सर्वोच्च न्यायालय पर आक्षेप के लिए महाराष्ट्र पुलिस को फटकार
नई दिल्ली, 6 सितम्बर (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा अदालत के पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को नजरबंद करने के आदेश पर आक्षेप के लिए कड़ी आपत्ति जताई और महाराष्ट्र सरकार से पुलिस अधिकारियों को अनुशासन सिखाने को कहा। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की एक पीठ ने पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई को 12 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया और तब तक के लिए सभी को नजरबंद रखने का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने अदालत में मामला लंबित होने के बावजूद महाराष्ट्र पुलिस द्वारा संवाददाता सम्मेलन करने की कड़ी आलोचना की।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, आपको अपने पुलिस अधिकारियों से ज्यादा जिम्मेदार होने के लिए कहना होगा। मामला हमारे समक्ष है और हम पुलिस अधिकारियों से यह सुनना नहीं चाहते कि सर्वोच्च न्यायालय गलत है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, मैंने देखा कि पुणे के सहायक पुलिस आयुक्त आक्षेप लगा रहे थे कि सर्वोच्च न्यायालय को इस वक्त हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उनका यह कहने का कोई मतलब नहीं था। आप अदालत के सम्मान की धज्जियां उड़ा रहे हैं। आप आक्षेप लगा रहे हैं।
पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर मचे हंगामे के बाद पुलिस द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा, उनसे कहिए हमने इसे बड़ी गंभीरता से लिया है।
मेहता ने पुलिस की ओर से अदालत से माफी मांगी है।
जब याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील ने अदालत से पुलिस द्वारा मीडिया के साथ किसी प्रकार की जानकारी साझा करने पर रोक लगाने का आग्रह किया तो पीठ ने कोई आदेश देने से मना कर दिया।
मेहता ने पांच कार्यकर्ताओं की नजरबंदी का विरोध जताया और कहा कि इससे जांच प्रभावित हो सकती है।
उन्होंने कहा कि पांचों के खिलाफ गंभीर आरोप हैं।
सरकार ने इस बात से इंकार किया कि कार्यकर्ताओं को असहमत होने के कारण गिरफ्तार किया गया है और अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता रोमिला थापर और अन्य मामले से अनजान हैं।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी से कहा कि कि क्या एक आपराधिक मामले में तीसरा पक्ष हस्तक्षेप कर सकता है।
सिंघवी ने अदालत द्वारा गठित विशेष जांच दल से एक स्वतंत्र जांच कराने का सुझाव दिया।
इस पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, मतभेद लोकतंत्र का एक सुरक्षा कवच है। अगर इसकी इजाजत नहीं दी जाएगी, तो प्रेशर कुकर फट जाएगा।