‘दिल्ली-एनसीआर की स्वच्छ हवा के लिए सख्त नियमों की जरूरत’
नई दिल्ली, 16 अगस्त (आईएएनएस)| ऊर्जा, पर्यावरण और टिकाऊ विकास के मसलों पर अनुसंधान करने वाली संस्था टेरी और ऑटोमोटिव रिसर्च एसोएिसशन ऑफ इंडिया (एआरएआई) ने गुरुवार को कहा कि दिल्ली की हवा को शुद्ध बनाने के लिए सख्त नीतियों की जरूरत है। टेरी और एआरएआई ने दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषक तत्वों पर एक अध्ययन की रिपोर्ट यहां गुरुवार को पेश की, जिसमें कहा गया कि राजधानी और इसके आसपास के इलाकों की हवा को दूषित करने में वाहनों, उद्योगों, जैव ईंधन दहन से उत्सर्जित जहरीली गैसों और निर्माण कार्यो से फैलने वाली धूल का बड़ा योगदान है। इसलिए राजधानी में वायू प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सख्त नीतियों की जरूरत है।
रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर दिल्ली-एनसीआर के वातावरण में खतरनाक स्तर पर है जिसपर नियंत्रण जरूरी है। पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर राजधानी और आसपास के इलाके में सर्दियों के मौसम में क्रमश: 168 माइक्रोन प्रति घन मीटर (45 माइक्रोन कम या ज्यादा), और 314 माइक्रोन प्रति घन मीटर (77 माइक्रोन कम या ज्यादा) पाया जाता है जबकि गर्मी के मौसम में यह स्तर क्रमश: 90 माइक्रोन प्रति घन मीटर (17 माइक्रोन कम या ज्यादा), और 188 माइक्रोन प्रति घन मीटर (37 माइक्रोन कम या ज्यादा) रहता है।
इन दोनों प्रदूषक कणों का स्तर हवा में 60 माइक्रोन प्रति घन मीटर और 100 घन मीटर से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
अध्ययन अभिग्राही और विसर्जन दो दृष्किोण से किया गया जिसके अनुसार, हवा में पीएम 2.5 की मात्रा बढ़ाने में वाहनों से निकलने वाली गैसों या धुओं का योगदान क्रमश : 20-30 फीसदी और 17-28 फीसदी है। वहीं उद्योग का योगदान क्रमश: 20 फीसदी और 22-30 फीसदी है। धूल का योगदान क्रमश: 16-35 फीसदी और 17-38 फीसदी है। जैव ईंधन दहन से पीएम 2.5 की मात्रा बढ़ाने में योगदान क्रमश: 16-23 फीसदी और 14-15 फीसदी होता है। इसके अलावा अन्य स्रोतों का प्रदूषण क्रमश: 9-11 फीसदी और 8-11 फीसदी होता है।
इसी प्रकार, अभिग्राही और विसर्जन के मामले में वायु में पीएम 10 की मात्रा बढ़ाने में वाहनों से निकलने वाली गैसों या धुओं का योगदान क्रमश : 17-25 फीसदी और 15-24 फीसदी है। वहीं उद्योग का योगदान क्रमश: 19-20 फीसदी और 22-27 फीसदी है। धूल का योगदान क्रमश: 31-43 फीसदी और 25-41 फीसदी है। जैव ईंधन दहन से पीएम 10 की मात्रा बढ़ाने में योगदान क्रमश: 13-15 फीसदी और 14-15 फीसदी होता है। इसके अलावा अन्य स्रोतों का प्रदूषण क्रमश: 7-10 फीसदी और 7-10 फीसदी होता है।
रिपोर्ट में 2025 और 2030 तक प्रदूषक कणों को कम करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो सुझाव दिए गए हैं उनमें एनसीआर के ग्रामीण क्षेत्रों में जैव ईंधन दहन को पूरी तरह समाप्त कर उसके बदले एलपीजी का इस्तेमाल करने को कहा गया है। इसके अलावा, कृषि अवशेषों, जैसे पराली का इस्तेमाल बिजली संयंत्रों और अन्य उद्योगों में करने का सुझाव दिया गया है। रिपोर्ट में बीएस-6 के मानकों को 2020 तक सख्ती से लागू करने की सलाह दी गई है। इसके अलावा बिजली चालित वाहनों का इस्तेमाल, निर्माण कार्यो से निकलने वाली धूल पर नियंत्रण समेत अन्य कई सुझाव दिए गए हैं।