जन्माष्टमी स्पेशल 2018 : एक नजर श्रीकृष्ण के जीवन की लीलाओं पर
मथुरा : हिन्दू मान्यता के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से तो हम सभी वाकिफ़ हैं। बाल्य अवस्था से लेकर युवावस्था तक उन्होंने अचंभित करने वाली घटनाओं को सबके सामने अंजाम दिया। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर हम आपको श्रीकृष्ण की जीवन की लीलाओं के बारे में बतांएगे।
मथुरा में जन्में श्रीकृष्ण – भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। उनका बचपन गोकुल, वृंदावन, नंदगाव, बरसाना आदि जगहों पर बीता।
देवराज इन्द्र के गर्व को किया चूर – अपनी कई हैरान करने वाली लीलाओं के दौरान श्रीकृष्ण ने असुर, दैत्यों से लेकर देवराज इन्द्र तक के गुरूर को खत्म कर दिया था।
क्रूर शासक कंस का वध – अपने मामा कंस का वध करने के बाद उन्होंने अपने माता-पिता को कंस के कारागार से मुक्त कराया और फिर जनता के अनुरोध पर मथुरा का राजभार संभाला। मथुरा की जनता भी कंस जैसे क्रूर शासक से मुक्त होना चाहती थी।
जरासंध बना कृष्ण का कट्टर शत्रु – कंस के मारे जाने के बाद कंस का ससुर जरासंध कृष्ण का कट्टर शत्रु बन गया। जरासंध मगध का अत्यंत क्रूर एवं साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का शासक था।
जरासंध ने कई राजाओं को किया अपने अधीन – हरिवंश पुराण के अनुसार उसने काशी, कोशल, चेदि, मालवा, विदेह, अंग, वंग, कलिंग, पांड्य, सौबीर, मद्र, कश्मीर और गांधार के राजाओं को परास्त कर सभी को अपने अधीन बना लिया था।
कृष्ण से बदला लेने का किया प्रयास – कृष्ण से बदला लेने के लिए जरासंध ने पूरे दल-बल के साथ शूरसेन जनपद (मथुरा) पर एक बार नहीं, कई बार चढ़ाई की, लेकिन हर बार वह असफल रहा।
जरासंध ने 18 बार मथुरा पर किया आक्रमण – पुराणों के अनुसार जरासंध ने मथुरा पर शासन के लिए 18 बार मथुरा पर चढ़ाई की। इस दौरान वह 17 बार असफल रहा।
कालयवन का भी लिया साथ – मथुरा पर अंतिम बार आक्रमण के लिए उसने एक विदेशी शक्तिशाली शासक कालयवन को भी मथुरा पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।
युद्ध में मारा गया कालयवन – लेकिन युद्ध में कालयवन के मारे जाने के बाद उस देश के शासक और उसके परिवार के लोग भी कृष्ण के दुश्मन बन गए।
कृष्ण ने अपने वंशजों के साथ छोड़ा मथुरा – अंत में कृष्ण ने सभी यदुओं के साथ मिलकर मथुरा को छोड़कर जाने का फैसला किया। विनता के पुत्र गरुड़ की सलाह पर कृष्ण कुशस्थली आ गए।
कृष्ण ने बसायी थी द्वारका नगरी – वर्तमान द्वारका नगर कुशस्थली के रूप में पहले से ही विद्यमान थी। कृष्ण ने इसी उजाड़ हो चुकी नगरी को फिर से बसाया था। कृष्ण अपने 18 नए कुल-बंधुओं के साथ गुजरात के तट पर बसी कुशस्थली आ गए।
अपनी नगरी का,किलाबंद कर दिया – यहीं पर उन्होंने भव्य नए द्वारका नगर का निर्माण कराया और संपूर्ण नगर को चारों ओर से मजबूत दीवार से किलाबंद कर दिया।
द्वारिका पर श्रीकृष्ण ने 36 वर्ष किया राज – भगवान कृष्ण ने यहां 36 वर्ष तक राज्य किया। यहां वे अपनी 8 पत्नियों के साथ सुखपूर्वक रहते थे।
द्वारिका से किया महाभारत का संचालन – यहीं रहकर वे हस्तिनापुर की राजनीति में शामिल रहे। यहीं से उन्होंने संपूर्ण महाभारत का संचालन भी किया।
अपने वंशजों को आपस में लड़ता देख हुए दुखी – भगवान कृष्ण यदुओं को आपस में लड़ता देख व अपने कुल का नाश देखकर बहुत दुखी हुए। उनसे मिलने कभी-कभार युधिष्ठिर आते थे।
जब एक बहेलिए ने कृष्ण पर चलाया विषयुक्त बाण – एक दिन इसी क्षेत्र के वन में भगवान कृष्ण एक पीपल के वृक्ष के नीचे योगनिद्रा में लेटे थे, तभी ‘जरा’ नामक एक बहेलिए ने भूलवश उन्हें हिरण समझकर विषयुक्त बाण चला दिया।
जब भगवान कृष्ण ने किया अपनी देह का त्याग – बाण उनके पैर के तलुवे में जाकर लगा और भगवान श्रीकृष्ण ने इसी को बहाना बनाकर देह त्याग दी। महाभारत युद्ध के ठीक 36 वर्ष बाद उन्होंने अपनी देह इसी क्षेत्र में त्याग दी थी।
92 वर्ष की उम्र में श्री कृष्ण का निर्वाण – ऐसा कहा जाता है कि जब महाभारत का युद्ध हुआ था तब श्री कृष्ण लगभग 56 वर्ष के थे। मान्यतानुसार उनका जन्म 3112 ईसा पूर्व हुआ था। इस मान से 3020 ईसा पूर्व उन्होंने 92 वर्ष की उम्र में देह त्याग दी थी।
‘भालका’ तीर्थ से प्रसिद्ध है भगवान कृष्ण का निर्वाण स्थल – जिस स्थान पर जरा ने श्रीकृष्ण को तीर मारा, उसे आज ‘भालका’ तीर्थ कहा जाता है। वहां बने मंदिर में वृक्ष के नीचे लेटे हुए कृष्ण की आदमकद प्रतिमा है। उसके समीप ही हाथ जोड़े जरा खड़ा हुआ है।
रिपोर्ट – द्वारकेश बर्मन