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राष्ट्रकवि ने बिलासपुर जेल में लिखी थी ‘पुष्प की अभिलाषा’

बिलासपुर, 17 अगस्त (आईएएनएस/वीएनएस)। आजाद भारत की संकल्पना को साकार करने में वैचारिक क्रांति का अहम योगदान रहा है। सत्याग्रही के तौर पर साहित्यकार और कवियों ने अपनी रचनाओं के माध्यम से जमकर राष्ट्रप्रेम का अलख जगाया। बिलासपुर का सेंट्रल जेल भी ऐसे ही एक राष्ट्रकवि व उनकी उस रचना का साक्षी है, जिसने ऐसी वैचारिक क्रांति की जो हमेशा के लिए अमर हो गई। राष्ट्रकवि पं माखनलाल चतुर्वेदी ने सत्याग्रही के तौर पर बिलासपुर सेंट्रल जेल में रहते हुए अमर कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ का लेखन किया जो आज देश के हर वर्ग में राष्ट्रप्रेम का अलग जगा रही है। जेल में आज भी उस पल और उस व्यक्तित्व को भारतीय आत्मा का नाम देकर जीवंत रखा गया है।

वह दौर था, जब अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ देश मुखर हो रहा था,आजाद भारत के लिए जंग छिड़ गई थी। अंग्रेजों ने देशभर के आंदोलनकारियों को जेल में बंद करना शुरू कर दिया, लेकिन जेल के अंदर भी अंग्रेजी हुकूमत भारत मां के वीर सपूतों के हौसले को डिगा न सकी और जेल के अंदर से ही अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ क्रांति पनपने लगी।

इसका एक गवाह बना बिलासपुर का केंद्रीय जेल, जहां सैकड़ों देशभक्तों को अंग्रेजों ने बंदी बना रखा था, जिसमें एक प्रसिद्ध राष्ट्रकवि और सत्याग्रही पंडित माखन लाल चतुर्वेदी भी रहे जिन्हें अंग्रेजों ने 5 जुलाई, 1921 से लेकर 1 मार्च, 1922 तक कैद में रखा।

इस दौरान अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बढ़ते आक्रोश और मातृभूमि की आजादी के लिए पंडित माखनलाल ने कैद में रहते हुए कलम को अपना हथियार बनाया और वैचारिक क्रांति की शुरआत की।

18 फरवरी, 1922 को बैरक नंबर 9 मे रहकर उन्होंने एक ऐसी कविता की रचना की, जिसने समूची क्रांति में देशप्रेम का जज्बा पैदा कर वीर सपूतों की फौज खड़ी कर दी।

‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता में फूल के माध्यम से कवि ने युवाओं में राष्ट्र प्रेम की भावना जाग्रत करने का प्रयास किया, जिसके बाद ऐसी वैचारिक क्रांति हुई जो स्वतंत्रा प्राप्ति की राह मे सहायक साबित हुई। आज भी पंडित माखन लाल चतुर्वेदी की यादों को केंद्रीय जेल में संजो कर रखा गया है।

चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊं,

चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊं,

चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं,

चाह नहीं देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं,

मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ पर जाएं वीर अनेक।

माखन लाल चतुर्वेदी की जेल में रचित ये कविता आज भी बिलासपुर केंद्रीय जेल में जीवंत है, जो क्रांतिकाल के अगाध राष्ट्रप्रेम का निरंतर एहसास कराता है। वही दूसरे रूप में आज समाज में भी ये कविता पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से बच्चों और बड़ों में राष्ट्रप्रेम का अलख जगा रही है।

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