नीरज सिंघल की अंतरिम जमानत बरकरार : सर्वोच्च न्यायालय
नई दिल्ली, 4 सितम्बर (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि भूषण स्टील के पूर्व प्रमोटर नीरज सिंघल को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा कथित तौर पर 2,500 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के मामले में दी गई अंतरिम जमानत जारी रहेगी। न्यायमूर्ति ए.एम.खानविलकर व न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि सिर्फ अंतरिम जमानत जारी रखने की अनुमति दी जा रही है। इसके साथ ही खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के अन्य पहलुओं पर पारित अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी और इस मामले को भी अपने अधीन ले लिया।
अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी और जांच के एसएफआईओ के अधिकार सहित विभिन्न पहलुओं के संदर्भ में बाकी के फैसले को बाद में देखा जाएगा।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने सिंघल को अंतरिम जमानत देते हुए कंपनी अधिनियम की धारा 212 के संदर्भ में कुछ प्रासंगिक टिप्पणी की थी।
कंपनी अधिनियम के तहत, कंपनी अधिनियम की धारा 212 अवैध गतिविधियों में गिरफ्तारी, जांच व अभियोजन की प्रक्रिया से जुड़ी है।
सर्वोच्च न्यायालय में एसएफआईओ ने दलील दी थी कि धारा 212 (15) के तहत जांच रपट अंतिम रपट नहीं है, क्योंकि यह सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अपेक्षित है और ऐसा सिर्फ आरोप लगाने के उद्देश्य से किया गया है।
अदालत का आदेश गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) की सिंघल की जमानत याचिका को चुनौती देने वाली याचिका पर आया है। केंद्र ने भी उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
एसएफआईओ ने सिंघल पर 2,500 करोड़ रुपये के सार्वजनिक धन को बेइमानी से निकालने का आरोप लगाया है। एसएफआईओ ने शीर्ष अदालत के समक्ष दलील दी कि सिंघल की रिहाई से जारी जांच को गंभीर नुकसान होगा, जो कि काफी आगे तक पहुंच गई है।
सिंघल अपनी मां द्वारा दाखिल की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर मिली जमानत पर जेल से बाहर हैं। सिंघल की मां की तरफ से पेश होते हुए उनके वकील ने तर्क दिया कि उनकी गिरफ्तारी अवैध है, क्योंकि शिकायत किसी अन्य कानून के तहत किया गया और गिरफ्तारी किसी अन्य के तहत हुई।
उच्च न्यायालय ने 29 अगस्त को नीरज सिंघल को अंतरिम जमानत देते हुए शर्ते लगाई और जांच के साथ सहयोग करने को कहा। अदालत ने यह भी कहा कि ‘एसएफआईओ उन्हें (सिंघल) कंपनी अधिनियम की धारा 217 (7) के साथ धारा 217 (4) के तहत अपने बयान पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर नहीं करेगी।’