आपातकाल के विरुद्ध संघर्ष करने वालों की दिल्ली में बैठक
नई दिल्ली, 24 अगस्त (आईएएनएस)| देश के 24 राज्यों से अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त संघर्ष समिति से आए हुए पदाधिकारी शनिवार को दिल्ली में बैठक करेंगे और मांग करेंगे कि जिन राज्यों में लागू नहीं है वहां आपातकाल पीड़ितों को ‘स्वतंत्रा सेनानी’ का दर्जा दिया जाए व उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने की व्यवस्था केंद्र सरकार करे। अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त संघर्ष समिति के अध्यक्ष गोवर्धन प्रसाद अटल ने कहा, समिति की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि शेष बचे राज्यों के लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता सेनानियों का दर्जा देकर उन्हें सम्मानपूर्वक प्रतिष्ठित करने के लिए अविलंब निर्णय लेकर उचित कार्यवाही करें। इस बाबत पत्र भारत के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को भेजा गया है।
अटल ने कहा कि अखिल भारतीय लोकतंत्र सेनानी संयुक्त संघर्ष समिति अयोग्यों की पेंशन की जांच की मांग करती है। संघर्ष समिति यह भी मांग करती है कि पुलिस व्यवस्था व मानसिकता में बदलाव के लिए, सरकार सक्रिय सकरात्मक कदम उठाए और यह सुनिश्चित करे कि भविष्य में स्वतंत्र भारत की पुलिस अपने ही नागरिकों के प्रति वैसा दमन, अत्याचार व अमानवीयता न कर सके।
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब उच्च न्यायालयों ने कहा है कि यह समाज व सरकारों का दायित्व है कि राष्ट्र व समाज के लिए लोकतान्त्रिक मूल्यों, मौलिक अधिकारों व मीडिया की स्वतंत्रता के लिए, संघर्ष करते वक्त पीड़ित दमनित सेनानियों की देखभाल कर उचित सम्मान दे। मद्रास हाईकोर्ट ने तो यहां तक कहा है कि ऐसे सेनानियों की देखरेख करना कोई चैरिटी (खैरात) नहीं है।
अटल ने कहा कि आश्चर्य की बात है कि केन्द्र सरकारों व राज्य सरकारों ने 1921-22 के मोपला विद्रोहियों, खिलाफत (1919-22) आन्दोलनकारियों, स्वतंत्रता विरोधी त्रावनकोर आंदोलन, चीन सर्मथक कम्युनिस्ट आंदोलनों के संघर्षकारियों को सम्मान निधि पेंशन दे रही है। अकेले केन्द्र सरकार ने 2017-20 के दौरान 2525 करोड़ की व्यवस्था इस हेतु कर रखी है तथा तदनुसार 1980 से भी अब तक जोड़ें तो मात्र 38 वर्षोँ में 7000 से 8000 करोड़ रुपये उक्त स्वतन्त्रता सेनानियों की सम्मान पेंशन पर खर्च किए हैं, जिनमें राष्ट्र का अधिकतर पैसा आयोग्यों को जा रहा है। जबकि राष्ट्रीय आंदोलनकारियों व लोकतंत्र व मौलिक आधिकारों, प्रस स्वातंय के लिए तथा आपातकाल के विरूद्ध लड़ने वालों को अस्वीकृत, उदासीन, उपेक्षित अभावग्रस्त और पीड़ित छोड़ दिया गया है।