नए रोजगार से जोड़ने के लिए यूईआरसी ने सौर ऊर्जा के अलावा पिरुल पर आधारित बिजली परियोजना की नीति लागू की है।आयोग ने कहा है कि सौर ऊर्जा और पिरुल पर आधारित परियोजना पहाड़ में पलायन रोकने और रोजगार बढ़ाने में महत्वपूर्ण होगी। खासकर सौर ऊर्जा पर आधारित ग्रिड इंटरेक्टिव रूफ और लघु सौर पीवी परियोजनाओं की क्षमता को इस नीति में संशोधित किया गया है।
उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोगके मुताबिक पहले 1,000 किलोवाट तक क्षमता के प्रोजेक्ट सौर ऊर्जा में दिए जा रहे थे। लेकिन अब पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियों का अध्ययन करने के बाद इसमें कुछ बदलाव किया गया है। अब से योजना में दो किलोवाट से एक मेगावाट तक के प्रोजेक्ट का लाभ ग्रामीण उठा सकते हैं। इसमें घरों की छतों या खाली पड़ी जमीन पर प्रोजेक्ट मामूली लागत पर लगाए जा सकते हैं।इसके लिए केंद्र सरकार 70 फीसदी अनुदान दे रही है। इसके अलावा बैंकों से भी लोन लेकर प्रोजेक्ट लगाए जा सकते हैं।
आयोग ने पिरुल बायोमास गैसीफायर परियोजना को भी राज्य में शुरू कर दिया गया है। पिरुल से बिजली उत्पादन नीति में स्थानीय लोगों के रोजगार को ध्यान में रखते हुए आयोग ने डेढ़ रुपए से लेकर दो रुपए प्रति किलो पिरुल बेचने का निर्णय लिया है।
उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा पीरूल के वनों से ढका है जो कि गर्मियों के दौरान पीरूल की पत्तियों से भर जाता है जिससे की वनों की सतह पर पीरूल के पत्तो की एक परत बन जाती है जो कि बहुत आसानी से आग पकड़ लेती है जिस कारण वनों में जैव विविधता और पर्यावरण प्रणाली भी नष्ट हो रही है। ऐसे में इस योजना में व्यक्ति हर दिन 300 से 400 किलोग्राम पिरुल (चीड़ की पत्तियां) जमा कर सकता है। इससे प्रतिमाह पांच हज़ार से छह हज़ार की आय हो सकती है।