मप्र : धार्मिक अनुष्ठानों की आड़ में मतदाताओं को लुभाने की जुगत
भोपाल, 22 अगस्त (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हो या विपक्षी दल कांग्रेस, दोनों ही मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं।
मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाए जा रहे हैं, श्रावण मास में जगह-जगह पार्थिव (मिट्टी) शिवलिंगों का निर्माण कराया जा रहा है, तो कहीं कांवड़ यात्राएं निकाली जा रही हैं। इन आयोजनों में हिस्सा लेने वालों को उपहार स्वरूप साड़ी, कलश व नकदी दी जा रही है।
राज्य में हर तरफ धार्मिक आयोजनों का दौर जारी है, मतदाताओं तक अपनी बात पहुंचाने और उन्हें लुभाने का नेताओं को इससे अच्छा कोई और तरीका नजर नहीं आ रहा है। यही कारण है कि श्रावण मास का नेता भरपूर लाभ उठाने में लगे हैं, कोई शिवलिंग का निर्माण कर हजारों लोगों का मजमा लगा रहा है, कहीं सांस्कृतिक कार्यक्रमों से भीड़ जुटाई जा रही है, तो कोई कलश यात्रा के जरिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा कहते हैं, राजनीतिक दलों और नेताओं के पास अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए कुछ है नहीं, आगामी कोई योजना बता नहीं सकते, जनता के मुद्दों पर कोई बात करने को तैयार नहीं है। ऐसे में लोग धार्मिक आयोजनों और तोहफे बांटकर ही मतदाताओं को लुभा सकते है। कार्ल मार्क्स ने भी कहा था कि धर्म अफीम है, ठीक उसी तरह राज्य के नेता आम मतदाता को धर्म की अफीम चटाने में लगे हैं।
इसी क्रम में, दतिया जिले में सात दिवसीय भव्य शिवलिंग निर्माण का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस आयोजन में कई हजार लोगों ने शिरकत की। राज्य सरकार के कई मंत्री भी पहुंचे। इस आयोजन की कलश यात्रा में शामिल होने वाली महिलाओं को पीले रंग की और लगभग एक ही डिजाइन की हजारों साड़ियां और सिर पर रखने का कलश बांटा गया।
कांग्रेस की संभागीय चुनाव प्रचार अभियान समिति के सदस्य सुनील तिवारी ने आरोप लगाते हुए कहा, दतिया में आगामी विधानसभा चुनाव में भाजपा की हालत पतली है और पार्टी जीत हासिल करने के लिए हर तरह के पैंतरे अपना रही है, यही कारण है कि भाजपा नेताओं ने स्थानीय विधायक और मंत्री नरोत्तम मिश्रा की अगुवाई में इस धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन कर उपहार स्वरूप साड़ी व कलश बांटे। उनका मकसद धार्मिक नहीं बल्कि मतदाताओं को लुभाना था।
विधानसभा चुनाव करीब आते ही राज्य की सियासत में धर्म का घालमेल शुरू हो गया है। हर नेता मतदाताओं को लुभाना चाह रहा है, यही कारण है कि धार्मिक आयोजन एक ऐसा माध्यम है, जिसमें सभी को जोड़ा जा सकता है। अभी तो चुनाव दूर है, इस दौरान भी कई पर्व होने वाले हैं, ये पर्व भी सियासी रंग में रंगे नजर आएंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।