लंबी लड़ाई के बाद भारत समलैंगिको को मान्यता देने वाला बना 27 वां देश
भारत में 158 साल पहले धारा 377 लागू हुई थी; इसे हटाने के लिए 26 कोर्ट में चली लड़ाई के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है। समलैंगिको को मान्यता दे कर भारत बना हैं 27 वां देश। समलैंगिकता के विषय पर कई वर्षों से दुनियाभर में बहस हो रही है।
मेसोपोटामिया सहित कई प्राचीन सभ्याताओं ने इसे सदियों पहले ही मान्यता दे दी थी। लेकिन 17वीं और 18वीं सदी में लगभग सभी देशों में इसे पाप माना जाता था। लेकिन इतिहास गवाह है कि भारत में 1861 में ही इसे कानूनी तौर पर मान्यता मिल गई थी तब जब ब्रिटिश साम्राज्य के 42 पूर्व उपनिवेशों में धारा 377 मौजूद है।
जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीस दीपक मिश्रा अपना फैसला सुनाना शुरू किया तब उन्होंने कई विचारकों, लेखकों और नाटककारों के विचार और कथनों से इसकी शुरुआत की। हम बात कर रहे हैं किन-किन देशों में समलैंगिकता है कानूनी और कहां आज भी है गैर कानूनी दुनिया में कई ऐसे राष्ट्र हैं जहां समलैंगिकों को संबंध बनाने पर मौत की सजा सुनाई जाती है। समलैंगिकता 76 देशों में अभी भी अपराध की श्रेणी में है जबकि ईरान, सूडान, सऊदी, यमन, सोमालिया, इराक नाइजीरिया, सीरिया में मौत की सजा का प्रावधान है।
समलैंगिकों को सबसे पहले मान्यता 2000 में नीदरलैंड में मिली थी और इसके साथ ही समलैंगिक शादी को मान्यता देने वाला पहला देश बना। अभी तक 26 देश दे इसे मान्यता दे चुके हैं। 27 देशों में अब शादी वैध है। 120 देश में समलैंगिकता अपराध नहीं।
आपको बता दे एड्स भेदभाव विरोधी आंदोलन ने 1992 में दिल्ली हाईकोर्ट में धारा 377 को चुनौती दी। पर इसे कोर्ट ने खारिज कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2006 में दोबारा हाईकोर्ट में सुनवाई की गई और 2009 में हाईकोर्ट ने इसे अपराध के दायरे से बाहर कर दिया।
मामला यहीं ठंडा नहीं पड़ा, हाईकोर्ट के फैसले के बाद 2009 में एकबार फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे फिर अपराध की श्रेणी में रख दिया। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पिटिशन 2014 में खारिज किया फिर 2016 में पांच लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और फिर इस लड़ाई में कई बड़े लोग शामिल होते चले गए। मामले में मोड़ तब आया जब 2017 में कोर्ट ने सेक्सुअलिटी को निजता का हक माना। 6 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने एतिहासिक फैसले में कहा कि समलैंगिकता अपराध नहीं।