‘शाम-ए-गजल’ में शकील अहमद ने समां बांधा
नई दिल्ली, 2 सितंबर (आईएएनएस)| उर्दू घर रविवार शाम को मौशिकी के चाहने वालों से खचाखच भरा था। बाहर गोधुली के बीच रिमझिम फुहार पड़ रही थी और अंदर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गायक एवं मौशिकीकार शकील अहमद ने अपने साथियों के साथ लोगों को गजलों के रंग में इस कदर घोला कि वे मंत्रमुग्ध रह गए। कला-संस्कृति से रू-ब-रू कराने एवं अमर संगीत रस से सराबोर कराने के उद्देश्य से आयोजित ‘शाम-ए-गजल’ कार्यक्रम का प्रमुख मकसद गजलों, भाषा और तहजीब का जादू संगीत के माध्यम से बिखेरना था और यह इसमें पूरी तरह सफल रहा।
कार्यक्रम की शुरुआत शकील अहमद ने दिल्ली के बड़े शायर बहादुर शाह जफर की रचना ‘बात कर लूं’ से की। उसके बाद उन्होंने ‘दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है’ के साथ, एक के बाद एक विभिन्न गजलें प्रस्तुत कीं, जिनमें उनकी एलबम ‘सोच के मोती’ और ‘देखो तो’ की गजलें भी शामिल रहीं।
शकील अहमद के गायन में आधुनिक दुनिया के शायरों की रचनाएं शामिल रहीं। यह शायर ऐसी प्रतिभाएं हैं, जिन्होंने हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को संजोये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
मौके पर गैर सरकारी संगठन साक्षी की अध्यक्ष डॉ. मृदुला टंडन ने कहा, शकील अहमद शानदार कलाकार हैं। इन्होंने हमेशा श्रोताओं को शानदार गायन से रोमांचित किया है। हमने उनके साथ काफी सारे कन्सर्ट किए हैं और यहां मैं बतौर श्रोता एवं उनकी प्रशंसक मौजूद हूं। उनकी गायकी में अद्भुत संयोजन है जो श्रोताओं के बीच गजल शैली के बेंचमार्क को बेहतर बनाता है। उनकी गजलों में श्रोताओं को भावनात्मक शब्दों में मानव भावनाओं का जीवंत अहसास मिलता है, जो कि सभी आयु वर्ग के श्रोताओं के दिलों को छूती है।
इस अवसर पर श्रोताओं के बीच उपस्थित प्रसिद्ध फिल्मकार संदीप मारवाह ने कहा, शकील अहमद की सशक्त गायकी, कविताओं की समझ और गजल का प्यार हमें एक रूहानी दुनिया में ले जाता है जहां कविता और संगीत श्रोताओं पर गहरा असर डालता है। रागदारी की समझ, भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक गहन ज्ञान उन्हें हर किसी से मुख्तलिफ बनाता है। उनकी गजलों में एहसास का ऐसा मंजर होता है जिससे सुनने वाले आत्म-विभोर हो जाते हैं।
कार्यक्रम के आयोजक अंजुमन तरक्की उर्दू हिंद (उर्दू घर) के जमरूद मुगल ने कहा, हमारा प्रयास भाषा, सभ्यता और मधुर कविताओं, शेरो-शायरी को युवा पीढ़ी के बीच जीवंत रखना है, जिससे कि वह आज के दौर में भी अपनी जड़ों से जुड़े रहें और उन्हें भी इसका ज्ञान हो, जिससे वह इस कला को भी आगे ले जाने में अहम भूमिका निभाएं।